सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुरियन जोसेफ ने फिर से केंद्र की मोदी सरकार की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को एक न्यायाधीश की नियुक्ति को लेकर शीर्ष अदालत के कॉलेजियम की सिफारिश को खारिज नहीं करना चाहिए था, क्योंकि पहले ऐसा कभी नहीं हुआ|
रविवार को मीडिया से बातचीत के दौरान जस्टिस जोसेफ ने कहा, ‘बैठक बुलाई जा रही है। मीटिंग आयोजित होने से पहले कुछ भी कहना मेरे लिए सही नहीं है। ऐसा कभी नहीं हुआ है कि कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम संपादित किए गए और वापस भेजे गए।’ बता दें कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने 10 जनवरी को केंद्र सरकार को 2 नाम भेजे थे।
केंद्र सरकार ने इंदु मल्होत्रा की फाइल स्वीकार कर ली थी, लेकिन न्यायमूर्ति जोसेफ की फाइल वापस भेज दी और कॉलेजियम से उनकी पदोन्नति पर पुनर्विचार करने के लिए कहा। इस मुद्दे ने अब तूल पकड़ लिया है। इसको लेकर लगातार वर्तमान और पूर्व जज सरकार की आलोचना कर रहे हैं।
गौरतलब है कि जस्टिस केएम जोसेफ उत्तराखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश हैं। यह वही जज हैं जिन्होंने अप्रैल 2016 में मोदी सरकार के उस फैसले को रद्द किया था जिसके तहत उसने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया था। उस वक्त राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। इसी साल जनवरी में कॉलेजियम (जजों को नियुक्त करने वाली व्यवस्था) ने जस्टिस केएम जोसफ का नाम सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा था। लेकिन सरकार ने फरवरी में कॉलेजियम को नाम पर फिर से पुनर्विचार करने के लिए कहा।
केंद्र सरकार ने जज इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति को तो हरी झंडी दिखा दी लेकिन केएम जोसेफ की नियुक्ति सरकार ने नहीं की। सरकार ने कहा कि उन्हें लगता है कि जोसेफ पद के लिए वरिष्ठ नहीं हैं। जबकि ‘द हिन्दू’ ने 5 मार्च को अपनी एक खबर में बताया कि जस्टिस केएम जोसेफ सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए अनुभव के लिहाज़ से सबसे ज़्यादा वरिष्ठ हैं।
सवाल ये भी है कि जब सीजीआई खुद जोसेफ का नाम सुप्रीम कोर्ट में जज के लिए दिया था तो अब वो सरकार का पक्ष लेते क्यों दिखाई दे रहे हैं? जस्टिस जोसेफ की नियुक्ति पर फैसला लेते हुए जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि सरकार ने उनका नाम अस्वीकार कर के कुछ गलत नहीं किया। इसके बाद सीजेआई मिश्रा की काफी आलोचना हुई। चार पूर्व मुख्य न्यायधीशों ने भी उनके रवैय्ये पर सवाल उठाए थे।