प्रधानमंत्री ने संसदीय दल की बैठक में कश्मीर फाइल्स फिल्म का जिक्र कर कहा कि आजादी के बाद की प्रमुख घटनाओं पर फिल्म बननी चाहिए। उन्होंने मार्टिन लूथर और नेल्सन मंडेला का नाम लेते हुए कहा कि सारी दुनिया इनकी बात करती है लेकिन दुनिया गांधीजी पर बहुत कम चर्चा करती है। उन्होंने आगे कहा कि अगर किसी ने गांधी जी पर बहुत पहले फिल्म बनाई होती तो शायद हम मैसेजिंग कर पाते। पीएम ने बताया कि पहली बार एक विदेशी फिल्म निर्माता ने गांधी जी पर फिल्म बनाई, जिस पर ढेर सारे पुरस्कार मिले। इसके बाद दुनिया को पता चला कि महात्मा गांधी इतने महान व्यक्ति थे। निश्चित रूप से यह प्रधानमंत्री की राय है और इसका मतलब यह नहीं है कि फिल्म आने तक वे भी गांधी जी के बारे में नहीं जानते होंगे। तथ्य यह भी है कि एक फिल्म गुजरात पर भी बनी है जो प्रदर्शित नहीं होने दी गई थी।
जनसत्ता की एक खबर के अनुसार, रणविजय सिंह नाम के टि्वटर हैंडल से प्रधानमंत्री के वीडियो को शेयर कर लिखा गया है, ‘ये गांधी को कितना कम आंक रहे हैं, मतलब कुछ भी…। इसके साथ लिखा गया कि गांधी फिल्म 1982 में आई थी। पीएम के कहे अनुसार तब तक दुनिया को पता नहीं था कि गांधी कितने महान थे। मंडेला खुद को गांधी का आदर्श मानते थे। पीएम के अनुसार, मंडेला को दुनिया जानती थी लेकिन गांधी को 1982 में फिल्म बनने के बाद जान पाई। कुछ लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि कश्मीर फाइल्स का प्रचार जनता कर रही है तो लोगों को एतराज क्यों है। उन्हें इस फिल्म के लिए प्रधानमंत्री जो कर रहे हैं उसकी जानकारी नहीं है। जानकार इसे डॉग विसिल बजाना कह रहे हैं। हालांकि गांधी को लेकर आरएसएस का रुख शुरू से दिलचस्प रहा है।
प्रधानमंत्री अब जो कह रहे हैं और भले अपने बारे में नहीं कह रहे हों, इस तथ्य के बावजूद कह रहे हैं कि 26 जनवरी 1961 को अमेरिका ने भारत के बाद सबसे पहले गांधी जी पर डाक टिकट जारी किया था। इसके बाद कांगों ने 1967 में ऐसा किया 1969 में गांधी जी की सौवीं जयंती पर 40 से ज्यादा देशों ने एक ही दिन उनपर डाक टिकट जारी किए थे। नरेन्द्र मोदी का जन्म 1950 में हुआ बताया जाता है और इस हिसाब से उस साल, वे 19 वर्ष के रहे होंगे। मैं पांच ही साल का था इसलिए मुझे तो याद नहीं था मैंने बाद में पढ़ा पर 40 देशों ने जिस साबरमती के संत पर एक दिन में 40 से ज्यादा देशों ने डाक टिकट जारी किया उसके बारे में गुजरात का ही कोई 19 साल का बच्चा नहीं जानता हो और 1982 में फिल्म से जाना हो – यह संभव नहीं है। इसलिए प्रधानमंत्री अपनी बात नहीं कह रहे हैं, वे फिल्म का महत्व बता रहे हैं।
जनसत्ता में साथ रहे, Ambrish Kumar ने काफी पहले लिखा था (संपादित अंश) …. अपने घर में महात्मा गांधी की आदमकद फोटो थी शीशे में मढ़ी हुई। इसलिए उसे सीमेंट की खुली आलमारी के सबसे ऊपर के हिस्से में रखा जाता था। वह बड़ी फोटो पापा रेलवे की नौकरी के समय से संभाल कर रखते थे। वैज्ञानिक, रिसर्च असिस्टेंट, क्लर्क से लेकर असिस्टेंट डाइरेक्टर तक उस कालोनी में रहते थे। उनमें एक अंकल से करीबी रिश्ता था। अमूमन शाम को आ जाते …. जब भी आते वे गांधी की फोटो देख चिढ़ते और बोलते इसने तो देश बांट दिया ठीक किया गोडसे ने जो मार दिया। बच्चे थे पर बात तो सुनते ही रहते थे। धीरे-धीरे दिमाग बन गया और उस फोटो से चिढ़ पैदा हो गई ….. एक दिन हम भी गोडसे बने और इस शीशे की फोटो को तोड़ दिया। …. मम्मी ने ठीक से पिटाई की।
