योगी सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून ला रही है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। कम से कम व्यक्तिगत रूप से मैं तो इससे 100% सहमत हूँ। योगी सरकार ने 19 जुलाई तक लोगों से राज्य विधि आयोग द्वारा बनाए “जनसंख्या नियंत्रण ड्राफ्ट” के लिए सुझाव या आपत्तियाँ माँगा है और www.upslc.upsdc.gov.in पर इसे कोई भी दर्ज करा सकता है।
इस प्रस्ताव के प्रमुख बिन्दुओं को पहले समझ लीजिए
1- वन चाइल्ड पाॅलिसी स्विकार करने वाले BPL श्रेणी के माता पिता को विशेष तौर पर प्रोत्साहित करने का प्रस्ताव है। जिसके तहत माता पिता यदि पहला बच्चा पैदा होने के बाद नसबंदी करा लें तो वह बच्चा बालिग होने पर ₹77 हज़ार और लड़की हुई तो ₹1 लाख सरकार की तरफ से दिया जाएगा। ऐसे माता पिता की पुत्री को उच्च शिक्षा तक पढ़ाई मुफ्त दी जाएगी जबकि पुत्र हुआ तो 20 वर्ष तक निःशुल्क शिक्षा मिलेगी।
2- ऐसे माता पिता जिनके दो बच्चे हैं और वह सरकारी नौकरी में हैं , यदि वह अपनी स्वेच्छा से नसबंदी करा लेते हैं तो उनको दो अतिरिक्त इन्क्रीमेन्ट , प्रमोशन , सरकारी आवासीय योजना में छूट , PF में एंप्लायर कांट्रीब्यूशन जैसी सुविधा मिलेगी। पानी , बिजली और हाउसटैक्स में भी छूट मिलेगी।
3- ड्राफ्ट के अनुसार कानून लागू होने के बाद जो कोई भी दो बच्चे के मापदंड का उल्लंघन कर दो से अधिक बच्चे पैदा करता है तो सरकारी नौकरी में आवेदन और प्रमोशन का मौका नहीं मिलेगा। 77 सरकारी योजनाओं और अनुदान का लाभ भी नहीं मिलेगा।
4- ड्राफ्ट के अनुसार एक साल के अंदर सभी सरकारी अधिकारियों , कर्मचारियों , स्थानीय निकाय में चुने जनप्रतिनिधियों को शपथ पत्र देना होगा कि वह इसका उल्लंघन नहीं करेंगे।
5- कानून लागू होते समय यदि उपरोक्त सभी के यदि दो बच्चे हैं और शपथ पत्र देने के बाद तीसरी संतान पैदा होती है तो प्रतिनिधि का निर्वाचन रद्द करने और आगे चुनाव ना लड़ने देने का प्रावधान है। वहीं सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन रोकने और बर्खास्त करने का प्रावधान है। यद्धपि कोई तीसरा बच्चा गोद ज़रूर ले सकता है।
6- राशन कार्ड में अब 4 से अधिक लोगों के नाम दर्ज नहीं होंगे और कानून के मौजूदा ड्राफ्ट के मुताबिक यह विधेयक राजपत्र में प्रकाशन की तारीख से एक साल बाद लागू होगा।
यह तो रहा कानून , अब आईए देखते हैं कि इसके राजनैतिक नीहितार्थ क्या हैं और सच क्या हैं।
मोटा माटी भगवा संगठनों के आक्रमण पर मुसलमान अधिक जनसंख्या के लिए ज़िम्मेदार ठहराए जाते हैं और अपने कोर वोटर्स के दिमाग में संघ ने लगभग यह परसेप्शप सेट कर दिया है।
योगी सरकार का यह फैसला भी उन कोर वोटर्स की नजर में मुसलमानों की जनसंख्या नियंत्रण की कयावद मात्र है। क्युँकि उनके अंदर यह डर बिठा दिया गया है कि देश में मुसलमानों की आबादी ऐसे ही बढ़ती रही तो देश में मुसलमान बहुसंख्यक होकर सत्ता पर कब्ज़ा कर लेगा और पुनः मुगलिया हुकूमत आ जाएगी।
जबकि तमाम आँकड़ों के अनुसार अधिक बच्चे पैदा होने का संबन्ध धर्म नहीं बल्कि शिक्षा और आर्थिक स्थिति पर आधारित होती है। और इसका प्रभाव सभी धर्मों के लोगों पर पड़ता है।
