अलवर/मेवात: आर टी आई कार्यकर्ता सलीम बेग के नेतृत्व में नेशनल राईट्स रिसोर्स सेंटर (NRRC) की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम अलवर में गौ रक्षकों द्वारा 20 जुलाई 2018 को मॉब लिंचिंग में मारे गए रकबर के परिवार से मिलेI फैक्ट फाइंडिंग टीम में जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता, सुप्रीमकोर्ट के वकील और पत्रकार शामिल थेI फैक्ट फाइंडिंग टीम ने रकबर के घर कोलगाव (मेवात), घटना स्थल लालवंडी (रामगढ़), रामगढ़ पुलिस थाना के साथ साथ उस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का भी दौरा किया जहाँ पर रकबर को लिंचिंग के बाद लाया गया थाI
सुलेमान (रकबर के पिता ), अस्मिना (रकबर की पत्नी), सुभाष चंद् शर्मा (रामगढ़ पुलिस थाना के सब इन्स्पेक्टर) और डॉ निशान्त शर्मा (रामगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के मेडिकल ऑफिसर) से बातचीत के आधार पर 12 सदस्यीय फैक्ट फाइंडिंग टीम का मानना है कि रकबर की मौत मॉब लिंचिंग का नतीजा नहीं था बल्कि यह एक लक्षित हत्या थीI तथाकथित भीड़ एक मिथ्या है, यह अच्छी तरह से प्रशिक्षित और राइट विंग पार्टियों और संगठनों का एक समूह है जिसे सरकार की सुरक्षा और समर्थन हैI मीडिया और सरकार यह कहते हुए अपराध की तीव्रता को कम करने की कोशिश कर रही है कि यह भीड़ द्वारा किया गया अपराध हैI
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने कोलगांव में रकबर के पड़ोसीयों से भी बात की, तथा इस घटना की सीबीआई से जांच की मांग करने वाले सामाजिक संगठनों, रकबर इन्साफ कमिटी, एवं नेताओं से भी बात कर सभी का पक्ष समझने की कोशिश की. फैक्ट फाइंडिंग टीम का मानना है की इस घटना की जांच का आधार ही गलत है, अपराध में शामिल आरोपी के बयान पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी क्योंकि रकबर कोई बयान देने की स्थिति में नहीं थे जब उन्हें पुलिस स्टेशन पर लाया गया था वह पहले से ही मर चुका था ( (पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर)I रकबर को 1:30 AM के आसपास पुलिस स्टेशन और 4.00 AM के आसपास अस्पताल लाया गया थाI जबकि अस्पताल और पुलिस स्टेशन के बीच की दूरी केवल 200-300 मीटर है। यह उल्लेख करना जरूरी है कि रकबर के पोस्टमॉर्टम में भाग लेने वाले डॉ अबुल हसन ने उसके शरीर में कठोरता देखी जो स्पष्ट करता है कि वह चार घंटे पहले मर गया हैI
फैक्ट फाइंडिंग टीम के सदस्य एवं सर्वोच्च न्यायालय में वकील श्री शाद अनवर का कहना है, “FIR और पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट में विरोधाभास हैंI पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक रकबर की मृत्यु 12.30-1.00 AM बजे हुई। जो लोग अपराध के लेखक हैं वो एक लक्षित हत्या (मोब लिंचिंग) को एक हिरासत में हुई मौत में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। यह एक प्रकार से माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों का उल्लंघन और अदालत की अवमानना हैI”
पर्याप्त साक्ष्य की कमी के कारण पीड़ित के परिवार को न्याय मिलने की संभावनाएं बहुत ही कम हैI साथ ही साथ मुख्य हमलावर को गवाह के बनाने की साजिश से न्याय की उम्मीद कम हो गयी है I