आरएसएस के मुखपत्र- ऑर्गेनाइजर 30 जनवरी, 1966 के अंक में प्रकाशित अपने एक लेख में गुरु गोलवलकर लिखते हैं कि : महिला अगर विधवा हो और शासक हो जाये तो मुल्क की बदनसीबी शुरू हो जाती है. उल्लेखनीय है कि गुरु गोलवलकर का यह लेख स्वर्गीय इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने के एक सप्ताह बाद प्रकाशित हुआ था.
गोलवलकर ने दावा किया कि महिलाओं को अधिकार प्रदान करना पुरुषों के लिए “महान मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल” होगा और “मानसिक रोग और व्याकुलता पैदा करेगा”।
(देखें पौला बैचेत्ता, हिंदू राष्ट्र में लिंग: आरएसएस महिलाएं आइडोलॉग्स के रूप में , पृष्ठ .24)
हिंदू कोड बिल मे महिलाओं को दिये गये समानता के अधिकार के खिलाफ बोलते हुये गोलवलकर ने कहा कि हिंदू कोड बिल “हिंदू समाज पर एक परमाणु बम से भी घातक है ”
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गोलवलकर ने महिलाओं की समानता और मुक्ति के विचार को “लिंगवाद” कहा और जातिवाद से तुलना की और कहा कि…
“यह हिंदू कोड बिल महिलाओं के लिए ‘समानता’ और पुरुष के वर्चस्व से उनकी मुक्ति के लिए मात्र एक कोलाहल है!” सत्ता के विभिन्न पदों में सीटों के आरक्षण का दावा उनके अलग लिंग के आधार पर किया जा रहा है, इस प्रकार एक और sex ism ’- the sexism!’ – को जातिवाद, सांप्रदायिकता, भाषावाद, आदि की श्रेणी में जोड़ा जाता है। (गोलवलकर, बंच आफ थाट , पृष्ठ 104, ऑनलाइन पीडीएफ संस्करण)
महिलाओं की आजादी के खिलाफ यूपी सीएम आदित्यनाथ का तेवर:
” गोलवलकर की राह पर निकले बीजेपी के ताजा पोस्टर ब्वाय यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने अंश ‘मातृशक्ति – भारतीय नारी शक्ति के संदर्भ में’ में कहा कि महिलाओं को आजादी की इजाजत नहीं होनी चाहिए। औरत स्वतंत्र या स्वतंत्र होने में सक्षम नहीं हैं … महिलाओं को जन्म से लेकर मृत्यु तक पुरुष सुरक्षा की आवश्यकता होती है … एक महिला को बचपन में उसके पिता द्वारा, उसके पति द्वारा उसकी युवावस्था में और उसके बुढ़ापे में उसके बेटे द्वारा … की रक्षा की जाती है।”
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वे कहते हैं, “जैसे अगर आप ऊर्जा को मुक्त और अनियंत्रित और अनियंत्रित छोड़ देते हैं, तो यह बेकार और विनाशकारी हो सकता है, इसी तरह ‘शक्ति स्वरूपा स्त्री- शक्ति के प्रतीक के रूप में महिला – वास्तव में स्वतंत्रता की आवश्यकता नहीं है, लेकिन सुरक्षा और साथ सार्थक भूमिका तटीकरण। ”
तब वह शास्त्रों को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि “अनियंत्रित, मुक्त महिलाएं जो पुरुष जैसे गुणों को प्राप्त करती हैं वे शैतानी हो जाती हैं।” (इकोनॉमिक टाइम्स, 20 मार्च 2017)
सवाल ये है कि महिलाओं और दलितों और अल्पसंख्यकों के प्रति संघ की सोच जगजाहिर है और उससे Bjp अलग हो ही नही सकती, फिर भी वह आज सफल है क्यूं? चिंतन का बिषय यह होना चाहिये ….