“70 साल बाद पाकिस्तान” शीर्षक से कराची मे सम्पन्न एक गोष्ठी मे व्याख्यान देते हुये पाकिस्तान के जाने-माने विचारक परवेद हुदाभाई ने कहा था, “इस सवाल का जवाब आज तक नही मिला, कि जिन्ना और उनके साथियो ने क्या सोचकर पाकिस्तान बनाया था? ” किंतु 2019 के दौरान भारत मे घटित राजनीतिक घटनाओ से सारे विश्व को स्वयं इस सवाल का जवाब मिल गया है।
कश्मीर मे धारा 370 की समाप्ति, बाबरी मस्जिद पर भारतीय कोर्ट का निर्णय और नागरिकता संशोधन बिल (CAB) के भारतीय संसद मे पास होने के बाद अब कोई शंका नही बची है, कि मोहम्मद अली जिन्नाह से ज्यादा महान दूरदर्शी राजनीतिज्ञ भारतीय उपमहादीप के मुस्लिम समाज मे आज तक पैदा नही हुआ है।
मोहम्मद अली जिन्नाह ने आज से 90 साल पहले स्वयंभू धर्मनिरपेक्ष हिंदू नेताओ के दोगले और धूर्त चरित्र की जो व्याख्या करी था, वह नंगी आंखो से अब “नागरिकता संशोधन बिल” पर वोटिंग करते वक्त नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड, पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी,
नायडू की पार्टी तेलुगू देशम, बीजू पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल, एंन० टी० रामाराव की पार्टी अन्नाद्रमुक, रेड्डी की पार्टी वाई० एस० आर० कांग्रेस और शिरोमणी अकाली दल (मुसलमानो के हमदर्द बनने वाले दलो और उनके नेताओ) के व्यवहार से देखी जा सकता है।
भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता पर मंडराते हुये सबसे बड़े संकट के समय मे राष्ट्रवादी कांग्रेस के दो सांसद, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस का एक-एक सांसद राज्यसभा से नदारद था, मायावती की बहुजन समाज पार्टी और राव की टी० आर० एस० ने भी यही चरित्र “धारा 370” के समय पर दिखाया था।
मोहम्मद अली जिन्नाह और उनके साथी वर्षो तक भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानो को समझाते रहे थे, कि “हिंदुओ की धर्मनिरपेक्षता सिर्फ एक नाटक है”, जब यह शक्तिशाली होगे तब गिरगिट की तरह रंग बदल कर मुसलमानो को दूसरे दर्जे का नागरिक बना देगे, इसलिये उन्होने प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद के प्रलोभन को भी ठुकरा दिया था।
11 अक्तूबर 1947 को अपने भाषण मे मोहम्मद अली जिन्नाह ने कहा था,”सोच यह है, कि एक ऐसा राज्य हो जहाँ हम आजाद इंसान (स्वतंत्र मनुष्य) की तरह साँस ले सके, जिसे हम अपनी तहज़ीब (संस्कृति) के अनुसार विकसित कर सके और जहाँ इस्लाम की सामाजिक न्याय व्यवस्था (Social Justice System) को पूर्णतया लागू करने का हमे अवसर मिले”।

1940 से 1946 तक कांग्रेस ने मौलाना अबुल कलाम आजाद को अध्यक्ष बनाया था, ताकि मुसलमानो को अपनी तरफ आकर्षित किया जा सके और मुस्लिम देश का आकार छोटा किया जा सके, लेकिन जब विभाजन हो गया तो मौलाना आजाद को दूध मे मक्खी की तरह निकाल कर फेक दिया गया।
इस घटना से दूसरे मुसलमान नेताओ को सबक सीखना चाहिए था, लेकिन उन्होने आज तक अपनी आँखो पर सत्ता रूपी लालच का पर्दा डाल रखा है। लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति को अपनाते हुए नेहरू-पटेल की जोड़ी ने “कश्मीर और रामपुर को छल से” तथा “जूनागढ़ और हैदराबाद को बल से” भारत मे विलय किया, तब भी मुस्लिम नेताओ ने अपनी आँखे नही खोली।
प्रायोजित दंगो की आड़ मे भारतीय मुसलमानो को बरबाद किया जाता रहा, लेकिन मुसलमान इन दंगो को सिर्फ इत्तेफाक (संयोग) समझकर नज़र अन्दाज़ करते रहे। आतंकवाद के नाम पर मुसलमानो को फांसी के फन्दे पर चढ़ाया जाता रहा,
लेकिन भारतीय मुसलमान इसे अपनी कमी (खराबी) समझकर ग़लती खोजते रहे।
भारत सरकार के गृहमंत्री अमित शाह कहते है, कि भारत और पाकिस्तान की सरकार के बीच मे अल्पसंख्यको के अधिकारो और सुरक्षा को लेकर “नेहरू-लियाकत पैक्ट” हुआ था, जिसका पालन पाकिस्तान सरकार ने नही किया।
इससे बड़ा झूठ शायद ही कोई दूसरे धर्म का व्यक्ति इतने बड़े पद पर बैठकर बोले?
