विनायक दामोदर सावरकर को महाराष्ट्र में एक तबका अपना आदर्श और ‘वीर’ यानी बहादुर सावरकर मानता है तो वहीं बहुत बड़ी तादाद में लोग उन्हें एक बुजदिल, कमजोर हिन्दू मुसलमानों में तकसीम कराने और अंग्रेज सरकार से माफी मांगने फिर ब्रिटिश सरकार से हर महीने एक मोटी रकम लेकर आजादी की लड़ाई को कमजोर करने वाला करार देते हैं।
गुजिश्ता दिनों भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस लीडर राहुल गांधी ने महाराष्ट्र में ही सावरकर और आदिवासी रहनुमा बिरसा मुण्डा के दरम्यान मुकाबला करते हुए कह दिया कि सावरकर ने जेल की परेशानियां से डर कर अंग्रेज हुकूमत से माफी मांग कर रिहाई हासिल की थी, जबकि बिरसा मुण्डा ने माफी मांगने के बजाए कमउम्री में ही देश पर शहीद होना बेहतर समझा था।
राहुल गांधी ने सावरकर को देशद्रोही या आजादी की जंग का दुश्मन नहीं कहा था सिर्फ इतना ही कहा था कि सावरकर ने ब्रिटिश सरकार से माफी मांगकर गांधी, नेहरू और सरदार पटेल के साथ धोका किया था। राहुल ने सिर्फ एक तारीखी वाक्या बयान किया था सावरकर को बुरा भला नहीं कहा था। इसके बावजूद शिवसेना के दोनों ग्रुपों और बीजेपी ने राहुल के बयान पर सख्त एतराज किया। सावरकर के परपोते ने राहुल गांधी के खिलाफ पुलिस में बाकायदा एफआईआर दर्ज करा दी।
शिवसेना लीडर उद्धव ठाकरे ने तो सिर्फ इतना ही कहा कि वह राहुल गांधी के बयान से इत्तेफाक नहीं करते क्योकि वह सावरकर का बहुत एहतराम करते हैं, लेकिन उनके चीफ तर्जुमान और राज्य सभा मेम्बर संजय राउत ने कहा कि राहुल गांधी को इस किस्म के बयानात से बचना चाहिए था इस किस्म के बयानात से महाविकास अघाड़ी पर असर पड़ सकता है।
राहुल गांधी का बयान आया तो बीजेपी और शिवसेना के दोनों धड़ों ने उसकी जितनी मुखालिफत की उससे कई गुना ज्यादा शोर राहुल मुखालिफ टीवी चैनलों ने मचाया तकरीबन सारे चैनल इस कोशिश में लगे दिखे कि किस तरह वह शिवसेना, उद्धव ठाकरे, एनसीपी और कांग्रेस की महाअघाड़ी को तुड़वा सके।
यह तो कोई नहीं कह सका कि सावरकर के बारे में राहुल गांधी ने जो तारीखी हकायक (तथ्य) सामने रखे वह गलत हैं। बस एक ही बात तमाम चैनलों के एंकर कहते रहे कि राहुल गांधी को महाराष्ट्र में यह बयान नहीं देना चाहिए था और इस बयान के लिए यह मुनासिब वक्त भी नहीं था।
चैनलों के दबाव में आकर संजय राउत ने यह तक कह दिया कि सावरकर पर बयान देकर राहुल ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा पर पानी फेर दिया है। संजय राउत और उनके हम ख्याल लोग क्या यह समझते हैं कि सावरकर पर बयान देने से दक्खिन भारत की चारों-पांचों रियासतों और उत्तर में सावरकर का कोई ऐसा असर है कि उसपर बयान देने से राहुल गांधी की यात्रा पर कोई असर पड़ने वाला है। यह उनकी खाम ख्याली है क्योंकि खुद महाराष्ट्र में ही राहुल गांधी की सियासत पर इससे कोई असर नहीं पड़ने वाला। महाराष्ट्र के अवाम में तीन नजरियात (धारा) के लोग हैं।
एक वह जो तमाम कमजोरियों के बावजूद कांग्रेस के हामी हैं, दूसरे अम्बेडकरवादी और तीसरे जो शिवाजी महाराज और सावरकर को मानते हैं। शिवसेना के दोनों ग्रुप और बीजेपी तीनों ही सावरकर के नाम की सियासत करते हैं। सारवरकर के हामियों की तादाद बमुश्किल बीस फीसद है और वह बीस फीसद भी तीन जगह बंटे हुए हैं इसमें राहुल ने अपना कौन सा सियासी नुक्सान कर लिया वह बीस फीसद तो कभी कांग्रेस के वोटर ही नहीं रहे।
राहुल ने सावरकर पर बयान देकर गुजरात की सियासत पर असर डालने की कोशिश की है। उनके जेहन में गुजरात एलक्शन भी जरूर रहा होगा।इसीलिए उन्होने कहा कि सावरकर ने ब्रिटिश हुकूमत से माफी मांगकर महात्मा गांधी को धोका दिया। राहुल ने बिल्कुल ठीक कहा सावरकर ने माफी मांगी, यह तो उनके पैरोकार भी मानते हैं। लेकिन वह सावरकर के गुनाह को छिपाने के लिए कहते हैं कि सावरकर ने जेल से निकलने की गरज से हिकमते अमली (रणनीति) के तहत माफी मांगी थी ताकि बाहर निकलकर अपना काम कर सकें। यह बिल्कुल झूट है। क्योकि माफी मांगकर जेल से निकलने के बाद सावरकर का आजादी की लड़ाई में कोई तआवुन (सहयोग) नहीं रहा, उल्टे उन्होने माफी नामे में किए गए वादे के मुताबिक वह पूरी जिंदगी अंग्रेजों की गुलामी करते रहे।
