इज़रायल में संसदीय चुनाव में प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू की लिकुड पार्टी बहुमत से पिछड़ गई है. इस हार से बेंजामिन नेतान्याहू का रिकॉर्ड पांचवी बार इज़रायल का प्रधानमंत्री बनने का सपना टूट गया है. साथ ही उनपर भ्रष्टाचार का मुक़दमा चल सकता है और दोषी साबित होने पर जेल भी हो सकती है।
120 सीटों वाले इज़रायल के संसदीय चुनाव में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है. सबसे ज़्यादा 32 सीटें बेनी गैंट्ज की ब्लू एंड व्हाइट पार्टी को मिली हैं जबकि बेंजामिन नेतान्याहू की लिकुड पार्टी 31 सीटों पर सिमट गई. तीसरे नंबर पर अयमान ओदेह की अगुवाई वाली पार्टी यूनाइटेड अरब फ्रंट रही जिसे 13 सीटें मिली हैं. ओदेह ये पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि अगर बेनी गैंट्ज सत्ता के क़रीब पहुंचते हैं तो अरब फ्रंट उन्हें समर्थन देकर सरकार में शामिल हो सकता है. माना जा रहा है कि इस बार के संसदीय चुनाव में 13 सीटें जीतने वाले अरब वोटरों ने निर्णायक भूमिका निभाई जिनका वोटिंग प्रतिशत चुनावों में अक्सर कम रहता है.
इज़रायल में कुल वोटरों की संख्या 58 लाख है. इनमें 74.2 फ़ीसदी यहूदी हैं जबकि 21 फ़ीसदी ग़ैर यहूदी अरब हैं. बाक़ी 4.8 फ़ीसदी अन्य समुदायों में गिने जाते हैं. इज़रायल के 71 सालों के संसदीय इतिहास में किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत कभी नहीं मिला. इस साल अप्रैल में हुए चुनाव में बेंजामिन नेतन्याहू की लिकुड पार्टी और ब्लू एंड व्हाइट पार्टी को 35-35 सीटें मिली थीं. तब नेतन्याहू ने जोड़तोड़ से गठबंधन की सरकार बना ली थी लेकिन छह महीने बाद दोबारा हुए चुनाव में उनकी आगे की राह मुश्किल हो गई है.
अब अगर बेनी गैंट्ज की पार्टी सरकार बनाती है तो बेंजामिन नेतान्याहू के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच शुरू हो सकती है जिसके दाग़ उनपर पहले से हैं. नेतन्याहू की हार से फिलिस्तीनियों में भी एक उम्मीद जगी है क्योंकि गैंट्ज उनके साथ ज़्यादा खुले मन से बातचीत के पक्षधर माने जाते हैं.