यह हिंदू नेताओ के चरित्र का हिस्सा है और वह हमेशा सफेद झूठ बोलकर अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक समुदाय (बिरादरी) को गुमराह करते रहे है।
धर्म के नाम पर बने पाकिस्तान ने अपनी संसद मे अल्पसंख्यको को आरक्षण दिया, लेकिन धर्मनिरपेक्ष भारतीय सरकार ने आज तक संसद मे अल्पसंख्यको को आरक्षण नही दिया और ना कभी मिलेगा।
पाकिस्तान सरकार ने अल्पसंख्यको की आर्थिक प्रगति के लिए अलग-अलग संस्थान (बोर्ड) बनाये और नौकरियो मे उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए समय-समय पर विशेष अभियान चलाये है, जबकि भारत सरकार ने ऐसा कोई विशेष अभियान नही चलाया, बल्कि वक्फ बोर्ड की खरबो रुपए की संपत्ति भ्रष्टाचार का शिकार हो गई है और सरकार तमाशबीन बनकर वक्फ बोर्ड की तबाही देखती रहती है।
अगर पाकिस्तान मे मुसलमान किसी अल्पसंख्यक लड़की से प्रेम-विवाह करते है,
तो यह घटना पाकिस्तान के राष्ट्रीय समाचार पत्रो के मुख्य पृष्ठ पर छपती है,
फिर तुरंत लड़के के परिवार वालो और धर्माधिकारियो को गिरफ्तार कर लिया जाता है।
जबकि भारत मे अगर कोई मुसलमान हिंदू लड़की से शादी कर ले, तो उस घटना से पूरा राजनीतिक भूचाल आ जाता है और मुसलमानो के नरसंहार का संकट पैदा हो जाता है।
फासीवादी षड्यंत्र “लव-जिहाद” के नाम से मुसलमानो को कटघरे मे खड़ा किया जाता है, जबकि सम्मानित मुसलमान परिवारो की लड़कियो की शादी एक षड्यंत्र के तहत हिंदू लड़को से कराई जाती है, जिनमे भारत रत्न बादशाह खान, ख़ुर्शीद आलम खान और फारुख अब्दुल्ला जैसे राजनीतिज्ञ शामिल है।
मधुबाला और नरगिस जैसी कामयाब अभिनेत्रियो से लेकर टी०वी० की प्रथम पीढ़ी की एंकर सलमा सुल्ताना तक “रिवर्स लव जिहाद” का शिकार हुई है, किंतु जो भारतीय मीडिया लव जिहाद का शिकार हिंदू महिलाओ की दर्द भरी कहानियां छापता रहा है, वह आज तक महान पुलिस अधिकारी आई० पी० एस० “यामीन हजारिका” के बारे मे खबर छापने की कोई चेष्टा नही करता है।

यामीन हजारिका आसाम से आई महिला पुलिस अधिकारियो की प्रथम पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती थी, वह महान मानवतावादी थी और उनके कारनामो पर पूरी फिल्म बन सकती है, उन्होने एक हिंदू आई० पी० एस० अधिकारी से शादी की,
जिसके बाद उनका घरेलू जीवन तनावपूर्ण हो गया और आगे चलकर उनको कैंसर जैसी घातक बीमारी हुई,
क्योकि यह व्यक्तिगत मामला है, इसलिए मैं अधिक जानकारी नही लिख सकता हूँ, किंतु मैं भारतीय मीडिया के दोगलेपन को उजागर करना चाहता हूं, कि वह हिंदू पति की हिंसा और प्रताड़ना का शिकार हुई मुसलमान महिलाओ की जानकारी जानबूझकर छुपाता है।
संप्रदायिक दंगा भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानो की सबसे बड़ी समस्या था,
विभाजन के समय लाखो मुसलमान संप्रदायिक हिंसा मे कत्ल कर दिये गये थे,
