रामपुर और आजम खान पिछले तीन दशकों से एक-दूसरे के पर्याय बन गए थे, लेकिन गुरुवार का विधानसभा उपचुनाव का जो नतीजा आया, उसने नई कहानी की शुरुआत कर दी है। 1980 के बाद से 10 बार रामपुर विधानसभा से चुने गए आजम खान को विधायकी से अयोग्य ठहराए जाने के बाद यहां उपचुनाव हुआ था।
आजम खान के चुनाव लड़ने पर रोक थी तो उन्होंने अपने करीबी आसिम रजा को ही उतार दिया। आसिम रजा भले ही उम्मीदवार के तौर पर सामने थे, लेकिन प्रतिष्ठा आजम खान की दांव पर थी लेकिन अब जब आसिम रजा हारे हैं तो उनसे ज्यादा यह आजम खान की भी हार है, जो गली-गली और नुक्कड़ – नुक्कड़ में उनके लिए प्रचार कर रहे थे।
रामपुर विधानसभा सीट पर अब तक 18 बार चुनाव और दो बार उपचुनाव हुए हैं। यह उपचुनाव रामपुर सीट का 20वां चुनाव है। इन चुनावों में 10 बार आजम खां ने और एक उपचुनाव में उनकी पत्नी डॉ. तजीन फात्मा ने जीत हासिल की है। वर्ष 2002 के बाद यह पहला मौका है जब इस सीट पर चुनाव में आजम खां या उनके परिवार से कोई उम्मीदवार नहीं है। अदालत से सजा के बाद चुनाव लड़ने और वोट डालने पर पाबंदी के नियम के चलते आजम खां के करीबी आसिम राजा को सपा का उम्मीदवार बनाया गया था।
बता दें कि रामपुर की जनता को अपना दर्द बताते हुए आज़म ख़ान ने कहा था कि आप लोग मेरे खून के आंसूओं का बदला चुनाव में लेना। अब मेरे साथ धोखा मत करना। मेरे पास धोखा खाने का वक्त नहीं है। इतना ही नहीं इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि हमारे यहां खुदकुशी हराम है इसलिए जिंदा हूं। अब तो देश निकाले का इंतजार कर रहा हूं। आप मेरे एक-एक आंसू का हिसाब नहीं दे सकते।
आज़म ख़ान का रामपुर की जनता ये सन्देश हर तरह से काफी मायने रखा जा रहा है, राजनीतिक अखाड़े में आज़म ख़ान की पहचान उत्तर प्रदेश के महारथियों में होती है। जेल से बाहर आने के बाद आज़म ख़ान के बयान ये दर्शाता है कि अब उनके किले के ढह जाने का खतरा है जो वो पूरी तरह से भांप चुके हैं। यह उपचुनाव आज़म ख़ान बनाम सरकार की तरह देखा जा रहा था।
अब ये देखना दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव में आजम खान और उनके पार्टी के प्रत्याशियों का प्रदर्शन कैसा रहेगा। उपचुनाव के बाद कई तरह आंकड़े बनाए जाने लगे हैं।