ADVERTISEMENT
18 नवम्बर को हवेलिया मे सीपैक (CPEC) प्रोजेक्ट के अंतर्गत हवेलिया-मनसेहरा रोड पर “हज़ारा मोटर-वे प्रोजेक्ट-दो” की नीव खुदाई की तकरीब (समारोह) के वक्त प्रधानमंत्री इमरान खान ने जिस तरह से पाकिस्तान की सारी सियासी जमातो को ललकारा उससे उन धूर्त और भ्रष्ट नेताओ के पैरो के नीचे से जमीन निकल गई है।
इमरान खान ने शेर जैसी दहाड़ लगाकर कुत्तो जैसे भौकते विपक्षी पाकिस्तानी नेताओ को डराकर बौखला दिया। असल मे इमरान खान की पार्टी पी०टी०आई० की केंद्र और प्रदेश की सरकारे कई दूसरी पार्टियो की बैसाखियो पर टिकी हुई है,
पिछले 6 महीने से यह पार्टियां मलाईदार मनसब (पद) के लिए जोड़-तोड़ कर रही थी, फिर इन्होने पी०टी०आई० पार्टी मे फूट डालने और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार करने की कोशिश करी, लेकिन इमरान के खान के सामने उनकी एक नही चली।
अब इन्होने इमरान खान को सबक सिखाने के लिये भूतपूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई और मुस्लिम लीग (नवाज) के अध्यक्ष शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री बनाने का फैसला किया,
इन पार्टियो मे सबसे आगे चौधरी बंधु की पार्टी मुस्लिम लीग “काफ” है और संसद के बाहर फजलुर रहमान की “जमात उलेमा-ए-इस्लाम” है।
फजलुर रहमान बड़ी-बड़ी की धमकियां देता रहा, लेकिन इमरान खान ने उसको नजरअंदाज कर दिया, आखिर मे खु़राफाती मुल्ला को अपना बोरिया बिस्तर बांध कर भागना पड़ा।

इमरान खान प्रोपेगेंडा मे अग्रणी चरमपंथी (इस्लामिस्ट) पाकिस्तानी “थिंक टैंक” के समर्थक है,
जिसका मत है, कि पाकिस्तान का जन्म पैगंबर साहब की दुआ (आशीर्वाद) और रूहानी ताकतो (दैव्य शक्तियो) के प्रयासो से हुआ है और यह मक्कार लोग कई कुतर्क देते है :-
1) पाकिस्तान का जन्म सबसे पवित्र शबे कदर की रात (26 वें रोजे़ की रात) हुआ है, इसी दिन कुरान भी नाज़िल (उत्पत्ति) हुई थी।
2) पाकिस्तान के नक्शे (मानचित्र) पर पैगंबर साहब के नाम की मुशाबहत (काल्पनिक आकृति का आभास / सदृश होना) होता है।
3) पैगंबर साहब ने इस भौगोलिक क्षेत्र की प्रशंसा की थी अर्थात यह बहुत विशेष क्षेत्र है।
डा० अल्लामा इकबाल ने इस पर लिखा है:-
“मेरे अरब को आई ठंडी हवा जहाँ से,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है”।
4) पैगंबर साहब की हदीसो के आधार पर अंदाजा लगाया जाता है, कि इस क्षेत्र मे रहने वाले मुसलमान धार्मिक और चरित्रवान होगे, क्योकि पैगंबर साहब ने भविष्य की जिन दो जंगो (युद्धो) मे अपने शामिल (सम्मिलित) होने की आशा व्यक्त की थी, उन दोनो जंगो ( “ग़ज़वा-ए-हिंद” और “अरमजदून”) के सैनिक बड़ी संख्या मे इसी क्षेत्र से आयेंगे।
5) पैगंबर साहब ने 622 ईसवी मे मदीना के स्थान पर पहले इस्लामिक लोक कल्याणकारी गणराज्य की स्थापना करी थी, जिसका नाम “मदीना (निवास स्थान) तैय्यबा (पवित्र)” था और पाकिस्तान अर्थ भी “पवित्र निवास स्थान” होता है। इमरान खान ने पाकिस्तान की जनता से वादा किया था, कि वह इतिहास का दूसरी रियासते मदीना पाकिस्तान को बनाएंगे और “इस्लामी सदारती निजाम” लायेगे।

हास्यप्रद यह है, जिस तरह भारत मे आर०एस०एस० और बी०जे०पी० को अभी तक यह नही पता है कि “हिंदू राष्ट्र का मॉडल” क्या होगा?