इसलिए स्वतंत्र भारत मे सबसे पहला कानून “दंगा विरोधी एक्ट” होना चाहिए था।
सात दशको तक भारतीय मुसलमानो का निरंतर संप्रदायिक दंगो मे कत्ल होता रहा, लेकिन भारत सरकार आँखो पर पट्टी बांधकर नरसंहार को नजरअंदाज करती रही।
महावीर, महात्मा बुध और महात्मा गांधी के देश मे मृत्युदंड नही होना चाहिए था,
किंतु अल्पसंख्यको को डराने के लिए फांसी को चालू रखा गया, आज तक संप्रदायिक दंगे के आरोपी किसी हिंदू को फांसी नही दी गई, जबकि मुसलमानो और सिक्खो को बड़ी संख्या मे फांसी दी गई है।
गुजरात से लेकर मुजफ्फरपुर दंगे तक बलात्कार का शिकार हुई मुसलमान महिलाओ को इंसाफ नही मिला और आज तक मुजफ्फरनगर दंगे के बलात्कारी खुलेआम घूम रहे, कश्मीर के कुनान पोशपारा काण्ड के बलात्कारियो का नाम लेना भी देशद्रोह माना जाता है, क्योकि उन मुसलमान महिलाओ के बलात्कारी भारतीय सैनिक है।
पाकिस्तान मे सैकड़ो मंदिरो का जीर्णोद्धार पाकिस्तान सरकार ने करवाया है, ताकि पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सके, जबकि भारत सरकार लगातार मस्जिदो को हड़पने की नीति पर काम कर रही है।
1956 मे पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) मे मुसलमानो की आबादी 97.1% थी, जो विकीपीडिया के अनुसार अब घटकर 96.4% हो गई है, जबकि हिंदुत्ववादी भारत मे दुष्प्रचार रहे है, कि पाकिस्तान मे हिंदूओ की आबादी घट गई है, इसी को “सफेद झूठ” कहते है।
1971 की जनगणना मे 1951 की तुलना मे ईसाई आबादी मे 400% वृद्धि बताने से तहलका मच गया था, विषम परिस्थितियो के कारण 1951 की जनगणना त्रुटिपूर्ण थी, 1951 की जनगणना मे बौद्ध और ईसाई आदिवासियो का धर्म हिंदू लिख दिया गया था,
फिर 1971 तक इस त्रुटि को पूरी तरीके से ठीक कर दिया गया, किंतु मुस्लिम आबादी का विवाद नही सुलझा, 1946 मे मुस्लिम लीग का मत था, कि भारत मे मुसलमानो की आबादी 33% है जबकि हिंदू इसे 25% मानते थे।
1951 की जनगणना मे मुस्लिम आबादी को 9.9% बताया गया था, जबकि वास्तव मे यह 8% अधिक अर्थात 17.9% थी, आज भी यह आबादी 18% है,
जबकि 2011 की जनगणना मे 14.23% बताया गया है।
अगर एक करोड़ भारतीय मुसलमानो की एन० आर० सी० के अंतर्गत नागरिकता रद्द कर दी जाये और एक करोड़ विदेशी हिंदूओ को नागरिकता संशोधन बिल के अंतर्गत भारत की नागरिकता दे दी जाये, तब भी भारतीय मुसलमानो की जनसंख्या 17% के लगभग रहेगी।
1971 से बांग्लादेश मे भारत की कठपुतली सरकार है और इस समय शेख हसीना जैसी पिट्ठू प्रधानमंत्री है, फिर भी बांग्लादेश के करोड़ो हिंदुओ ने अपनी आर्थिक प्रगति के लिये भारत की फर्जी नागरिकता ले ली है।
भारत सरकार को बांग्लादेश सरकार के ऊपर दबाव डालकर हिंदू बंगालियो को उनके देश वापस भिजवाना चाहिए था, अगर बांग्लादेश की सरकार सहयोग नही करती, तो मोदी सरकार को बांग्लादेश के ऊपर कठोर प्रतिबंध लगाने चाहिए थे।
