मेरे किसान साथी,
हम कभी मिले नहीं है, लेकिन मेरी इज्जत आपके हाथ में है। बहुत मुश्किल से मेरी यह चिठ्ठी आपके हाथ तक पहुंची है। इसे ध्यान से पढ़ना जी आपको पता होगा कि देश के करोड़ों किसानों ने अपनी फसल और आने वाली नसल को बचाने के लिए एक ऐतिहासिक आंदोलन लड़ा। दिल्ली के बॉर्डर पर सर्दी, गर्मी, बरसात सही। सरकारी लाठियाँ खाई, दरबारी लोगो की गालियां सुनी। इस संघर्ष में 700 से ज्यादा किसान साथियों ने शहादत दी। इस ऐतिहासिक आंदोलन ने सरकार को किसान विरोधी कानून वापिस लेने पर मजबूर किया।
आपने इस आंदोलन के बारे में सुना होगा। हो सकता है आप या आपके परिवार या गाँव से कोई इस आंदोलन में जुड़ा भी हो। हो सकता है आप खुद गए न हों, लेकिन घर से ही इस आंदोलन से जुड़े हों। इस आंदोलन की जीत से हर किसान को गर्व हुआ, आपको भी हुआ होगा। किसान की एकता बनी रहे, किसान और लड़ाइयां भी जीते, इसमें हम सबका भला है। इसलिए इस आंदोलन का एक सिपाही होने के नाते मैं आपको अपना सगा समझ कर यह चिठ्ठी लिख रहा हूँ।
आपने लखीमपुर खेरी कांड के बारे में सुना होगा। शायद आपने वीडियो भी देखा हो जिसमें बीजेपी के मंत्री अजय मिश्र टेनी का बेटा निहथ्थे आंदोलनकारी किसानो को गाड़ी से रौंद रहा है। इस हत्याकांड में चार किसान और एक पत्रकार शहीद हुए। गुंडागर्दी ख़त्म करने का दावा करने वाली योगी सरकार ने इस मामले में क्या किया? हत्यारों को पकड़ने की बजाय उन्हें बचाया। सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई तब जाकर मंत्री के बेटे को पकड़ा। कोर्ट की जांच साफ़ कहती है कि इस हत्या के पीछे पड़यल था, लेकिन असली पड्चलकारी मंत्री अब भी छुट्टा घूम रहा है। क्यों? क्योंकि बीजेपी को चुनाव में अजय मिश्र टेनी की जरूरत है। इनके लिए किसानो की हत्या से ज्यादा बड़ा सवाल वोट का है।
यही नीयत किसान विरोधी कानूनों के पीछे थी जो हमारी फसल को ही नहीं हमारी नस्ल को नष्ट कर देते। पहले बीजेपी सरकारों ने इन कानूनों का विरोध कर रहे किसानों पर आंसू गैस चलाई, वाटर कैनन बरसाया, लाठीचार्ज किया और झूठे मुकदमे बनाये, आंदोलनकारियों को दलाल, आतंकवादी और देशद्रोही बताकर हम किसानों का अपमान किया। फिर जब लगा कि चुनाव हार सकते हैं तो तीनो कानूनों को वापिस ले लिया। हमें आश्वासन देकर मोर्चा उठवा लिया और अब अपने लिखित वादे से मुकर गए हैं।
हम किसानों के अपमान करने वाली बीजेपी को सबक सिखाने के लिए आज मुझे आपकी मदद चाहिए। बीजेपी सरकार सच-झूठ की भाषा नहीं समझती, अच्छे-बुरे में भेद नहीं समझती, संवैधानिक या असंवैधानिक का अंतर नहीं जानती। बस यह पार्टी एक ही भाषा समझती है — वोट, सीट, सत्ता। कुछ ही दिनों में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी 2017 के विधानसभा चुनाव में किसानों को किये अपने वादों से पलट गयी है। वादा था की सभी किसानों का सारा लोन माफ होगा, लेकिन हुआ सिर्फ 44 लाख का और वो बस एक लाख रुपये तक का वादा था गन्ने की पेमेंट 14 दिन में दिलाने का बकाया पैसे का ब्याज दिलवाने का सो नहीं हुआ। वादा था पर्याप्त और सस्ती बिजली का लेकिन देश की सबसे महंगी बिजली उत्तरप्रदेश में कर दी। वादा था फसल की दाना-दाना खरीद का, लेकिन धान की पैदावार का तिहाया और गेंहू की पैदावार का छटांश भी नहीं खरीदा वादा था गोवंश की रक्षा का, लेकिन आज पूरे प्रदेश का किसान छुट्टे जानवर की मुसीबत से बेहाल है। आज प्रदेश में पलायन करता मजदूर है, भटकता बेरोजगार है और बेहाल किसान है।
सौ बातों की एक बातः इस किसान विरोधी बीजेपी सरकार के कान खोलने के लिए इसे चुनाव में सजा देने की जरूरत है। सजा कैसे देंगे, यह मुझे बताने की जरूरत नहीं। आप खुद समझदार हैं। भाजपा का जो नेता आपसे वोट मांगने आए उससे इन मुद्दों पर सवाल जरूर पूछें। एक किसान का दर्द किसान ही समझ सकता है मुझे विश्वास है आप वोट डालते वक्त मेरी इस चिट्ठी को याद रखेंगे। यह चिट्ठी उत्तर प्रदेश के हर किसान तक भेजना मेरे बस की बात नहीं हैं। आप खुद इसे छापकर आगे बॉर्ट या फोन से शेयर करें।