सभी राजनैतिक दलों को मुसलमानों का वोट तो चाहिए पर कोई भी दल मुस्ल्मि समाज को न तो उनके अधिकार देने को तैयार है ना ही उन्हे सत्ता में भागीदार बनाने को तैयार है। समस्त तथाकथित सेकुलर दल मुस्लिम सामज को सियासी ग़ुलाम बनाकर ही रखना चाहते हैं ताकि हमारा समाज कुली बन सेकुलरिज़्म की गठरी को ढ़ोता रहे और इन दलों को सत्ता तक पहुँचाता रहे और अपने नेतृत्व और भागीदारी की बात करना तो दूर उसके बारे में सोचे भी न।
सभी राजनैतिक दलों को मुसलमानों का वोट तो चाहिए पर कोई भी दल मुस्ल्मि समाज को न तो उनके अधिकार देने को तैयार है नाहि उन्हे सत्ता में भागीदार बनाने को तैयार है। समस्त तथाकथित सेकुलर दल मुस्लिम सामज को सियासी ग़ुलाम बनाकर ही रखना चाहते हैं ताकि हमारा समाज कुली बन सेकुलरिज़्म की गठरी को ढ़ोता रहे और इन दलों को सत्ता तक पहुंचातारहे और अपने नेतृत्व और भागीदारी की बात करना तो दूर उसके बारे में सोचे भी न।
इसी साज़िश के तहत प्रदेश में भी जो महागठबंधन बना है उसमें भी कहीं मुस्लिम नेतृत्व वाले राजनैतिक दलों को हिस्सेदारी नही दी गई है और ना ही सेकुलरिज़्म की मसीहा कही जाने वाली कांगे्रस ने अपने नेतृत्व में बने गठबंधन में किसी मुस्ल्मि नेतृत्व वाले दल को कोई जगह दी है।
उन्होने कहा कि, ‘‘भाजपा को सत्ता से बाहर हम भी करना चाहते हैं ताकि मंहगाई, गरीबी, सम्प्रदायिक्ता, सामंतवाद से देश को बचाया जा सके और इसीलिए हम लगातार कोशिश करते रहे कि फासिस्ट ताकतों के विरूध्द सभी विपक्षी दल एकजुट होकर लड़े और भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखांए परन्तु कांग्रेस हो या महागठबंधन ये हमारा समर्थन लेने को तैयार है परन्तु हमे हिस्सेदारी और हमारे नेतृत्व को कबूल करने को तैयार नही हैं। हमने तो बड़ा दिल दिखाते हुए 2017 के विधानसभा चुनावों में मायावती साहेबा की गुज़ारिश पर दलित लीडरश्पि को खत्म करने की साज़िश को नाकाम बनाने हेतु उन्हे पूर्ण समर्थन दे दिया था और बाबा आम्बेडकर के लिए मुस्लिम लीग के बलिदान को दोहराया था परन्तु उसका भी लिहाज़ नही रखा गया।
उन्होने कहा कि आज कांग्रेस, अपना दल, महान दल जैसे छोटे दलों से गठबंधन कर चुकी है, यहां तक कि NRHM जैसे बड़े घोटाले के आरोपी बाबूलाल कुशवाहा तक से गठबंधन कर चुकी है परन्तु मुस्ल्मि लीडरशिप को एक घोटालेबाज़ से भी बदतर समझा जाता है और उन्हे साथ लेने को नही तैयार है। बसपा व रालोद से महागठबंधन के बाद सपा ने जनवादी पार्टी और समानता दल जैसी छोटी पार्टीयों से भी गठबंधन किया है परन्तु उसे भी मुस्लिम लीडरशिप का अस्तित्व नही चाहिए। इनमे से कोई भी दल किसी भी मुस्लिम नेतृत्व वाले दल के साथ गठबंधन करने को तैयार नही हैं क्योंकि ये चाहते हैं कि मुस्लिम नेतृत्व वाले दलों को राजनैतिक अछूत बना दिया जाए ताकि पूरा समाज ही राजनैतिक नेतृत्व, भागीदारी और अधिकारों की बात करना ही छोड़ दे।