फिर भी अगर बांग्लादेश की सरकार अपने हिंदू नागरिको को वापस नही लेती, तो भारत सरकार अपनी सेना भेजकर बांग्लादेश मे बंगाली हिंदुओ के लिये एक “सुरक्षित क्षेत्र” (safe zone) बना देती, जिस तरह तुर्की ने सीरियाई शरणार्थियो के लिये सीरिया की सीमा मे एक सुरक्षित क्षेत्र बनाया है।
अफगानिस्तान की कठपुतली ग़नी सरकार अमेरिका और भारत की बैसाखी के ऊपर टिकी हुई है, आज भारत अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण मे सबसे बड़ा निवेशक है, तो भारत सरकार अफगानिस्तान के हिंदूओ के हितो की रक्षा क्यो नही कर रही है?
अगर अफगानिस्तान मे अल्पसंख्यको के ऊपर अत्याचार हो रहा है,
तो मोदी सरकार भारत मे रह रहे हज़ारो मुस्लिम अफगान शरणार्थियो को भारत से क्यो नही निकालती है?
श्रीलंका मे तमिलो को आज तक दूसरे दर्जे का नागरिक बना के रक्खा हुआ है, फिर भी भारत सरकार श्रीलंका के हिंदूओ की चिंता क्यो नही करती है, जबकि शिवसेना ने संसद मे इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया है।
वर्मा मे रोहिंग्या हिंदूओ के साथ पशुओ जैसा व्यवहार किया जाता है, बर्मा सरकार को यह अत्याचार दिखाई क्यो नही देते? वास्तव मे सरकार की नियत शोषित और पीड़ित विदेशी हिंदूओ की सहायता करना नही है, बल्कि सरकार मुस्लिम देशो की आड़ मे अपने हिंदू वोट बैंक को मजबूत करना चाहती है।
बड़े-बड़े ख़ूनी षड्यंत्रो के बाद भी इजरायल मुस्लिम-मुक्त देश बनने मे अभी तक असफल रहा है, ऐसे मे हिंदुत्ववादी कैसे मुस्लिम-मुक्त भारत बनाने मे सफल होगे? दशको से देशप्रेम और सहनशीलता की परीक्षा दे रहे भारतीय मुसलमान निराश होकर अगर पाकिस्तान की खुफिया संस्था आई० एस० आई० के जाल (ग़ज़वा-ए-हिन्द) मे फँस गये,
तो भारत की एकता और अखंडता के लिये क्या गम्भीर ख़तरा पैदा नही होगा? मुसलमानो का धर्मातरण करने के सपने देखने वाले मूर्ख हिंदुत्ववादी अंतरराष्ट्रीय कानूनो और संयुक्त राष्ट्र को क्यो भूले बैठे है? यह बात समझ से परे है।
हिंदुत्ववादी अपने खोदे गड्ढे मे खुद गिरते जा रहे है, लेकिन मुसलमानो का रवैया भी हैरानी वाला है, क्योकि अफगानिस्तान के मुसलमानो को अगर भारत की नागरिकता नही दी जा रही है, तो इससे भारतीय मुसलमानो को क्यो तकलीफ हो रही है? अफगानिस्तान के मुसलमान भारतीय मुसलमानो को निम्न स्तर का अर्थात दूसरे दर्जे का मुसलमान मानते है,
वह भारतीय पठानो को अपनी संतान मानने से भी स्पष्ट इनकार करते है, ऐसे घमंडी और दोगले अफग़ानी मुसलमानो को भारत से दूर ही रखा जाये तो अच्छा है। बंगाली मुसलमान भारतीय उपमहाद्वीप का नासूर है, यह बंगालियत के नाम पर पाकिस्तान से अलग हुये थे अर्थात इस्लाम से गद्दारी करी थी।
अब यह भारत मे गैर कानूनी तरीके से घुसकर भारतीय मुसलमानो के लिये मुसीबत पैदा कर रहे है, ऐसे गद्दार और मक्कार बांग्लादेशी मुसलमानो के लिये हमदर्दी रखने वाला भारतीय मुसलमान सिर्फ बेवकूफ ही हो सकता है?
