1965 के युद्ध को समाप्त हुए लगभग तीन माह हो चुके थे । भारत ने पाकिस्तान के कई क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा कर और उसके हज़ारों सैनिकों को बंदी बनाकर बड़ी जीत हासिल की थी । पाकिस्तान के राष्ट्रपति तब जनरल अयूब खान थे और ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो उनके विदेश मन्त्री हुआ करते थे ।
भारत पाकिस्तान के इस युद्ध में यद्यपि हमने पाकिस्तान के अधिक क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा किया था पर कुछ इलाक़ों पर पाकिस्तान ने भी क़ब्ज़ा किया था । भारत ने पीओके स्थित हाजी पीर और तीथवाल दोनों पर क़ब्ज़ा कर लिया था जबकि छंब सेक्टर पर पाकिस्तान ने क़ब्ज़ा कर लिया था जो कश्मीर में था।
सोवियत रूस के प्रधानमंत्री अलेक्सी कोसिजिन ने शास्त्री जी और सदर अयूब खान को समझौते के लिये जनवरी 1966 में ताशकंद में आमंत्रित किया था । दिनांक 3 जनवरी 1966 को शास्त्री जी ताशकंद के लिये रवाना हुऐ । ताशकंद जाने से पहले शास्त्री जी ने प्रेस कान्फ्रेंस में कहा था कि वह हाजीपीर व तीथवाल वापस नहीं करेंगे क्योंकि यह दोनो इलाक़े कश्मीर के है और पूरे कश्मीर को हम अपना मानते है ।
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ताशकंद समझौता उतना आसान नहीं था जितना भारत समझ रहा था। पाकिस्तान ने कई मामलों को उलझा रखा था । सोवियत रूस के प्रधान मन्त्री का झुकाव पाकिस्तान की तरफ़ कुछ ज़्यादा था । मैं यहॉ ज़्यादा विस्तृत में तो नहीं जा सकता पर काफ़ी जद्दोजहद के बाद दिनांक 10 जनवरी को समझौते पर हस्ताक्षर हो गये जिसमें भारत ने हाजीपीर व तीथवाल से भी हटने पर सहमति दे दी थी । दोनों देशों ने कश्मीर सहित सभी क्षेत्रों में युद्ध से पहले की स्थिति बहाल करने पर सहमति दे दी थी । पाकिस्तान ने ‘ नो वार ऐग्रीगेट’ पर भी कश्मीर समस्या के समाधान न होने तक हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया था जबकि ताशकंद में कश्मीर का मामले पर विचार ही नहीं होना था ।
समझौते के बाद भारतीय पत्रकारों ने शास्त्री जी को घेर लिया था और बार बार यह सवाल करते रहे की हाजीपीर व तीथवाल क्यों वापस कर दिया गया जबकि पहले आप इससे इंकार करते रहे है । शास्त्री जी ने जवाब दिया था वह प्रधानमंत्री कोसीजिन को मना नहीं कर सके क्योंकि सोवियत रूस हर मामले में भारत का साथ देता रहा है । पत्रकारों का दल इससे संतुष्ट नहीं हुआ था और शास्त्री जी से यह सवाल करता रहा कि आख़िर इस समझौते से भारत को क्या हासिल हुआ है । शास्त्री जी ने अंतराष्ट्रीय क़ानूनों व परिस्थितियों का हवाला देकर समझौते को बिल्कुल सही व देश हित में बताया पर पत्रकार संतुष्ट नहीं हुऐ थे । कुलदीप नैयर साहब और अन्य कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने समझौते को बिल्कुल सही बताया और शास्त्री जी से कहा कि आप बिल्कुल परेशान न हो ।
सायंकाल तक सभी पत्रकारों ने टेलीप्रिंटर से अपने डिस्पैच भेज दिये जिसमें ज़्यादातरो ने समझौते के पक्ष में रिपोर्टिंग की थी ।
वह पूरा दिन शास्त्री जी के लिये काफ़ी थकान भरा था । दोपहर को भारतीय राजदूत ने चाय पार्टी का आयोजन किया था और सायंकाल मैं प्रधानमंत्री कोसिजिन ने समझौता होने की ख़ुशी में शानदार पार्टी रखी थी । शास्त्री जी इन सबसे निपट कर रात्रि लगभग 10 बजे अपने कक्ष में वापस आये थे । उस रात शास्त्री जी ने कोसिजिन की पार्टी में बहुत ही हल्का खाया था और कक्ष में आकर मामूली सा शाकाहारी भोजन किया था कि तभी दिल्ली से उनके दूसरे निजी सहायक श्री वेंकटरामन का फ़ोन आया जिसे उनके प्रथम निजी सहायक श्री सहाय ने रिसीव किया था । श्री वेंकटरामन ने बताया कि दिल्ली में ताशकंद समझौते लेकर सभी पक्ष में हैं पर घरवाले खुश नहीं हैं तथा भारतीय जनसघ के नेता अटल बिहारी बाजपेयी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता सुरेंद्र नाथ द्विवेदी समझौते की आलोचना कर रहे है ।