शाम को पापा आये, उन्हें बताया गया तो उन्होंने फिर बिना मुरव्वत और ठीक से पीटा। फिर पूछा गया कि यह किया क्यों तो मैंने बताया अंकल ही तो रोज-रोज कहते थे, गोडसे ने ठीक किया। यह सुनकर उनका पारा और चढ़ गया। एक रूल लेकर फिर पिटाई की, कहा तू गोडसे बनेगा, मूर्ख, बौड़म, वे तो आरएसएस के हैं अफवाह फैलाकर बेवकूफ बनाते है। …. उस घटना के बाद उन अंकल ने बहुत कोशिश की आगे कुछ समझाने की पर मैं और बब्बू (बचपन का मित्र और फोटो को गोली मारने में मददगार) दोनों तय कर चुके थे इन आरएसएस वालों के चक्कर में फिर नहीं फंसना है। उसके बाद कभी फंसे भी नहीं. …. वर्ना मैं भी कोई बड़ा प्रचारक तो बन ही जाता। बहरहाल इस कहानी का सिर्फ एक किरदार मैं ही बचा हूं। न वे अंकल रहे, न पापा रहे न अपना बचपन का मित्र सरदार रहा।
जनसत्ता में संवाददाता रहे Pradeep Srivastava ने एक बार किसी चर्चा में कहा था, मैं भी दस साल शाखा गया हूं। रज्जू भईया जब प्रांतीय अध्यक्ष थे तो रानी की सराय मे दो दिन शीत शिविर भी किया। दर्जा छह में था। बचपन से गांधी के प्रति नफरत भर गई थी। इजराइल महान देश था मेरे लिए। यह शाखा में दिए भाषण का असर था। पढ़ना लिखना था, सो इंटर तक संघ का असर खत्म होने लगा। आजमगढ़ कोट मोहल्ले के मुस्लिम लड़के दोस्त बने। एक मुस्लिम लड़की के पीछे पड़ा तो मुस्लिम दोस्तों ने मदद की। लेकिन संघ से असल नफरत तब हुई जब गांधी फिल्म देखी। सरस्वती टाकीज से बीएचयू हास्टल आया और बिस्तर पर फूट-फूट कर रोया। पश्चाताप में। 1992 में शरद यादव के साथ मैं यूपी अकेले घूम रहा था तो मैंने उनसे कहा, भाई साहब रिचर्ड एटनबेरो ने हिंदुस्तान पर बहुत बड़ा अहसान किया है। हमारे जैसे कइयों को ठीक से बताया कि गाँधी जी क्या थे। शरद यादव ने तुरंत कहा, तुम ठीक कह रहे हो। कहने की जरूरत नहीं है कि यहां ‘ठीक से’ रेखांकित किया जा सकता है।
जहां तक मेरी बात है, मेरा परिवार कांग्रेसी रहा है और मैं बचपन से जानता रहा हूं कि मेरे पिताजी के चाचा ने एक ब्राह्मण द्वारा गांधी जी की हत्या कर दिए जाने के विरोध में जनेऊ पहनना छोड़ दिया था। इसलिए, गांधी और आरएसएस को लेकर मुझे बचपन से कभी कोई भ्रम नहीं रहा। मोहल्ले के आरएसएस वाले अंकलों का प्रवेश मेरे घर में वैसे ही वर्जित था। गांधी फिल्म आई तब मैं कॉलेज में था। फिल्में नहीं देखता हूं और ज्यादातर फिल्मों में सोता रहा हूं। गांधी फिल्म भी मैंने नहीं देखी, हॉल में सो गया। लगा इसमें नया क्या है। यह मेरी शुरुआती फिल्मों में थी। बाद में मैं अच्छी-अच्छी फिल्मों में सोता रहा हूं। लेकिन ऐसा नहीं है कि मैंने गांधी या गोड्से को फिल्म से ही जाना। या फिल्म नहीं देखी तो गांधी को किसी से कम जानता हूं। या आरएसएस वालों के बहकावे में आ जाउंगा या पार्टी विशेष, चुनाव लड़ने का टिकट लेने के लिए भी गांधी जी की तस्वीर पर गोली चलाउंगा।