तीसरा देश पाकिस्तान है, जिससे हिंदूओ को जबरदस्त एलर्जी है, पाकिस्तानी मुसलमानो को बड़े स्तर पर कभी भी भारत मे नागरिकता नही दी जायेगी, ऐसे मे मुसलमानो को हिंदूओ की भावना का भी ध्यान रखना चाहिए।
गौ हत्या के मुद्दे पर हमेशा मुसलमानो ने हिंदूओ की भावनाओ को नज़र अंदाज़ किया, जिसका परिणाम आज पूरे भारतीय मुस्लिम समाज को भुगतना पड़ रहा है।
यहूदी, ईसाई, बौद्ध और मुसलमानो के अपने देश है, तो हिंदूओ के देश क्यो नही होना चाहिए? अगर विश्व के पीड़ित और दुखी हिंदूओ को भारत शरण नही देगा, तो फिर दूसरा देश क्यो हिंदूओ को अपने देश मे शरण देगा? भारत विश्व मे एकमात्र हिंदूओ की पुण्य भूमि है, तो विश्व का हर हिंदू भारत मे बसने का सपना क्यो नही देखेगा?
अयोध्या मे राम मंदिर और भारत की नागरिकता हिंदुओ का नैसर्गिक (Natural) विचार है, फिर भारतीय मुसलमान इसे राजनीति से क्यो जोड़ते है? 1983 मे आसाम के नेल्ली मे हुये मुसलमानो के भयानक नरसंहार के बाद भी भारतीय मुसलमान संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय न्यायालय मे नही गये, तो नागरिकता संशोधन बिल जैसे मामूली मुद्दे के ऊपर शोर मचाना मुसलमानो के दोगलेपन का ही सबूत है।
इससे समाज मे यह संदेश जाता है, कि मुसलमानो का विरोध अत्याचार और अन्याय को लेकर नही है, बल्कि मुसलमानो को भाजपा सरकार से चिढ़ है, इसलिए नागरिकता संशोधन बिल का विरोध किया जा रहा है।
पाकिस्तान मे एक विपक्षी नेता को नशीले पदार्थो की तस्करी मे गिरफ्तार किया गया, तो उनकी पत्नी संयुक्त राष्ट्र मे शिकायत लेकर पहुंच गई, लेकिन भारतीय मुसलमान कुनान पोशपारा जैसी सामूहिक बलात्कार की घटनाओ को भी संयुक्त राष्ट्र मे लेकर नही गये, लेकिन अब भाजपा सरकार का हर निर्णय उन्हे तकलीफ देता है, तो यह उनकी हिंदू विरोधी मानसिकता का ही प्रमाण है।
आज मुसलमान डरे हुये है
क्योकि उन्हे सर पर तलवार लटकती नजर आ रही है, लेकिन अगर मोदी सरकार चली जाये, तो मुसलमान फिर बेफिक्र होकर बैठ जायेगे। जिस कौम मे दूरदर्शिता नही होती है, वह कौम आगे चलकर मिट जाती है, इसलिए ऐसी कौम के लिये सहानुभूति रखकर मुझे भी शर्म आती है।
जो समुदाय खुद अपने बारे मे नही सोचता है, उसके बारे मे मै क्यो सोचो? जिस समुदाय मे समाज सेवा की संस्कृति नही हो, उस समाज की सेवा मै क्यो करूं? जो समाज अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित नही है, उस समुदाय की सुरक्षा की चिंता मै क्यो करूं? आज मुसलमान जिस चौराहे पर खड़े है,