शास्त्री जी ने कहा था कि विपक्ष तो आलोचना करेगा ही उसकी चिंता नहीं है । सहाय ने पूछा था कि क्या वह अपने घर बात करना चाहेंगे तो शास्त्री जी ने हामी भर दी थी । इस वक़्त तक रात्रि के 11 बज चुके थे ।शास्त्री जी की बड़ी बेटी कुसुम ने फ़ोन उठाया तो शास्त्री जी ने पूछा ‘ तुझे कैसा लगा ‘ तो बेटी ने जवाब दिया था कि ‘ बाबूजी हमें अच्छा नहीं लगा ‘। शास्त्री जी ने पूछा ‘ और अम्माँ को ? ‘ तो बेटी कुसुम ने जवाब दिया था कि अम्मा को भी अच्छा नहीं लगा । शास्त्री जी सोच में पड़ गये और कहा कि ‘ जब घरवालों को अच्छा नहीं लगा तो बाहर वाले क्या कहेंगे ? शास्त्री जी ने अपनी पत्नी श्रीमती ललिता शास्त्री से बात करनी चाही पर बेटी ने जवाब दिया कि अम्मा आपसे नाराज़ हैं और बात नहीं करना चाहती क्योंकि आपने हाजीपीर व तीथवाल इस्लामाबाद को वापस कर दिये ।शास्त्री जी के कई बार कहने के बाद भी श्रीमती ललिता शास्त्री ने उनसे बात नहीं की थी ।
इस घटना के बाद शास्त्री जी ‘अपसेट’ हो गये थे और कमरे में ही लगातार बैचेनी से चहलक़दमी करने लगे थे। शास्त्री जी को इससे पहले दो बार हार्ट अटैक हो चुका था । रामनाथ उनके व्यक्तिगत सेवक ने उन्हें दूध का गिलास दिया जो शास्त्री जी सोने से पहले रोज़ लेते थे। शास्त्री जी दूध पीकर फिर चहलक़दमी करने लगे और अपने सेवक को ज़बरदस्ती उसके कमरे में भेज दिया जो बग़ल में ही था ।
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इस वक़्त तक रात्रि का 1.20 का समय हो गया था । शास्त्री जी के सहायक सहाय साहब व दूसरो ने सामान पैक कर लिया था क्योंकि सुबह 6.00 बजे उन्हें काबुल के लिये उड़ान भरनी थी ।शास्त्री जी को काबुल में खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान से मुलाक़ात करनी थी । इसी समय उन्होंने शास्त्री जी को अपने कक्ष के दरवाज़े पर देखा जो बड़ी पीड़ा में थे । शास्त्री जी ने कहा कि डाक्टर कहॉ है उसे बुलाओ । डाक्टर चुग जो शास्त्री जी के व्यक्तिगत फ़िज़िशियन थे तत्काल शास्त्री जी के पास पहुँच गये । तब तक शास्त्री जी के पास उनका समस्त व्यक्तिगत स्टाफ़ पहुँच गया था और शास्त्री जी को बिस्तर पर लिटा दिया था । शास्त्री जी को गंभीर हार्ट अटैक आया था । डा. चुग ने ऐसे मौक़ों पर जो करते हैं वह इलाज किया पर शास्त्री जी रशियन डाक्टरों के आने से पहले ही दुनिया से जा चुके थे । उस समय रात्रि का 1.32 समय हुआ था । कुलदीप नैयर साहब जो दूसरे होटल में थे को भी यह दुखद सूचना मिली । जब वह शास्त्री जी के कक्ष में पहुँचे तो वहॉ प्रधान मन्त्री कोसिजिन सहित तमाम लोग मौजूद थे।
अगली सुबह शास्त्री जी का पार्थिव शरीर दिल्ली पहुँचा तो उनका शरीर कुछ नीलापन लिये हुऐ था जिसपर श्रीमती ललिता शास्त्री ने सवाल उठाया था । उन्हें यह बताया गया कि शव को सुरक्षित रखने के लिये उसपर रसायनों का लेप किया गया है जिस कारण शरीर नीला दिख रहा है ।
शास्त्री जी के निधन पर शास्त्री जी के परिवार वालों व कुछ अन्य लोगों को भी किसी साज़िश की आशंका लग रही थी जिसपर वह लोग जॉच की मॉग कर रहे थे । मोरार जी देसाई जो उस वक़्त भारत सरकार में मन्त्री थे तो उन्होंने कुलदीप नैयर को जवाब दिया था कि सरकार पूरी तरह मानती है कि शास्त्री जी का निधन हार्ट अटैक से ही हुआ था और किसी भी प्रकार की साज़िश नहीं हुई है । जो लोग सवाल उठा रहे हैं वह सिर्फ़ राजनिति कर रहे है ।