क्योकि गोलवालकर ने सावरकर के आधुनिक, तार्किक और वैज्ञानिक हिंदूराष्ट्र के मॉडल को अस्वीकार करते हुये आध्यात्मिक आधार पर हिंदूराष्ट्र बनाने की बात कही थी, किन्तु यह लोग “अध्यात्मिक” आधार पर हिंदूराष्ट्र की कोई रूपरेखा अभी तक प्रस्तुत नही कर सके है।
उसी तरह मुसलमान भी “लोकतांत्रिक आधार पर इस्लामिक गणराज्य” (निजा़म-ए-मुस्तफा) की कोई रूपरेखा (मॉडल) प्रस्तुत नही कर सके है।
इमरान खान भी इसी माया जाल मे उलझ गये और इतने समय मे उनके विरोधियो को उन्हे निपटाने का तरीका (फार्मूला) मिल गया।
बड़े-बड़े बुद्धिजीवियो को यह समझ नही आ रहा था, कि इमरान खान शाह महमूद कुरैशी और फवाद चौधरी जैसे अपने मंत्रियो के पर क्यो नही कतर रहे है?
मंझे हुये सुरक्षा विशेषज्ञ और राजनैतिक विश्लेषक मुल्लाह फजलुर रहमान को राजधानी तक आने देने के पक्ष मे नही थे,
वह चाहते थे, कि इमरान खान उसे तुरंत गिरफ्तार कर ले ताकि किसी भी तरह की अशांति फैलाने से उसे रोका जा सके, लेकिन इमरान खान को कोई चिंता नही थी।
इन घटनाओ से इमरान खान के समर्थक उलझन मे थे और
वह सोच रहे थे, या तो खान साहब का मानसिक संतुलन बिगड़ गया है?
या खान साहब कोई बहुत बड़ा खेल खेलने जा रहे है?
वास्तव मे इमरान खान बहुत बड़ा खेल खेलने जा रहे है
वह पाकिस्तान मे “बहुदलीय व्यवस्था” खत्म करके पाकिस्तान मे “अमेरिका जैसी राष्ट्रपति शासन प्रणाली” (सदारती निज़ाम) लाने की नींव रखने जा रहे है,
इसके कई तरीके हो सकते है :-
वह “अदालत मे जाए” और गुहार लगाऐ, कि यह निज़ाम अब नही चल रहा है, इसलिए अदालत हमे कोई दूसरा तरीका समझाएं और रास्ता दिखाएं!
या सीधे अवाम से ख़िताब के बाद सरकारे भंग करके तैयब एर्दोगान की तरह राष्ट्रपति शासन प्रणाली के लिए “जनमत संग्रह” कराएं या और भी कई तरीके हो सकते है।
भारतीयो के लिए यह किसी पहेली से कम नही है,लेकिन इसकी नींव पाकिस्तान की खुफिया संस्था आई०एस०आई० के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शुजा पाशा ने 2012 मे ही रख दी थी और रिटायर्ड होने के बाद 2014 मे अपनी निगरानी मे उन्होने इमरान खान से हड़ताल करवाई थी।
अहमद शुजा पाशा के बाद आई०एस०आई० के अध्यक्ष ज़हीर उल हसन और नवेद अख्तर को इमरान खान मे कोई खास रुचि नही थी, किंतु सैय्यद असीम मुनीर के ज़माने मे यह दोस्ती फिर परवान चढ़ी और उनके मातहत (सहायक) फैज़ हमीद ने इमरान खान को प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा दिया।
सेना की लाख कोशिशो के बावजूद इमरान खान को दो तिहाई बहुमत नही मिल सका, तब सेना ने अपने पिट्ठू चौधरी बंधु और दूसरे छोटे दलो के नेताओ पर दबाव डालकर इमरान खान को जबरदस्ती प्रधानमंत्री बना दिया।
सेना को आशा थी, कि बहुमत मिलने के बाद भ्रष्ट और गद्दार नेताओ को सबक सिखाया जा सकेगा,
क्योकि सेना शरीफ परिवार, भुट्टो-ज़रदारी परिवार, मुल्लाह फज़लुर रहमान और दूसरे दर्जनभर दलो के वरिष्ठ नेताओ को विदेशी एजेंट और गद्दार मानती है।

तब आनन-फानन मे सेना ने पाकिस्तान मे बहुदलीय व्यवस्था खत्म करके सदारती निज़ाम (राष्ट्रपति शासन प्रणाली) लाने का फैसला किया और इमरान खान को मना लिया, किंतु खुशी मे जब यह बात उन्होने अपने साथियो से साझा करी, तो माफिया के दलाल उनके मंत्रियो के पैरो के नीचे से जमीन निकल गई और उन्होने इमरान खान को गुमराह करना शुरू कर दिया।
