दो हजार 640 किलोमीटर लंबी है डुरंड लाइन, जो अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा को बांटती है। पश्चिम में खैबर पख्तूनख्वा और उत्तर में अफगानिस्तान के बखान गलियारे से बड़ी 1468 किलोमीटर लंबी बलूचिस्तान सीमा है। इस सीमा से अफगानिस्तान के चार प्रांत मिलते हैं, हेलमंड, कंधहार, निमरोज और जाबुल । आठ में से दो बॉर्डर अंतर्राष्ट्रीय आवाजाही वाले हैं, इनमें खैबर पास-तोरखम और चमन-स्पिन बोल्दाक सीमाएं प्रमुख हैं।
बाकी छह सीमाएं अरांडू-चितरल, गुरसलल-बाजौर, नवापास-मोहम्मद, खारलाची-खुर्रम, गुलाम खान-उत्तरी वजीरिस्तान, अंगूर अड्डा-दक्षिणी वजीरिस्तान कई दशकों से खुली थीं। जुलाई 2020 में पाकिस्तान ने कुल 18 क्रॉसिंग प्वाइंट अफगानिस्तान के लिए खोलेे, इससे आमलोगों ने महसूस किया था कि इस्लामाबाद का भरोसा बढ़ चला है। आज यह स्थिति पलट चुकी है। पाकिस्तान ने तमाम सीमाएं सील कर रखी हैं।
चीन, खैबर पख्तुनख्वा के अपर कोहिस्तान में सिंधु नदी पर 4320 मेगावाट वाली दासु जल विद्युत परियोजना बना रहा है। बुधवार 14 जुलाई को यहां के लिए दो बसों में 30 चीनी कर्मी भेजे जा रहे थे। विस्फोटकों से लदी एक तीसरी गाड़ी कोे इन चलती बसों से भिड़ा दी गई, जिसमें एक बस के परखचे उड़ गए। मरने वाले 13 लोगों में से नौ चीनी कर्मचारी और दो पाकिस्तानी सैनिक भी थे। 28 घायलों का इलाज चल रहा है।
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ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा कि यह स्पष्ट रूप से आतंकी हमला था, जिसे सूचनाओं के आधार पर अंजाम दिया गया था। ग्लोबल टाइम्स की तरह चीन की कई सरकारी समाचार एजेंसियों ने अतीत में इस तरह के हमलों के हवाले से सवाल किया है कि उनके जो सर्वेयर, वर्कर, इंजीनियर, एक्सपर्ट व कूटनीतिक पाकिस्तान में कार्यरत हैं, उनकी सुरक्षा कैसे की जाए? खैबर पख्तुनख्वा के दासु में हुए हमले की जांच के लिए चीन ने अपने जो खुफिया रवाना किए हैं, उन्हें यह तय करना है कि इस कांड में तालिबान या आइसिस का कितना हाथ है। 13 अतिवादी गुटों का संगठन है टीटीपी (तहरीके तालिबान पाकिस्तान) जिसके संबंध इराक में इस्लामिक स्टेट से बने रहे।
पाकिस्तानी दैनिक डॉन ने पाक विदेश मंत्रालय और इमरान खान के रवैए को आड़े हाथ लिया है। 17 जुलाई 2021 के संपादकीय में डॉन ने लिखा है, ‘सरकार ने जल्दबाजी में यह बयान दिया कि यह एक दुर्घटना थी, जिसमें चीनी कर्मी मारे गए। बाद में जब चीनी दूतावास ने कोहिस्तान हमले की तफसील दी, तो चुप्पी का वातावरण था।’ अखबार लिखता है कि अतीत में भी देश के विभिन्न स्थानों पर चल रही परियोजनाओं में चीनी कर्मियों पर हमले किए जा चुके हैं।
इन हमलों में बलूच व तालिबान पाकिस्तान के दहशतगर्द शामिल रहे हैं। अफगानिस्तान में अमरीकी व नाटो फोर्स के जाने के बाद पाकिस्तान में मिलीटेंट समूह नए सिरे से गठजोड़ कर रहे हैं। इमरान सरकार अपनी खुफिया निगरानी दुरुस्त करे, यह इसलिए जरूरी है ताकि पाकिस्तान में कार्यरत विदेशी नागरिकों व यहां के अवाम को सुरक्षा दी जा सके।
हालांकि इमरान खान ने गुरुवार को चीनी प्रधानमंत्री ली खछियांग को टेलीफोन कर आश्वासन दिया कि दासु हमले की जांच में हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। दिलचस्प है कि दासु घटना में दो विदेश मंत्रालयों के बयान एक दूसरे के बरक्स थे। पाक विदेश मंत्रालय का बयान था कि गैस लीक हो जाने से बस असंतुलित होकर दुर्घटनाग्रस्त हो गई। चीनी विदेश मंत्रालय ने इसका खंडन करते हुए कहा कि चीनी कर्मियों को ले जाने वाली बस को विस्फोटक से उड़ाने का काम किया गया था।
