इतिहास मैं वह लोग घूमते हैं, अतीत की बातें वह लोग कहते हैं, जिनके सामने कोई वर्तमान नहीं होता कोई भविष्य नहीं होता है अथवा वह भविष्य के लिए कोई सोच ही नहीं रखते हैं, या जो चाहते ही नहीं है कि भविष्य के विषय में कोई सोचे।
बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर ने शूद्र कौन और अछूत कौन और कैसे यह पुस्तकें बहुत पहले लिखी थी व्यवस्था को ध्यान में रखकर, इसके बाद उन्होंने जातिवाद का विनाश पुस्तक लिखी, तत्पश्चात 15 मार्च 1947 को संविधान सभा को इस आशय से अपना यह ज्ञापन भेजा था कि उनकी राष्ट्रीय करण की नीति को संविधान में शामिल किया जाए, लेकिन संविधान सभा के अध्यक्ष ने इसे अस्वीकार कर दिया था।
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इस ज्ञापन की चर्चा नहीं करते (state and minorities, राज्य एवं अल्पसंख्यक समुदाय) जो वर्तमान से लोकतंत्र से संविधान से जोड़ता है, तब यह ना समझ तो है ही क्योंकि यह उस अतीत की बात करते हैं जो अंग्रेजों के साथ समाप्त हो गया उनके जाने के बाद उसका कोई महत्व नहीं रहा।
वर्ण व्यवस्था की, मनुस्मृति की इतनी व्याख्या करते हैं, परंतु यह नहीं समझ रहे हैं कि यह एक अर्थव्यवस्था है जिसका आधार आर्थिक ही है, इसे और धर्म से इसलिए जोड़ दिया गया कि आप जैसे नासमझ लोग इसको समझने का प्रयास ही नहीं करें क्योंकि अगर इस आर्थिक व्यवस्था को पलट देंगे तो सब पलट जाएगा। आप अर्थव्यवस्था की चर्चा नहीं करते क्योंकि उस में स्वाद नहीं है ।ना समझते हैं। नासमझ है।
जाति व्यवस्था को सच भी मानते हैं और बुरा भी मानते हैं लेकिन यह नहीं समझ रहे हैं इसका आधार भी अर्थव्यवस्था ही है, क्योंकि जिस की जाति ऊंची उसकी आर्थिक स्थिति ऊंची ।यहां भी यह समझने का प्रयास नहीं कर पा रहे हैं कि यह नासमझ है ।
संविधान में जाति व्यवस्था स्थापित है और बाबा साहब जातिवाद के जाति व्यवस्था के विरोधी थे। बाबा साहब जाति विहीन समाज चाहते थे परंतु जब यह लोग यह कहते हैं कि बाबा साहब ने संविधान बनाया है, इसकी पुष्टि यह गलत कहते हैं इससे नहीं होती है कि जब संविधान में बाबा साहब ने जाति व्यवस्था को नष्ट करने का कोई अनुच्छेद क्यों नहीं बना दिया संविधान में मूल अधिकारों में?
संविधान सभा में 296 चुने हुए सदस्य थे जिन में एक बाबा साहब भी थे। इन लोगों ने संविधान की रचना की परंतु शूद्र लगातार यह कहते रहे हैं कि बाबा साहब का संविधान है! उन्होंने ही बनाया है तब यह कितने ज्यादा ना समझ है की किसी चीज का हिसाब किताब भी नहीं लगा पा रहे हैं।
बाबा साहब ने 1947 में जो मेमोरेंडम दिया था वह क्यों दिया था? अगर वह निर्माता थे तो जो चाहते थे वह उस संविधान में लिख देते परंतु यह तो नासमझ है इन्हें तो इसी से खुशी होती है कि बाबा साहब ने संविधान बनाया है, तब कहते रहो! यह इस मेमोरेंडम का लिंक हैं जो डा अम्बेडकर ने संविधानसभा के समक्ष 15 मार्च 1947 को दिया था। जो डा अम्बेडकर के वाँग्यमय के दूसरे खण्ड में है-
http://drambedkarwritings.gov.in/content/writings-and-speeches/dr-babasaheb-ambedkar-writings-and-speeches-vol-2-hindi.php
संविधान को समझने के लिए, इसमें सबके लिए समता है या नहीं तब आपको अनुच्छेद 12 को पढ़ना पड़ेगा ,जहां राज्य की परिभाषा दी है और बिना राज्य को हर अनुच्छेद में शामिल किए हुए आप संविधान की सच्चाई को समझ ही नहीं सकते , वह आप जोड़ते नहीं है क्योंकि आप नासमझ है तब आपको सच कहां से समझ में आएगी?
आप कहते रहे संविधान में सबके लिए समानता है समता है, स्वतंत्रता है, भाईचारा है, लेकिन इसको समझने के लिए तो समझ चाहिए ना, वह तो आप में है नहीं तब सच समझेंगे कैसे इसलिए सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने सही कहा है अगर अभी भी ना समझ पाए तो क्या कहा जाए आपके लिए, क्योंकि आप तो यही नहीं समझ पाए हैं कि आपको एससी ,एसटी, ओबीसी में क्यों बांटा गया, जबकि आप सभी शुद्र थे और आप क्यों समझने का प्रयास करेंगे कि जिन शूद्रों ने सवर्ण समाज की गुलामी स्वीकार कर ली उनके घरेलू काम करने लगे, उनके साथ सवर्णों ने नरमी का व्यवहार किया परंतु जो कट्टर शुद्र थे जने अति शुद्र कहा जाता है.
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वह असली बौद्ध धर्मी थे, उनको अछूत बना दिया गया। गंदे काम करने को दिया गया, बाहर रहने के लिए मजबूर किया गया परतु वह बदले नहीं, गुलामी स्वीकार नहीं की परंतु हम-आप तो नासमझ हैं इतनी व्याख्या कैसे समझ सकते हैं?
समानता का आधार नंबर वन पर आर्थिक होता है, उसी पर सामाजिक ढांचा खड़ा होता है, जिस की लड़ाई आप नहीं लड़ रहे हैं, ना समझ रहे हैं अपनी लड़ाई को, क्योंकि आप नासमझ हैं।
इसीलिए शूद्र चैनल, आवाज इंडिया, बहुजन प्लेनेट, नेशनल दस्तक, दलित दस्तक जैसे बहुत से चैनल बना रखे हैं जो घृणा द्वेष नफरत ही फैला रहे हैं, मनुवाद, ब्राह्मणवाद को गाली देने के अलाव कुछ जानते ही नहीं, कुछ आता ही नहीं, और आता है तो केवल यह है कि हमारे बाबा साहब ने संविधान बनाया, वह भी इसलिए कि वह हमारी जाति के थे ।
इस प्रकार आप भी अपनी जाति श्रेष्ठता पर गुमान करते हैं और दूसरी तरफ इसका विरोध भी करते हैं, यही है हमारी-आपकी ना समझी जिसे आप समझते ही नहीं है क्योंकि हम-आप नासमझ है।
डॉ राजाराम