नई दिल्ली: वरिष्ठ आरएसएस नेता कृष्ण गोपाल ने सोमवार को दावा किय है कि छूआछूत की परंपरा भारत में इस्लाम के आने के बाद शुरू हुई है। इस्लाम के आने के बाद ही दलित शब्द इस्तेमाल में आया, इससे पहले इस शब्द का भारत में कोई स्थान ही नहीं था, यह ब्रिटिश राज का भारत को बांटने का षड़यंत्र था। एक किताब के लॉन्च के मौके पर गोपाल ने कहा कि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ इस विचारधारा पर विचार करता है कि देश में किसी भी तरह की कोई जाति नहीं होनी चाहिए।
कृष्ण गोपाल ने कहा कि छुआछूत का पहला उदाहरण इस्लाम के आने के बाद देखने को मिला। यह राजा दाहिर के घर में तब देखने को मिला जब उनकी रानियां जौहर (खुद को आग के हवाले करना) करने जा रही थीं। उन्होंने मलेच्छ शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहा था कि रानियों को जल्द जौहर करना चाहिए अन्यथा ये मलेच्छ उन्हें छू लेंगे जिससे वे अपवित्र हो जाएंगी। बता दें कि राजा दाहिर सिंध के आखिरी हिंदू राजा थे। यह भारत में छुआछूत का पहला उदाहरण था।
संघ नेता ने बताया कि कैसे जिन जातियों की पहले इज्जत की जाती थी वह अब पिछड़ी हो गई हैं। गोपाल कृष्ण ने कहा कि आज मौर्य एक पिछड़ी जाति है जो पहले ऊंची जाति हुआ करती थी। पाल बंगाल के राजा हुआ करते थे लेकिन आज वह पिछड़े हो गए हैं। आज बुद्ध की जाति शाक्य अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में आ गई है। हमारे समाज में दलित शब्द मौजूद नहीं था। यह अंग्रेजों की साजिश थी जो हमें बांटकर राज करना चाहते थे। यहां तक कि संविधान सभा ने भी दलित शब्द को तरजीह नहीं देते हुए उसकी जगह अनुसूचित जाति शब्द का इस्तेमाल किया था।
अंबेडकर ने खुद इस बारे में लिखा
कृष्णगोपाल ने कहा कि दुनिया के किसी भी देश के इतिहास में जहां इस्लाम पहुंचा वह खुद को बचा नहीं सका, लेकिन भारत में यह खुद को इसलिए बचा सका क्योंकि यहां अध्यात्म की जड़े काफी मजबूत है। भारत में उंची और नीची जात होती है, लेकिन छूआछूत नहीं होता है। जो लोग गाय का मांस खाते थे, उन्हें छूने से परहेज किया जाने लगा। यहां तक कि खुद अंबेडकर ने इस बारे में लिखते हैं, धीरे-धीरे यह पूरे देश में फैल गया।