हरिद्वार धर्म संसद को लेकर, देशभर में आलोचना और इसके आयोजकों के खिलाफ कार्यवाही करने की मांग दिन प्रतिदिन ज़ोर पकड़ रही है। पुलिस ने मुख्य आयोजक यति नरसिंहानंद को गिरफ्तार भी कर लिया है और एक अन्य आरोपी वासीम रिज़वी उर्फ जितेंद्र त्यागी को पहले ही जेल भेजा जा चुका है। गिरफ्तारी के समय, यति नरसिंहानंद ने न केवल भारतीय संविधान बल्कि देश की सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ बेहद अपमानजनक और अभद्र भाषा मे उनके अधिकार और संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ विषवमन किया। नरसिंहानंद का वीडियो वायरल है और उसे देश तथा दुनियाभर ने देखा है।
इस वीडियो के बाद, एक एक्टिविस्ट शची नेल्ली ने भारत के अटॉर्नी जनरल को पत्र लिखकर, हरिद्वार ‘धर्म संसद’ में भड़काऊ बयान और नरसंहार का आह्वान करने वाले, नेता यति नरसिंहानंद द्वारा की गयी, भारत के संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ उनकी एक ‘अपमानजनक टिप्पणी’ पर, संज्ञान लेने और न्यायालय के अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए, सहमति मांगी है। उल्लेखनीय है कि अवमानना वाद दाखिल करने की सहमति, भारत के अटॉर्नी जनरल देते हैं।
अटॉर्नी जनरल को संबोधित, शची नेल्ली के पत्र में कहा गया है कि, “14 जनवरी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर पर वायरल हुए, विशाल सिंह को दिए गए एक साक्षात्कार में, यति नरसिंहानंद, जो अपने मुस्लिम विरोधी नफरत भाषणों के कारण इधर चर्चित हो रहे हैं, ने सुप्रीम कोर्ट और भारत के संविधान के लिए अत्यंत आपत्तिजनक और अपमानजनक बातें कहीं हैं। अटॉर्नी जनरल को, इसे देखते हुए, न्यायालय की अवमानना का वाद चलाने की सहमति दी जानी चाहिए।
शची नेल्ली के पत्र में, इस कथन के पूरे उद्धरण और संदर्भ को इस प्रकार बताया गया है, “हरिद्वार धर्म संसद में, भड़काऊ भाषण के बारे में, हो रही कानूनी और सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के मामले मे पूछे जाने पर, यति नरसिंहानंद ने कहा कि “हमें भारत के संविधान और सर्वोच्च न्यायालय पर कोई भरोसा नहीं है। संविधान इस देश के 100 करोड़ हिंदुओं को खा जाएगा। जो इस संविधान को मानते हैं, वे सब मारे जाएंगे। जो इस न्यायिक प्रणाली, इस राजनीतिक सिस्टम, सेना पर भरोसा करते हैं, वे सभी कुत्ते की मौत मरेंगे।”
इसके अतिरिक्त पत्र में उसी बातचीत की एक अन्य क्लिप का उल्लेख किया गया है, जहां यति नरसिंहानंद से जब मामले में पुलिस द्वारा की गई गिरफ्तारी के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि, “जब जितेंद्र सिंह त्यागी ने वसीम रिज़वी के नाम से अपनी किताब लिखी, तब इन हिजड़े पुलिसकर्मियों और नेताओं में एक भी ऐसा नहीं था, जिंसमे, उसे गिरफ्तार करने का साहस था।”
उक्त पत्र के अनुसार, ” यति नरसिंहानंद द्वारा की गई यह टिप्पणियां एक संवैधानिक संस्था की महिमा और भारत के सर्वोच्च न्यायालय में निहित अधिकार को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं, और इस अपमानजनक बयानबाजी के माध्यम से न्याइक कार्य में हस्तक्षेप करने का यह एक कुत्सिक और घृणित प्रयास है। यह संविधान और न्यायालय की अखंडता पर हमला है। संस्था की महिमा को नुकसान पहुंचाने और न्यायालय में भारत के नागरिकों के विश्वास को कम करने का कोई भी प्रयास पूरी तरह से अराजकता का कारण बनेगा। यह शायद, अब तक के इतिहास में सर्वोच्च न्यायालय पर सबसे शातिर हमला है। इन टिप्पणियों को बिना किसी समाधान के नज़रअंदाज़ करने की अनुमति देना शीर्ष अदालत के अधिकार को कम करने के इस प्रयास को सफल होने देना होगा।”
पत्र में आगे कहा गया है, “भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारत के संविधान का पहला संरक्षक और व्याख्याता है। इस देश के मूलभूत ढांचे के प्रति विश्वास की यह कमी और न्यायालय के अधिकार को यह चुनौती, अदालत की सरासर अवमानना का यह रूप भयावह है। न्यायालय और इसकी क्षमता को कमजोर करने की मंशा बेहद खतरनाक संकेत है। मैंने एजी केके वेणुगोपाल से यति नरसिंहानंद के संविधान और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ उनके घिनौने बयानों के लिए अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए सहमति मांगी है। भारत की संस्थाओं के अधिकार को कमजोर करने के किसी भी प्रयास से गंभीरता से निपटा जाना चाहिए।”
नाम भले ही धर्म संसद हो, पर यह धर्मांधता फैलाने और देश के सामाजिक तानेबाने को नष्ट करने की एक सोची समझी साजिश है। हरिद्वार धर्म संसद या जैसे भाषण इस संसद में दिए गए हैं, उन्हें देखते हुए इसे धृणासभा ही कहना उचित होगा, के ही आयोजकों ने आगामी 23 जनवरी को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक धर्म संसद का आयोजन किया है। प्रदेश के कुछ लेखकों और प्रबुद्ध नागरिकों ने, उस प्रस्तावित धर्म संसद की अनुमति न देने के लिये उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को पत्र लिख कर अनुरोध किया है।