वर्ष 1917 में निर्मित साबरमती आश्रम महात्मा गांधी की धरोहर वैश्विक महत्व का स्थान है, यह बात बापू के हत्यारों के गिरोह को सहन नहीं हो सकती है। इसलिए अब संघियों की केंद्र और गुजरात सरकारें इस आश्रम का ऐतिहासिक स्वरूप जलियांवाला बाग की तरह नए सिरे से संवारने के बहाने नष्ट करने पर तुल गई हैं। इस परियोजना के लिए 1200 करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि का बजट रखकर इसे ‘गांधी आश्रम मेमोरियल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट’ नाम दिया गया है।
विरोध शुरू हो गया है—
केंद्र सरकार द्वारा नवीनीकरण के बहाने जलियांवाला बाग का जैसा हाल बना दिया गया है उसे देखते हुए सरकार की इस परियोजना पर भी प्रश्नचिह्न लग गये हैं। देशभर में इसका विरोध हो रहा है। देश में अलग-अलग क्षेत्रों की 130 हस्तियों ने खुला पत्र लिखकर कहा है कि साबरमती आश्रम जैसी ऐतिहासिक जगह से नवीनीकरण के नाम पर छेड़छाड़ करना इसकी पवित्रता को नुकसान पहुंचाने जैसा होगा।
पत्र लिखने वालों में महात्मा गांधी के परपोते राजमोहन गांधी, लेखक जीएन. देवी, फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन, स्वाधीनता सेनानी जीजी. पारीख, लेखिका और जवाहरलाल नेहरू की भांजी नयनतारा सहगल, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, हाइकोर्ट के रिटायर्ड जज एपी. शाह।
विरोध के मुख्य बिंदु—
★साबरमती आश्रम का यह रीडेवलपमेंट प्लान गांधी जी की ‘दूसरी हत्या जैसा’ है।
★यह महात्मा गांधी और स्वाधीनता संग्राम की विरासत है, स्मारक है। इसके सौन्दर्यीकरण और वाणिज्यीकरण में यह खो जाएगा।
★हर साल साबरमती आश्रम देखने लाखों भारतीय और विदेशी लोग आते हैं, लोगों को आकर्षित करने के लिए इस जगह को कभी वर्ल्ड क्लास मेकओवर की ज़रूरत नहीं पड़ी।
★इस जगह का आकर्षण इसकी वास्तविकता और सादगी में है, जो इसे गांधी जी और तत्कालीन परिवेश से जोड़ता है। इस नये प्रोजेक्ट में इसकी सादगी गुम हो जाएगी।
★कहा जा रहा है कि यह काम प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की सीधी निगरानी में पूरा होगा लेकिन यह परियोजना मौजूदा सरकार के उस प्रयास का हिस्सा लगती है, जिसके तहत वह गांधी से जुड़ी सभी स्मृतियों का व्यवसायीकरण कर देना चाहती है।
★चूंकि महात्मा गांधी की हत्या करने वालों की विचारधारा से सहमति रखने वाले कई लोग इस सरकार में भी हैं, इसलिए इन बातों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता।
परियोजना का विवरण—
गांधी आश्रम को ‘वर्ल्ड क्लास मेमोरियल’ बनाने की यह परियोजना गुजरात सरकार की है। इसी साल मार्च में मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की अध्यक्षता वाली समिति ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी। साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन को इसे पूरा कराने की ज़िम्मेदारी दी गई है। प्रस्तावित लागत 1200 करोड़ रुपये रखी गई है। इसके तहत साबरमती आश्रम रोड के दोनों तरफ निर्माण कार्य होने हैं।
साबरमती आश्रम के ऐतिहासिक स्वरूप को बदलने का ठेका अहमदाबाद की HCP डिज़ाइन्स, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी को दिया गया है। आश्रम अभी करीब 18 एकड़ भूमि में फैला है, जिसका प्रबंधन साबरमती आश्रम प्रिवेंशन एंड मेमोरियल ट्रस्ट (SAPMT) करता है।
नई योजना के तहत इसे करीब 55 एकड़ भूमि पर ‘गांधी आश्रम मेमोरियल’ के रूप में विस्तार दिया जाना है।
गांधी आश्रम के अलावा इसमें कथित तौर पर फूड प्लाजा से लेकर अन्य बिल्डिंग बनाए जाने और मौज-मस्ती वाले टूरिस्ट स्पॉट की तरह विकसित किए जाने की योजना है, जैसा कि जलियांवाला बाग के गंभीर, हजारों लोगों के बलिदानी तथा अंग्रेजी क्रूरता वाले ऐतिहासिक स्वरूप को बदलकर अब पिकनिक स्पॉट बना दिया गया है।
इतिहासकारों और तमाम अन्य हस्तियों ने अभी जो पत्र लिखा है, उसमें इस बात पर भी सवाल उठाए गए हैं कि गुजरात सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक की तमाम योजनाएं गुजरात के आर्किटेक्ट बिमल पटेल की कंपनी HCP डिज़ाइन्स को ही क्यों दी जाती हैं? वाराणसी के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से लेकर दिल्ली के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट तक के काम इस कंपनी को दिये गये हैं। शायद इसीलिए पत्र में लिखा गया है—
“संभव है कि इस कंपनी का काम बहुत अच्छा हो लेकिन फिर भी एक ही कंपनी को बार-बार काम मिलना सवाल खड़े करता है। बिमल पटेल द्वारा खड़ी की गई कोई भी कंक्रीट बिल्डिंग खादी के उस कपड़े से बेहतर नहीं होगी।”
पत्र में यह पूछा गया है कि क्या अब हम ‘एक देश, एक आर्किटेक्ट’ की दिशा में भी आगे बढ़ रहे हैं?