सबसे आदर्श प्रजनन दर 2•1% को माना जाता है , अर्थात किसी देश की प्रजनन दर यदि 2•1% हुई तो इसका अर्थ हुआ कि किसी देश में एक महिला दो बच्चों को ही जन्म दे रही है •1% अधिक जन्म के बाद बच्चों की मृत्यु के लिए रखा गया है।
अर्थात यदि किसी देश की प्रजनन दर 2•1% है तो उसकी जनसंख्या भविष्य में स्थिर मानी जाती है। और फिलहाल भारत का प्रजनन दर 2011-15 में 2•37 थी और वर्तमान में यह 2•3% है।
परन्तु जिस तरह से लोगों में जागरुकता आ रही है उसी को देखा जाए तो भारत के स्वास्थ मंत्रालय के जारी आँकड़े के अनुसार जनसंख्या अनुमान से संकेत मिलता है कि कुल प्रजनन दर घटकर 2031-35 में 1.73 होने का अनुमान है।
https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1699752
अर्थात भारत की जनसंख्या फिलहाल जो है उसमें 2031-35 तक भारी कमी आने वाली है। और यह सब केवल शिक्षा जागरुकता और विकास के कारण है ना कि किसी कानून के कारण।
और यह आप “नीति आयोग” की वेबसाइट पर जाकर भारत के प्रत्येक प्रदेश की प्रजनन दर देख सकते हैं। लक्षद्वीप की भी जहाँ मुसलमानों की आबादी 97% है।
http://niti.gov.in/…/total-fertility-rate-tfr-birth-woman
नीति आयोग के अनुसार गोबरपट्टी प्रदेशों में प्रजनन दर सबसे अधिक है वहीं दक्षिण के राज्यों में सबसे कम। उत्तर प्रदेश में यह दर 3•1% है वहीं बिहार में सबसे अधिक 3•3%।
अर्थात बिहार बच्चा पैदा करने के मामले में देश में प्रथम स्थान पर है तो इसका कारण यही है कि बिहार सबसे पिछड़ा और अशिक्षित राज्य है। वहीं देश के सबसे साक्षर राज्य केरल में प्रजनन दर 1•8% है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिन मुसलमानों पर जनसंख्या बढ़ाने का आरोप लगता है उन मुसलमानों के 97% आबादी वाले राज्य लक्षद्वीप में प्रजनन दर मात्र 1•6% है अर्थात केरल से भी कम। मुस्लिम बहुल वाले एक और राज्य जम्मू काश्मीर में प्रजनन दर 1•7 है यहाँ तक कि आसाम जैसे राज्य में भी जहाँ के मुसलमानों की जनसंख्या को लेकर सबसे अधिक आक्रमण होता है वहाँ भी प्रजनन दर 2•3% मात्र है।
ध्यान दीजिए कि “जनसंख्या नियंत्रण” का नया शगूफा आसाम से ही निकल कर उत्तर प्रदेश तक पहुँचा है।
देश के सबसे अधिक प्रजनन दर वाले राज्यों में बिहार 3•3% , झारखंड 2•6 % छत्तीसगढ़ 2•5% , मध्यप्रदेश 2•8% और उत्तर प्रदेश 3•1% आते हैं। ज़ाहिर सी बात है कि यही क्षेत्र गोबरपट्टी कहे जाते हैं जहाँ का शैक्षणिक और आर्थिक स्तर सबसे अधिक दयनीय स्थीति में है।
दक्षिण के राज्य अधिक शिक्षित और विकसित हैं इसलिए वहाँ की प्रजनन दर देश में सबसे कम हैं। जैसे आंध्रा प्रदेश 1•7% , कर्नाटक 1•8% , केरल 1•8% , देश की आर्थिक राजधानी महाराष्ट्र 1•8% और देश की राजधानी दिल्ली 1•6% है।
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उपरोक्त राज्यों के प्रजनन दर और शैक्षणिक तथा आर्थिक ढाँचों की तुलना कर लीजिए अधिक जनसंख्या की हकीकत आपको पता चल जाएगी। कहने का अर्थ यह है कि प्रजनन पर रोक लगाने से अधिक बेहतर विकल्प लोगों को शैक्षणिक और आर्थिक रूप से मजबूत करना है पर यह सरकार के बस के बाहर की बात है इसलिए वह ऐसा कानून ला रही है।