उसके हर रास्ते पर तबाही और बर्बादी है, अब भारतीय मुसलमान अपनी मूर्खता और कुकर्मो की फसल काट रहे है, क्योकि स्वतंत्रता से पहले मोहम्मद अली जिन्नाह और उनके साथियो ने भविष्य मे पैदा होने वाली राजनीतिक समस्याओ के बारे मे उन्हे विस्तृत रूप मे समझा दिया था।
1946 मे पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली ने कहा था, कि “मुसलमानो अगर तुमने कांग्रेस को वोट दिया तो तुम्हारी आने वाली पीढ़ियां रोयेगी और तुम्हे कोसेगी”, आज यह बात सत्य साबित हो रही है।

कांग्रेस के प्रेम मे पागल लालची और महत्वाकांक्षी देवबंदी मौलाना “ग़ज़वा-ए-हिंद” की हदीस को भी छुपाते या गलत परिभाषित करते रहे है, इंदिरा और राजीव की मौत पर कुरान-खानी (पाठ) करने वाले इन कांग्रेसी मुल्लाओ ने चाटुकारिता के सभी रिकॉर्ड तोड़ रखे है।
ऊपर से मुसलमानो मे चिंतन और दूरदर्शिता का अभाव है और वह दीर्घकालीन योजनाएं नही बनाते है, अगर कांग्रेस सरकार नागरिकता संशोधन बिल लाई होती, तो मुसलमान चुपचाप उसे स्वीकार कर लेते।
चूँकि मुसलमान राष्ट्रवादीयो से चिढ़ते है, इसलिये वह इस बिल का विरोध करते है, लेकिन “मैं नागरिकता संशोधन बिल का समर्थन करता हूं!” क्योकि मेरे पिताजी ने मुझे समझाया था, कि “सारे हिंदू जनसंघी होते है और उनकी धर्मनिरपेक्षता सिर्फ एक पाखंड होती है”।
मेरे पिताजी के अधिकतर मित्र हिंदू राष्ट्रवादी थे, इसलिये मेरे मित्र पिताजी को जनसंघी कहकर मेरा मज़ाक उड़ाते थे, तो मैंने अपने पिताजी से निवेदन किया, कि “वह जनसंघियो से दोस्ती ना करे”, तब पिताजी ने मुझे जवाब दिया था, कि “यह धर्मनिरपेक्षता तुम्हारा भ्रम है, वास्तव मे सारे हिंदू जनसंघी है”।
मुझे यह मूलमंत्र बचपन मे ही समझ आ गया था, लेकिन भारतीय मुसलमानो को आज तक यह विषय समझ नही आता है। ऊपर से मुसलमानो की राजनीति आने वाली पीढ़ियो के सुन्दर भविष्य के लिये और सामूहिक स्तर पर नही होती है,
बल्कि मुसलमानो की राजनीति स्वार्थ से प्रेरित और अल्पकालीन होती है, इसलिए मेरे जैसे शिक्षित बुद्धिजीवियो द्वारा हिंदू राष्ट्रवादियो का विरोध करना और मुसलमानो का समर्थन करना आत्महत्या के समान होगा।
याद रखना चाहिए,
कि “जो जैसा बोता है,
वैसा ही काटता है”।
{ये लेखक के अपने विचार हैं }

एज़ाज़ क़मर
(रक्षा, विदेश और राजनीतिक विश्लेषक)
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