वैज्ञानिकों के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक, जिसका आकार पांच मिलीमीटर होता है, जो खिलौनों, गाड़ियों, कपड़ों, कार के पुराने टायर, पेंट आदि में पाया जाता है, हमारे पास से होते हुए समुद्र में पहुंच रहा है। फिर पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा बनकर धरती पर लौट आता है। ये प्लास्टिक के कण नंगी आंखों से नहीं दिखाई देते।
यही वजह है कि आम आदमी को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। मगर इससे भी ज्यादा हैरत की बात यह है कि हम सबके घरों में माइक्रोप्लास्टिक बहुत बड़ी तादाद में पाए जाते हैं, पर हम इससे अनजान बने रहते हैं। इसकी वजह से हम कई समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं।
अमेरिका की एक विज्ञान पत्रिका के मुताबिक सबसे साफ माने जानी वाली जगह- दक्षिण नेशनल पार्क – की हवा में प्लास्टिक के महीन कणों की बरसात लगातार होती रहती है। गौरतलब है कि इस इलाके में वाहनों और कारखानों की मौजूदगी न होने के बावजूद यहां माइक्रोप्लास्टिक कणों की बरसात लंबे समय तक होती रहती है, जिससे सैकड़ों टन प्लास्टिक धरती पर बिछ चुकी है।
यूनिवर्सिटी आफ आकलैंड (न्यूजीलैंड) के वैज्ञानिकों के मुताबिक इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रानिक सामान से पाली कार्बोनेट निकलता है, जो एक तरह का प्लास्टिक ही है। इससे भी हमारी सेहत पर बुरा असर पड़ता है।
वैज्ञानिकों ने 2021 में माइक्रोप्लास्टिक के असर पर शोध के दौरान पाया कि हम रोज लगभग सात हजार माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े अपनी सांस के जरिए लेते हैं। अध्ययन के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक का हम पर वैसा ही असर होता है, जैसा तंबाकू या सिगरेट का होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि माइक्रोप्लास्टिक हमारी प्रजनन क्षमता पर भी असर डाल रहा है। गौरतलब है कि माइक्रोप्लास्टिक खासकर एकल उपयोगी
प्लास्टिक में पाया जाता है, इसलिए ऐसे प्लास्टिक के इस्तेमाल पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। एकल उपयोगी प्लास्टिक से महज हवा प्रदूषित नहीं हो रही, यह पानी – मिट्टी को भी प्रदूषित कर रहा है।
प्लास्टिक उत्पादों में सबसे अधिक उपयोग प्लास्टिक के थैलों (पचास माइक्रोन से कम) का होता है। फिर इसमें पैकिंग फिल्म, फोम वाले कप- प्याले, कटोरे, प्लेट, लेमिनेट किए गए कटोरे और प्लेटें, छोटे प्लास्टिक कप और कंटेनर (डेढ़ सौ मिलीग्राम और पांच ग्राम से कम ), प्लास्टिक स्टिक और इयर बड, गुब्बारे, झंडे और कैंडी, सिगरेट के बड, फैलाया हुआ पौलिस्ट्रिन, पेय पदार्थों के लिए छोटे प्लास्टिक पैकेट (दो सौ मिली से कम) और सड़क किनारे लगाए जाने वाले बैनर (सौ माइक्रोन से कम) जैसे प्लास्टिक उत्पाद भी शामिल हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार साधारण प्लास्टिक को सड़ने में लगभग पांच सौ वर्ष लग जाते हैं। सहज उपलब्ध होने के कारण इसका इस्तेमाल बिना सोचे-समझे किया जाता है। दुनिया में इसका महज पांच में से एक हिस्से का पुनर्चक्रण हो पाता है। इस तरह इसका अस्सी प्रतिशत हिस्सा समुद्र में जा रहा है। इसमें माइक्रोप्लास्टिक का हिस्सा सबसे ज्यादा होता है। इससे स्तनधारी जीव असमय मौत का शिकार बनने लगे हैं।
एक अनुमान के मुताबिक हर वर्ष करीब एक लाख समुद्री जीव-जंतु मर जाते हैं, जिसमें सील, ह्वेल, समुद्री कछुए, पक्षी सहित अनेक समुद्री जीव-जंतु शामिल हैं। माइक्रोप्लास्टिक की वजह से कई जीव-जंतु विलुप्त हो गए। उनमें कई नई बीमारियां देखने को मिल रही हैं। समुद्र, नदियों और झीलों का जल प्रदूषित हो गया। इससे ग्रामीण और कस्बाई लोग कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो गए हैं। एक सर्वेक्षण के मुताबिक सत्तर के दशक के बाद प्लास्टिक का उपयोग शहरी, ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में बढ़ता गया, जो बीमारियों का कारण बन गया है।