भ्रष्ट मंत्रियो ने इमरान खान से कहा, कि आप लोकतंत्र के इतिहास मे सबसे बड़े खलनायक हो जायेगे! इमरान खान की छवि उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है, वह अपनी ईमानदार और त्याग करने वाली छवि पर दाग़ नही लगाना चाहते है।
इमरान खान साहब शरीफ परिवार, भुट्टो-ज़रदारी परिवार और दूसरे सभी भ्रष्ट नेताओ को कठोर सजा दिलवाना चाहते थे, वह किसी भी हालत मे उनको छोड़ने और देश से बाहर जाने की इजाजत देने के पक्ष मे नही थे।
सेना ने उनको सबक सिखाना शुरू किया और उनके ऊपर दबाव डाला,
कि वह नवाज शरीफ और ज़रदारी को एन०आर०ओ० (National Reconciliation Ordinance ) दे,
क्योकि हमे हथियार खरीदने और अर्थव्यवस्था सुधारने के लिये उनसे पैसा लेना है।
पाकिस्तानी मीडिया का मत है, कि तैरह-चौदह बिलियन डॉलर मे शरीफ परिवार से सेना का समझौता हुआ है और जरदारी परिवार से सात-आठ बिलियन डॉलर मे समझौता होने की आशा है,
यह पैसा बनावटी तरीको से पाकिस्तान मे वापस लाया जायेगा।
पाकिस्तान मे महंगाई आसमान छू रही है, दूध सौ रुपए लीटर और टमाटर तीन सौ रुपए किलो बिक रहा है, अर्थव्यवस्था को तुरंत मदद की जरूरत है, इसलिए बाहर से रकम (पूंजी) पाकिस्तान मे लानी पड़ेगी।
पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा पर अफगानिस्तान से तनाव है और पूर्वी सीमा पर भारत से जंग का खतरा मंडरा रहा है, इसलिए उसे कम से कम दस बिलियन डॉलर के हथियार खरीदना पड़ेगे, जिसमे से पांच मिलियन डॉलर सिर्फ “एंटी मिसाइल सिस्टम” खरीदने मे ही खर्च हो जायेगे।
इमरान खान ने चुनाव मे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज़ नही लेने का वादा किया था, किंतु उन्हे मजबूरी मे घुटने टेकने पड़े और कर्जा लेना पड़ा, फिर अब नवाज शरीफ को देश से बाहर जाने की छूट मिलने के बाद इमरान खान की छवि धूमिल हो गई है।
अपनी छवि खराब होते देखकर इमरान खान ज़हनी दबाव (अवसाद) मे आ गये और इंतेजामियां (प्रशासन) पर उनकी पकड़ ढीली हो गई, फौज ने मौके़ का फायदा उठाते हुये अपने पिट्ठू और दलाल चौधरी बंधुओ की मदद से इमरान सरकार की चूल्हे हिला दी।
नींद से जागे इमरान खान ने फौज के आगे हथियार डाल दिये और बहुदलीय व्यवस्था खत्म करके राष्ट्रपति शासन प्रणाली लाने के फौजी षड्यंत्र को स्वीकार कर लिया है, अब इमरान खान अपनी हार को जीत मे बदलना और चुन-चुन कर विरोधियो से बदला लेना चाहते है।

इमरान खान फौज के गले की हड्डी है, क्योकि बहुदलीय व्यवस्था बदलते ही अमरीका के एजेंट पाकिस्तानी नेता अपने सर पर आसमान उठा लेते, दूसरे पिछले कुछ वर्षो मे सेना की ईमानदार-वफादार वाली छवि खराब हुई है और अवाम (जनता) के सड़क पर आ जाने का डर भी अब फौज को सताने लगा है।
इमरान खान जानते है, कि फौज भले ही उन्हे कितना परेशान कर ले? लेकिन उनके बिना फौज का सदारती निज़ाम लाने का एजेंडा अधूरा ही रहेगा, इसलिए अब उनका आत्मविश्वास आसमान छू रहा है और हमे पाकिस्तान मे धीरे-धीरे चल कर आता हुआ सदारती निज़ाम साफ दिखाई दे रहा है..!
एज़ाज़ क़मर
(रक्षा, विदेश और राजनीतिक विश्लेषक)
{ये लेखक के अपने विचार हैं }