नई दिल्ली : संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर 22 जुलाई से मानसून सत्र के अंत तक संसद के समक्ष किसानों के विरोध प्रदर्शन की तैयारी जोरों पर है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और यहां तक कि पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे दूर के राज्यों से किसान और नेता विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए दिल्ली की सीमाओं पर पहुंच रहे हैं।
एसकेएम की योजना के अनुसार प्रदर्शन योजनाबद्ध, व्यवस्थित और शांतिपूर्ण तरीके से आयोजित किया जाएगा, जिसमें 200 किसान प्रतिदिन विरोध प्रदर्शन में भाग लेंगे।
एसकेएम दोहराता है कि भारत के किसानों को अपने देश की राजधानी में रहने और अपनी शिकायतों को संसद में ले जाने, जो भारत की लोकतंत्र का सर्वोच्च संस्थान है, का पूरा अधिकार है। किसानों को विरोध करने से रोकने का कोई भी प्रयास अवैध और असंवैधानिक होगा। इस संबंध में, एसकेएम के कई नेताओं ने एसकेएम और घटक संगठनों के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से वीडियो जारी किया है।
इसमें पूरे भारत के किसानों से विरोध में शामिल होने और अहंकारी केंद्र सरकार को यह दिखाने का आग्रह किया गया कि, किसान सरकार को अपनी बात समझाने के लिए संकल्पबद्ध हैं और कॉर्पोरेट हितों की सेवा के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए काले कानूनों को निरस्त किए जाएं।
17 जुलाई को, एसकेएम लोकसभा और राज्यसभा के सभी गैर-एनडीए सांसदों को पत्र जारी कर मांग करेगा कि वे संसद में किसानों की मांगों को उठाएं और सुनिश्चित करें कि इन मांगों पर चर्चा की जाए और संसद में कोई अन्य कार्य करने से पहले उन्हें पूरा किया जाए। जहाँ तक संभव है, ये पत्र व्यक्तिगत सांसदों को उनके आवास/कार्यालय पर पहुँचाए जाएंगे या अन्यथा उन्हें ईमेल किया जाएगा।
एसकेएम दोहराता है कि यह सुनिश्चित करना गैर-एनडीए सांसदों का कर्तव्य है कि किसानों की मांगें संसद के एजेंडे में सर्वप्रमुख हों और सरकार किसानों और उनके मुद्दों को दरकिनार नहीं कर सके। यदि विपक्षी दल किसानों के प्रति उनके समर्थन के लिए गंभीर है, तो उन्हें केंद्र सरकार से उसी संकल्प के साथ मुकाबला करना चाहिए जो किसान दिल्ली की सड़कों और सीमाओं पर सात महीनों के चल रहे विरोध प्रदर्शन में दिखा रहे हैं।
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एसकेएम ने हाल ही में हरियाणा में भाजपा द्वारा कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के परिसरों में पार्टी की बैठकों और राजनीतिक गतिविधियों को आयोजित करने की प्रथा की निंदा की। पूरे हरियाणा में भाजपा-जजपा नेताओं के सामाजिक बहिष्कार के बाद, उन्होंने शिक्षण संस्थानों में पार्टी की बैठकें करने की यह अवैध गतिविधि शुरू कर दी है, जो किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं है।
हिसार और सिरसा में ऐसी बैठकें हुईं जिनका किसानों ने कड़ा विरोध किया और परिणामस्वरूप इन बैठकों को रद्द करना या अधूरा छोड़ना पड़ा। एसकेएम ने छात्रों, शिक्षकों और राज्य के लोगों का आह्वान किया कि वे शिक्षण संस्थाओं के परिसरों को भाजपा के पार्टी कार्यालयों के रूप में इस्तेमाल करने, और लोगों पर भाजपा की इच्छा थोपने के लिए राज्य मशीनरी का उपयोग करने की इस खतरनाक प्रवृत्ति का विरोध करने के लिए एकजुट हों।