नई दिल्ली : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि एकता में अनेकता, अनेकता में एकता यही भारत की मूल सोच है, भागवत ने कहा कि पूजा पद्धति, कर्मकांड कोई हों मगर सभी को मिलकर रहना है, भागवत ने कहा कि अंतर का मतलब अलगाववाद नहीं है.
भागवत ने दिल्ली में ‘मेकिंग ऑफ अ हिंदू पेट्रिएट- बैकग्राउंड ऑफ गांधीजी हिंद स्वराज’ नाम की एक किताब का विमोचन करते हुए यह बात कही.
भागवत ने कहा कि अलग होने का मतलब यह नहीं है कि हम एक समाज, एक धरती के बेटे बनकर नहीं रह सकते.
ये भी पढ़ें : किसान आंदोलन : बोले किसान- 4 जनवरी को अगर बात नहीं बनी तो बंद करेंगे पेट्रोल पंप और मॉल
भागवत ने कहा कि किताब के नाम और मेरे द्वारा उसका विमोचन करने से अटकलें लग सकती हैं कि यह गांधी जी को अपने हिसाब से परिभाषित करने की कोशिश है.
गांधी जी के बारे में यह एक प्रामाणिक शोध ग्रंथ है, लेकिन इसके विमोचन कार्यक्रम में संघ के स्वयंसेवक हों, इसको लेकर लोग चर्चा कर सकते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए.
किताब के बारे में भागवत ने कहा कि यह एक प्रामाणिक शोधग्रंथ है, परिश्रमपूर्वक खोजबीन करके लिखी गई है, गांधी जी ने एक बार कहा था कि मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है.
एक बात साफ है कि हिंदू है तो उसके मूल में देशभक्त होना ही पड़ेगा, यहां पर कोई भी देशद्रोही नहीं है, भागवत ने कहा कि स्वराज्य तब तक आप नहीं समझ सकते जबतक आप स्वधर्म को नहीं समझते हैं.
ये भी पढ़ें : BCCI की AGM से पहले बड़ा फैसला, जनरल मैनेजर केवीपी राव को बोर्ड छोड़ने के लिए कहा
भागवत ने कहा कि गांधी जी कहते थे कि मेरा धर्म पंथ धर्म नहीं बल्कि मेरा धर्म तो सर्व धर्म का धर्म है, गांधी जी कहा करते थे मेरी देशभक्ति मेरे धर्म से निकलती है.
भागवत अपने धर्म को समझकर अच्छा देशभक्त बनूंगा और लोगों को भी ऐसा करने को कहूंगा, गांधी जी ने कहा था कि स्वराज को समझने के लिए स्वधर्म को समझना होगा.