जून 2017 में पाकिस्तान ने सीपीईसी परियोजनाओं में काम करने वाले चीनी नागरिकों की सुरक्षा के वास्ते स्पेशल सिक्योरिटी डिवीजन (एसएसडी) बनाया था, जिसमें नौ हजार पाकिस्तान आर्मी के, और पैरा मिलिट्री के छह हजार जवान शामिल किए गए थे। बुधवार को खैबर पख्तुनख्वा के दासु में हुए हमले से ‘एसएसडी’ की पोल भी खुल जाती है कि ये लोग कितने नाकारा हैं।
पाकिस्तान की नींद अफगान सीमा पर हो रही हलचल को लेकर उड़ी हुई है, उसकी फौरी चिंता आजाद कश्मीर में अगले हफ्ते होने वाला चुनाव है। 25 जुलाई 2021 को 53 सदस्यीय आजाद कश्मीर विधानसभा मेें 45 सीटों के वास्ते मतदान होना है। इसमें से 33 सीटें आजाद कश्मीर के प्रतिनिधियों के लिए और 12 सीटें जम्मू-कश्मीर के शरणार्थियों के नाम हैं।
शुक्रवार को आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा, डीजी आईएसआई लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद, विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डॉ. मोईद यूसुफ ने एक बैठक कर अफगानिस्तान में तालिबान और दासु हमले के हवाले से सुरक्षा रणनीति पर नए सिरे से विचार किया है। हो सकता है इन्हें इंटेलीजेंस इनपुट मिली हो कि रिग्रुपिंग कर रहे अतिवादी आजाद कश्मीर विधानसभा चुनाव में कुछ गड़बड़ न करें।
तालिबान जैसे-जैसे अपनी पकड़ बना रहा है, उनका असल चेहरा फिर से दिखने लगा है। तालिबान कल्चरल कमीशन ने एक आदेश जारी किया है कि महिलाएं अपने घरों में महदूद रहें, जिन औरतों को जरूरी काम से बाहर जाना है, अपने घर के मर्द को साथ लेकर निकलें। मौलवियों से 15 साल से अधिक उम्र की लड़कियां और 45 से कम की बेवा हो चुकी महिलाओं की लिस्ट तैयार करने की मांग की गई है।
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मौलानाओं को निर्देश दिया गया है कि ये औरतें अनिवार्य रूप से तालिबान लड़ाकों से शादी करें, हमें नई पीढ़ी के योद्धा तैयार करने हैं। तालिबान ने तत्काल प्रभाव से धूम्रपान पर पाबंदी लगा दी है। पुरुषों को दाढ़ी रखने का हुक्म दिया गया है, जो इसकी अवहेलना करेंगे, उनकी खैर नहीं। सीमा पार पाकिस्तान पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक मानिए।
पाक अधिकारी जिस ग्रुप को लेकर सबसे अधिक चिंतित हैं, वह है ‘खुरासान आइसिस’। इनका अधिकेंद्र है, अफगानिस्तान का पूर्वी प्रांत नंगरहार, जिसकी राजधानी जलालाबाद है। यह सितंबर 2014 के आसपास की बात है, जब आइसिस ने तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के स्थानीय प्रतिनिधियों से संपर्क किया, और तय किया कि कश्मीर समेत दक्षिण एशिया को अपने निशाने पर लेने के लिए इस इलाके को आतंक का एक नया एपीसेंटर बनाएं।
अक्टूबर 2014 में तालिबान कमांडर अब्दुल रऊफ खादिम इराक गया और वहीं इसका ब्लू प्रिंट तैयार हुआ कि करना क्या है। सबसे पहले खुर्रम, खैबर, पेशावर और हांगू जिलों के कमांडर ‘टीटीपी’ से तोड़ लिए गए और इस नए गुट से जोड़े गए।
10 जनवरी 2015 को ‘आइसिस-खुरासान प्रोविंस’ (आईएसकेपी) की स्थापना की घोषणा की गई। उस समय तहरीके तालिबान पाकिस्तान का पूर्व कमांडर हाफिज सईद खान को इस गुट का नेता घोषित किया गया। अब्दुल रउफ अलीजा इस अतिवादी समूह का डेप्यूटी कमांडर था, जिसे फरवरी 2015 में मार गिराया गया। हाफिज सईद खान को 26 जुलाई 2016 को अफगानिस्तान के आचिन में अमरीकी फोर्स ने ढेर कर दिया था। मगर इससे आइसिस-खुरासान दफन नहीं हुआ।
