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ईवीएम मशीनों की प्रमाणिकता को लेकर उठ रहे सवालों के बीच एक आरटीआई के जरिए इस बात का खुलआ हुआ है कि मोदी सरकार ने वीवीपैट मशीनें प्राइवेट कंपनियों से खरीदने की मांग की थी. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, चुनाव आयोग ने सरकार की मांग को यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि किसी प्राइवेट कंपनी से वीवीपीएटी खरीदने से जनता के विश्वास को ठेस पहुंच सकता है.
चुनाव आयोग ने कहा था कि वीवीपीएटी को उन्हीं पब्लिक कंपनियों से बनवाया जाए जो पहले से इसे बनाती आ रही हैं. खबर के मुताबिक, साल 2016 में जब नसीम जैदी मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे तब कानून मंत्रालय ने जुलाई और सितंबर महीने केे बीच चुनाव आयोग को तीन पत्र लिखकर उससे इस पर राय मांगी थी.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने साथ ही इसकी लागत को लेकर भी सवाल किया था. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने साल 2019 के आम चुनावों का हवाला देते हुए लिखा था कि चुनाव से पहले वीवीपीएटी उत्पादन के टार्गेट को पूरा करने के लिए प्राइवेट कंपनियों को इस काम में शामिल किया जाना चाहिए. वीवीपीएटी के टार्गेट को पूरा करने में मदद के लिए प्राइवेट कंपनी को शामिल करने का सुझाव पीएमओ में 11 जुलाई 2016 को हुई बैठक में दिया गया था.
इस बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री मोदी के अतिरिक्त प्रधान सचिव पी. के. मिश्रा ने की थी. बैठक में चुनाव आयोग, कानून मंत्रालय और वित्त मंत्रालय से संबंधित अधिकारी शामिल थे. लेकिन चुनाव आयोग ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था. आयोग ने 19 सितंबर 2016 को मोदी सरकार को अपना ज़वाब भेजते हुए साफ कहा था कि यह बेहद ही संवेदनशील काम है. इसे निजी कंपनियों को नही सौपा जा सकता. इससे चुनाव प्रक्रिया की साख़ और निष्पक्षता पर प्रभाव पड़ेगा.
गौरतलब है कि अभी वीवीपीएटी मशीनों के निर्माण और आपूर्ति का जिम्मा भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) बेंगलुरु और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) हैदराबाद के पास है.