यह एक टिपिकल क्रिमिनल गिरोही मनोवृत्ति है, कि जब बहस छिड़े, और संकट में कहा सुना, किया धरा सामने आने लगे तो, उससे पल्ला झाड़ लो। जबकि पाञ्चजन्य हिंदी साप्ताहिक आरएसएस द्वारा ही वर्ष 1948 में लखनऊ से पहली बार निकलना शुरू हुआ था। इसकी स्थापना दीन दयाल उपाध्याय द्वारा की गयी है, जो भाजपा के विचार स्रोत और थिंकटैंक हैं।
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दीन दयाल उपाध्याय, आरएसएस के प्रचारक भी रहे हैं और उनकी लिखी किताब एकात्म मानववाद, पहले भारतीय जनसंघ और अब भाजपा के लिये सबसे महत्वपूर्ण वैचारिक पुस्तक मानी जाती है। पांचजन्य के संपादकों में केआर मलकानी और अटल बिहारी बाजपेयी भी रह चुके हैं। दीन दयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी तो जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं और संघ के तो थे ही। अटल जी तो भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे हैं और आरएसएस की दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर वे और जनसंघ के अन्य नेता जनता पार्टी से 1980 में हट गए थे।
आरएसएस ने दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस को लेकर पांचजन्य में छपे एक लेख से किनारा कर लिया है। यही नहीं आरएसएस ने पांचजन्य को अपना मुखपत्र मानने से भी इनकार कर दिया है। जबकि सभी यह जानते हैं कि पांचजन्य आरएसएस का मुखपत्र है और वह आरएसएस की विचारधारा पर अपनी राय व्यक्त करता रहता है।
आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रभारी सुनील अंबेडकर ने पांचजन्य – इंफोसिस विवाद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अलग करते हुए कहा कि, ” भारत की उन्नति और विकास में इस आईटी दिग्गज कंपनी इन्फोसिस का अहम योगदान है।”
उन्होंने ने यह भी कहा कि ” पत्रिका (पांचजन्य) संघ का आधिकारिक मुखपत्र नहीं है और इसमे छपे विचारों को व्यक्तिगत माना जाना चाहिए। पांचजन्य संघ का मुखपत्र नहीं है। अतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इस लेख में व्यक्त विचारों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।”