‘इस्तेमाल करो और फेंको’ संस्कृति के कारण प्लास्टिक आज देश ही नहीं, पूरे विश्व में अनेक बीमारियों का कारण बन गया है। लंबे समय तक प्लास्टिक अपघटित नहीं हो पाता, जिसके चलते यह हवा, पानी और मिट्टी को प्रदूषित करता है।
उपयोग में आने वाले प्लास्टिक को जलाने से कई तरह की जहरीली गैसें पैदा होती हैं, जिनमें नाइट्रिक आक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड और कार्बन मोनोआक्साइड प्रमुख हैं। इन गैसों से फेफड़ों और आंख की बीमारियां, कैंसर, मोटापा, मधुमेह, थायराइड, पेट दर्द, सिर दर्द, कब्ज जैसी अनेक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
नए शोध के अनुसार प्लास्टिक से बने बर्तन में गर्म पेय और खाद्य पदार्थों के उपयोग से इसमें मौजूद नुकसानदेह रसायन डाइ आक्सिन, लेड (सीसा), कैडमियम आदि खाद्य पदार्थों में घुल कर हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं, जिससे पेट, सिर, फेफड़े और आंख से संबंधित समस्याएं पैदा हो जाती हैं। महिलाओं में प्लास्टिक के अधिक उपयोग से बांझपन हो सकता है।
यह वनस्पतियों, औषधियों और पेड़ों के विकास पर भी असर डालता है। इसका कारण सिंथेटिक पालीमर नामक पदार्थ है, जो पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक माना जाता है। नदियों, झीलों और समुद्र के किनारे उगी वनस्पतियों और पेड़ों पर यह असर अधिक देखा गया है।
नदियों और समुद्र तटों पर अरबों टन प्लास्टिक कचरा मौजूद है। इस कचरे का पुनर्चक्रण करने का काम भी दुनिया की कुछ कंपनियां कर रही हैं। एक कंपनी ने प्लास्टिक की खाली बोतलों से परिधान बना कर प्रदूषण मुक्ति की दिशा में एक सफल प्रयोग किया है। इस कंपनी ने जो टीशर्ट तैयार की है, उसको बनाने में सात बोतलें उपयोग में ली जाती हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार 2017-18 में भारत में प्लास्टिक कचरे का छह करोड़ साठ लाख अठहत्तर हजार सात सौ पचासी टन अंबार लग गया था। एकल उपयोगी प्लास्टिक से फैलने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए एक टिकाऊ विकल्प तैयार किया जाए। दूसरे, प्लास्टिक का ऐसा रूप तैयार किया जाए, जो प्रदूषण न फैलाए, बल्कि प्रदूषण से मुक्ति दिलाने में भूमिका निभाए।
अभी यह विकल्प केवल कल्पना है, लेकिन इस दिशा में कई कंपनियां और देश आगे बढ़ रहे हैं। जूते बनाने वाली एक कंपनी ने 2018 में प्लास्टिक कचरे से पचास लाख जोड़ी जूते तैयार किए। इसमें जो प्लास्टिक उपयोग किया गया, वह पोस्ट- कम्यूमर रिसाइक्ल्डि प्लास्टिक था, जो महासागरीय तटों और तटीय क्षेत्रों से इकट्ठा किया गया। वैज्ञानिकों के अनुसार वैश्विक ताप का कारण प्लास्टिक प्रदूषण भी हो सकता है।
केंद्र सरकार ने पर्यावरण दिवस पर घोषणा किया था कि एकल उपयोगी प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से 2022 तक चलन से बाहर किया जाएगा, लेकिन तमाम प्रतिबंधों की घोषणा के बावजूद यह संभव नहीं हो पाया। राष्ट्रीय और संगठनात्मक स्तर पर 2025 तक प्लास्टिक से होने प्रदूषण को कम करने का लक्ष्य रखा गया है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने एकल उपयोगी प्लास्टिक को राज्य स्तरीय नियम बना कर प्रतिबंधित करने का कार्य किया, वहीं कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भी 2025 तक पैकेजिंग में सौ फीसद पुनर्चक्रित उत्पाद का प्रयोग करने की घोषणा की।
उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और हरयाणा सहित देश के अनेक राज्यों में प्लास्टिक कचरे पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है, लेकिन व्यावहारिक जिंदगी में एकल उपयोगी प्लास्टिक का चलन ज्यों का त्यों है। अगर एकल उपयोगी प्लास्टिक को चलन से बाहर नहीं किया गया, तो माइक्रोप्लास्टिक बरसात से जो मानव सभ्यता का नुकसान होगा, वह हमारी कल्पना से बाहर हो सकता है।