शाहाब अल-मोहाजिर 2020 में आइसिस खुरासान का नया लीडर घोषित हुआ, जो किसी जमाने में हक्कानी नेटवर्क का कुख्यात दहशतगर्द रह चुका है। इस ग्रुप को और धारदार बनाने के वास्ते अबू मोहम्मद सईद खुरासानी, जो सीरियाई मूल का है, उसे ‘आईएसकेपी’ का अघ्यक्ष बनाने की पेशकश की गई थी। सीरिया से अबू मोहम्मद सईद खुरासानी का पाकिस्तान आना, और तालिबान लड़ाकों को एक्टिव करने की कवायद की सूचना सबसे पहले ‘यूएन सिक्योरिटी कौंसिल सैंग्शन कमेटी’ को जुलाई 2020 में मिली थी। उस रिपोर्ट में जानकारी दी गई कि इस्लामिक स्टेट के दो सीनियर मेंबर मिडिल ईस्ट से अफगानिस्तान पहुंच चुके हैं।
तो क्या तालिबान अब दूसरे रूप में नमूदार होने जा रहा है? ‘आइसिस तालिबान’, जिसका विस्तार न सिर्फ अफगानिस्तान की सरहदों तक होगा, बल्कि पाकिस्तान को सबसे पहले अपनी चपेट में लेगा। 1996 में तालिबान जब सत्ता में आए पाकिस्तान, सउदी अरब और संयुक्त अमीरात केवल तीन देशों ने उसे मान्यता दी थी।
1994 में मुल्ला मोहम्मद उमर ने कंधहार में पचास छात्रों के समूह को जोड़कर तालिबान की बुनियाद रखी थी, बाद के दिनों में मौलाना फजलुर्रहमान द्वारा संचालित देवबंदी स्कूल के जमीयते उलेमा ए इस्लाम मदरसे के 15 हजार छात्र जुड़े। आईएसआई ने जमात-ए-इस्लामी समेत कई वहाबी गुटों को तालिबान से जोड़ा और करोड़ों रुपयों की मदद दिलवाई। तालिबान जैसे भस्मासुर को बनाने वाला दरअसल पाकिस्तान है।
पत्रकार अहमद राशिद बताते हैं कि 1994 से 1999 तक कोई एक लाख जिहादी पाकिस्तानी इलाकों में ट्रेंड किए गए, वो अफगानिस्तान गए और लड़े। 2001 में अमरीकी हमले से ये उखड़ तो गए, मगर ये जड़ से समाप्त नहीं हुए। 2001 से अब तक बीस साल की लड़ाई में सबने मान लिया था कि तालिबान की कमर टूट गई। मगर हुआ उल्टा। ये काबुल से रावलपिंडी तक सबकी कमर तोड़ने आ गए।
शुक्रवार को ही पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने बयान दिया है कि अफगानिस्तान से अमरीकी व नाटो फौज की वापसी का फैसला हमारी सबसे बड़ी भूल है। यूएस सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल केनेथ एफ. मैक्नीज ने 25 अप्रैल 2021 की ब्रीफिंग में आगाह किया था कि हम वापिस तो हो रहे हैं, मगर अल कायदा, आईएस मिलिटेंट्स और तालिबान की नए सिरे से रिग्रुपिंग होने जा रही है। ये दक्षिण एशिया में तबाही ला सकते हैं। सवाल यह है कि पेंटागन जब इस कपटचाल से वाकिफ है, फिर ऐसे खतरनाक लोगों की रिग्रुपिंग क्यों होने दे रहा है? और किसकी कीमत पर?
जो चिंता वाली बात है, वो है औरतों का हुकूक। अफगानिस्तान के लगभग 90 लाख स्कूली छात्रों में छात्राओं की संख्या 35 लाख है। इन छात्राओं का स्कूल जाना बंद मानिए। अफगान संसद के निचले सदन वोलेसी जिरगा में जो 249 सदस्य सीधा चुनकर आते हैं, उनमें 68 महिला मेंबर भी हैं। 102 सदस्यीय ऊपरी सदन मेशरानो जिरगा में 17 महिलाएं हैं।
तालिबान शासन के दौर में संसद में महिलाओं की शिरकत तो दूर की बात है, वो एक किस्म से घरों में कैद थीं। बीबी आयशा की कटी नाक वाली तस्वीर टाइम कवर पेज पर देखकर पूरी दुनिया हिल गई थी। पांच वर्षों के तालिबान शासन में बदशक्ल कर दी गईं औरतें अत्याचार की कहानियां बयान करती रही हैं। तो क्या फिर से उन्हीं हालात की वापसी होगी और पूरी दुनिया मूकदर्शक बनी देखती रहेगी?
पुष्प रंजन