उत्तर प्रदेश : लखीमपुर: 13 अगस्त 1977 को तेज बारिश हो रही थी,इंदिरा गांधी पटना तक फ्लाइट से पहुंचीं। इसके बाद कार से बेलछी के लिए निकल पड़ी,कार कुछ दूर ही चल सकी क्योंकि कीचड़ की वजह से आगे जाना मुश्किल था, इसके बाद ट्रैक्टर का सहारा लिया गया,साथ चल रहे लोगों ने कहा कि मौसम को देखते हुए कार्यक्रम स्थगित कर दिया जाना चाहिए।
लेकिन इंदिरा गांधी अपने फैसले पर अड़ी रहीं,इसके बाद आगे नदी थी।
नदी पार करने के लिए हाथी का इंतजाम किया गया, हाथी पर बैठने के लिए हौदा नहीं था लेकिन इंदिरा ऐसे ही बैठने को तैयार हो गईं।
एक बार फिर से 54 साल बाद 3 अक्टूबर 2021 को इतिहास अपने आप को दोहरा रहा हैं,
दिल्ली से प्रियंका गाँधी फ़्लाइट से लखनऊ पहुँची, संयोग देखिए कि कल भी भारी बारिश हो रही थी,
अपने आवास से कार द्वारा लखीमपुर में हुए किसान नरसंहार के पीड़ित परिजनों से मिलने निकली पड़ी,लेकिन योगी की पुलिस उन्हें रोकने लगी,फिर क्या था, प्रियंका गाँधी पैदल ही चल पड़ी अन्नदाताओं के परिजनों से मिलने।
इस दौरान पुलिस के द्वारा कई जगहों पर रोकने का असफल प्रयास किया गया।
तेज़ बारिश अब भी जारी थी, यहाँ तक कि टोल प्लाज़ा पर ट्रक लगा कर भी रोकने का प्रयास किया गया।
लेकिन प्रियंका गाँधी चलती रही, इस दौरान पुलिस ने अन्य कार्यकर्ताओं के साथ बहुत ही अभद्रता का परिचय देते उन्हे धक्का मुक्की किया,कई गाड़ियों को तोड़-फोड़ किया।
पुलिस ने कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को धक्का देकर पीछे धकेलने की घिनौनी कोशिश की।
लेकिन इसके बाद भी प्रियंका गाँधी लखीमपुर नरसंहार के शिकार अन्नदाताओं के परिजनों से मिलने के लिए अड़ी हुई हैं,
प्रियंका गाँधी जी को पुलिस सीतापुर में गिरफ़्तार कर के अभी भी रोकी हुई हैं। किसी एक महिला कार्यकर्ता के साथ पुलिस की बर्बरता और घिनौना बरताव बेहद शर्मनाक है।बीजेपी की राज्य सरकारें और केंद्र सरकार की नियत किसानों के प्रति ठीक नही लगती।यही कारण है कि किसानों के आंदोलन को हर तौर से कई तरकीबो के तहत खदेड़ने के प्रयास किए जा रहे है।
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कल जो किसान परिजनों के आठ लोगों की हत्या की गई इसके लिए जिम्मेदार और गुनहगार आखिर कौन हो सकता है? यूपी सरकार ने हर मृतक के परिजन को 45 लाख रुपए की मदद की घोषणा की है। किसी के जानकी इतनी सी कीमत देकर चुकाई जा सकती है ? ऐसा किसने सोचा भी नहीं था।
लेकिन, शायद, अंग्रेजों के शासन काल की याद दिलाने वाली पुलिस और इस ज़ालिम तानाशाही सरकार को ये नही मालूम हैं कि ये इंदिरा गाँधी का खून हैं।
इतना तो तय है कि अब तो बिना अन्नदाताओं के परिजनों से मिले वो वापस नही जायेंगी।