पेट काट कर रेलवे की तैयारी करते हैं। मोदी सरकार का हर तर्क झूठा है कि कोरोना के कारण तीन साल से परीक्षा नहीं हुई है। इस तीन साल में छात्रों ने कितनी बार कोचिंग की होगी। कितने परेशान रहे होंगे। अब जब सड़क पर उतरे हैं तो प्रधानमंत्री की तरफ़ से हस्तक्षेप की नौटंकी हो सकती है। तब भी इस सवाल का जवाब उन्हें देना चाहिए कि तीन साल तक यह परीक्षा क्यों लटकी रही? जल्दी ही गोदी मीडिया मोदी की महानता के बहाने इस बहस में प्रवेश करेगा और फिर इस मुद्दे के लीपापोती की जाएगी। उन्हें पता नहीं कि वेटिंग लिस्ट वाले नौजवान भी नियुक्ति का इंतज़ार कर रहे हैं। बात यहीं तक सीमित नहीं है।
केंद्र सरकार के अलग अलग विभागों में आठ लाख से अधिक पद ख़ाली है। ये सरकार का संसद में दिया आँकड़ा है। इसमें वो संख्या नहीं है कि 2014 के बाद से मोदी सरकार ने पदों की संख्या में कितनी कटौती की है। जब देश इतनी तरक़्क़ी कर रहा है तो फिर सरकारी पदों की संख्या क्यों सिमटती गई है? साढ़े आठ लाख पद क्यों ख़ाली हैं? क्यों नहीं इन पदों को साल भर के भीतर भरा जाता है ? सरकार भर्ती की बात नहीं करती है। नाराज़ छात्रों से कोई मंत्री नहीं मिलता। मिलेगा तो किस मुँह से मिलेगा कि हमने भर्ती बंद कर आपको बर्बाद कर दिया ?