धार्मिक आधार तो केवल देश के बहुसंख्यकों को मुर्ख बनाने के लिए है और वह पिछले 70 सालों से मुर्ख बन भी रहे हैं।
आँकड़ों के अनुसार मुसलमानों में जिस तेजी से शिक्षा का प्रसार हो रहा है और आर्थिक स्थीति मज़बूत हो रही है उसी का परिणाम है कि उनकी प्रजनन दर बहुसंख्यकों के मुकाबले तेजी से घट रही है। यह गिरावट जहाँ हिन्दुओं में 3•16% थी वहीं मुसलमानों में जनसंख्या वृद्धि की यह गिरावट कहीं अधिक अर्थात 4•9% रही है।
यद्धपि अभी भी मुसलमानों में हिन्दुओं के मुकाबले जनसंख्या दर 19.92% के मुकाबले 24•6% है और इसी का डर दिखाकर भगवा गिरोह हिन्दुओं को अल्पसंख्य बन जाने का डर दिखाता है।
हकीकत यह है कि यदि यही दर बरकरार रही तो गणित के अनुसार इस देश की कुल आबादी का 51% मुसलमान 600 साल बाद होंगे।
हालाँकि शैक्षणिक , सामाजिक और आर्थिक समृद्धि से यह आँकड़े परिवर्तित हो रहे हैं , इसे आप काश्मीर और लक्ष्यद्वीप तथा केरल के आँकड़ों से देख सकते हैं।
आँकड़ो के अनुसार 1951 में इस देश में हुई पहली जनगणना में 84•1% अर्थात 30•35 करोड़ हिन्दू था और मुसलमान थे 3•54 करोड़। मुसलमान 70 साल में अब 14% अर्थात 18 करोड़ हुआ वहीं हिन्दू 100 करोड़। अर्थात आबादी की दर हिन्दुओं की कहीं अधिक है।
सोचिए कि 70 साल बाद यह स्थीति भी भगवा अंधों को दिखाई नहीं देती और वह झूठ तथा प्रोपगंडे में फंस कर उनकी राजनीति का शिकार हो जाते हैं।
यह तो हो गये तथ्य और राजनैतिक प्रोपगंडा। अब अंत में आते हैं योगी जी के इस “जनसंख्या नियंत्रण” कानून के नकरात्मक परिणाम और साजिश।
जैसा कि स्पष्ट है कि हिन्दुओं की ओबीसी और दलितों की जनसंख्या दर मुसलमानों की अपेक्षा बहुत अधिक है , इस देश की दो से अधिक संतान वाली माओं में 84% हिन्दू हैं और इन 84% में 80% से अधिक दंपत्ति ओबीसी , एससी तथा एसटी हैं।
अर्थात निकट भविष्य में इस कानून की सबसे अधिक मार इन पर ही पड़ने वाली है। नौकरी से लेकर तमाम सुविधाओं से यही वंचित होने वाले हैं। और यही सबसे अधिक नौकरी भी पाते हैं और सरकारी योजनाओं का लाभ भी लेते हैं। यही संघी सरकार की इस कानून के ज़रिए की गयी मुख्य साजिश है।
इस कानून का दुष्परिणाम क्या होगा ?
1- गर्भ परिक्षण बढ़ेगा , लोग बच्चा पैदा होने के पहले गर्भ में लिंग का परिक्षण कराएँगे , क्युँकि अब उनके पास 2 ही आप्शन है तो वह अपने पसंद की संतान चाहेंगे।
2- लड़की हुई तो गर्भ में उसकी हत्या करा देंगे , अर्थात बेटियाँ गर्भ में मार दी जाएँगी , बेटों की संख्या ना भर पाएँ इसलिए उनकी बलि दी जाएगी।
3- यदि इस सबके बावजूद तीसरी संतान हो गयी तो पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देंगे , जिससे अधिक बच्चे का उनका कोटा खाली ही रहे।
4- खुद का तीसरा बच्चा चोरी छुपे पैदा करके उनको लावारिस बताकर अनाथालय से गोद लेने की घटनाएँ बढ़ेंगी।
मुल्लों से इसीलिए निवेदन है कि यदि वह अपने बच्चों का भविष्य चाहते हैं तो आईसोलेट होकर टाइट रहें , वह जितना खामोश रहेंगे उतना ही आपके बच्चों का भविष्य बेहतर होगा। अधिक चिल्ल पों से ऐसे कानून से उनके कोर वोटर में उपजी नाराजगी दूर हो जाएगी।
रहा अपुन की बात , तो हम तो स्वेच्छा से 1 नेशन 1 संतान वाले जाने कब से हैं।