जब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अंग्रेजों से लड़ने के लिए आजाद हिंद फौज में नौजवानों की भर्ती करा रहे थे उस वक्त सावरकार हिन्दू महासभा के जरिए आजादी की लड़ाई के सिपाहियों से मुकाबला करने के लिए हिन्दू नौजवानों से ब्रिटिश आर्मी में शामिल होने की अपील कर रहे थे। आखिर यह उनकी कौन सी हिकमते अमली थी जिसके तहत वह अंग्रेज हुकूमत से बाकायदा हर महीने वजीफे के नाम पर पैसा लेते रहे।
अगर उन्होने गांधी, नेहरू, सरदार पटेल और मौलाना आजाद जैसे आजादी के सिपाहियों के साथ धोकेबाजी नहीं की थी तो उनकी हिन्दू महासभा ने मोहम्मद अली जिनाह की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर बंगाल और नार्थ वेस्ट फ्रंटियर सूबों में सरकार क्यों बनाई थी। क्या उन्होने और उनके साथी श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारत छोड़ों तहरीक के दौरान ब्रिटिश हुकूमत को खत लिखकर यह मश्विरा नहीं दिया था कि भारत छोड़ो आंदोलन को कैसे कमजोर किया जा सकता है?
क्या सावरकर ने अपनी किताब में गाय का गोश्त खाने वालों की वकालत नहीं की? उन्होने तो यहां तक लिख दिया कि ‘गाय एक ऐसा गंदा जानवर है जो अपने ही गोबर और पेशाब में लोटती रहती है यह हमारे लिए पूजा के लायक कैसे हो सकती है?’ क्या सावरकर ने अपने माफीनामे में यह नहीं लिखा था कि अगर सरकार उन्हें जेल से रिहा कर दे तो वह अपनी पूरी जिंदगी ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी में गुजारेंगे।
राहुल मुखालिफ लोग यह भी कह रहे हैं कि राहुल की दादी इंदिरा गांधी ने सावरकर पर डाक टिकट जारी किया था और पार्लियामेंट के गलियारे में उनकी तस्वीर लगवाई थी, ऐसा कहने वाले इस हकीकत पर पर्दा डालते हैं कि इंदिरा गांधी के जमाने में सावरकर के माफीनामे की फाइल देश और दुनिया के सामने नहीं थी। यह फाइल तो इंदिरा गांधी की शहादत के एक साल बाद 1985 में बीजेपी के ही मतालबे पर होम मिनिस्टर ने निकाल कर सबके सामने रख दी थी।
अंग्रेजों से माफी मांग कर जेल से रिहा होने वाले और अंग्रेजों से लड़ते हुए देश के लिए शहादत देने वालों में जो फर्क होता है वह पोर्ट ब्लेयर में साफ दिखता है। जिस सेल्युलर जेल में सावरकर कैद किए गए थे उसी में मौलाना फजले हक खैराबादी भी कैद में थे।
जिस जज की अदालत में मौलाना का मुकदमा चल रहा था उस जज ने मौलाना से भरी अदालत में कहा कि अगर आप अदालत से सिर्फ जबानी माफी मांग लें कुछ लिखकर न दें तो भी मैं आपको बाइज्जत बरी कर दूंगा। मौलाना ने कहा कि ब्रिटिश हाकिमों और उसके जजों से माफी मांगने का तो कोई सवाल ही नहीं होता। एक सावरकर थे जिन्होने खुद और उनके घर वालों ने ब्रिटिश हुकूमत को नौ बार खत लिखकर माफी मांगी। मौलाना खैराबादी का सेल्युलर जेल में इंतकाल हो गया। उन्हें पोर्ट ब्लेयर के बीचो-बीच में एक ऊंची जगह पर सुपुर्दे खाक किया गया।
मौलाना का मकबरा बना है। आज तक पोर्ट ब्लेयर में रहने वालों की अक्सरियत ऐसी है जो लोग अपना काम खत्म करने के बाद शाम को घर जाने से पहले ‘बाबा के मजार’ (मौलाना फजले हक खैराबादी की कब्र) पर हाजिरी देने के बाद ही घर जाते हैं। हाजिरी देने वालों में हिन्दू-मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी तबकों के लोग शामिल रहते हैं। लाल कृष्ण आडवानी मुल्क के होम मिनिस्टर थे तो उन्होने पोर्ट ब्लेयर जाकर सावरकर पर बड़ा जलसा कराया था। जेल के जिस सेल में सावरकर कैद थे उसे सावरकर की यादगार में तब्दील कराया था। इसके बावजूद पोर्ट ब्लेयर और पूरे अण्डमान में कोई सावरकर का नाम नहीं लेता।