दुनिया भर मे सरकार विरोधी प्रदर्शनो की बाढ़ आई हुई है, हर महाद्वीप के किसी ना किसी देश मे कही ना कही सरकार विरोधी प्रदर्शन हो रहे है,पाकिस्तान मे भी लालची और दल-बदलू छवि वाले राजनीतिज्ञ मौलाना फजलुर रहमान प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार का तख्ता पलटने के लिए आजादी मार्च के नाम पर आतंकवादियो की फौज (अंसार-उल-इस्लाम) लेकर राजधानी की तरफ कूच कर चुके है।
इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन मे पश्चिमी देशो के षड्यंत्र का पर्दाफाश करते हुये उन्हे जिहादी आतंकवाद और इस्लामोफोबिया के लिये जिम्मेदार बताया था, इस्लामोफोबिया फैलाने वालो को जवाब देने के लिए तुर्की और मलेशिया के साथ मिलकर एक टीवी चैनल बनाने का ऐलान भी किया था।
इस घोषणा से इजरायल और पश्चिमी देशो के पैरो तले से जमीन निकल गई और भविष्य मे मुस्लिम देशो से चुनौती मिलने का डर सताने लगा, उन्हे आशंका है कि इमरान खान भविष्य मे “मुस्लिम देशो की संयुक्त सेना” बनाने का प्रयास कर सकते है।
पाकिस्तान आजकल चीन और रशिया की शह पर नौ मुसलिम देशो का यूरोपियन यूनियन जैसा संगठन बनाने की चोरी छुपे कोशिश कर रहा है, जिसमे ईरान, अफगानिस्तान (तालिबान सरकार), तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान और अज़रबैजान शामिल होगे, इनकी एक ही मुद्रा होगी या फिर यह डॉलर के अलावा किसी दूसरी मुद्रा मे आपसी व्यापार करेगे।
स्वतंत्रता से पहले डॉलर और संयुक्त भारत के रुपये का मूल्य लगभग बराबर होता था, किन्तु आज भारत मे लगभग 75 और पाकिस्तान मे लगभग 160 रुपये के बराबर है, इसका कारण अमरीका का पेट्रो-डॉलर समझौता है, जिसके अनुसार खाड़ी के देशो को पेट्रोल का व्यापार डॉलर मुद्रा मे करना होता है और फिर निर्यातको को उस तेल व्यापार के मुनाफे का बड़ा हिस्सा अमेरिकी अर्थव्यवस्था मे निवेश भी करना होता है।
पेट्रो डालर के समझौते से अमेरिका को मुफ्त मे आमदनी होती और आसानी से निवेश के लिये धन भी मिलता है, अब अमेरिका की गुंडागर्दी से परेशान रूस-चीन चाहते है, कि तेल के व्यापार को डॉलर के अतिरिक्त दूसरी मुद्रा मे किया जाये, ताकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को चौपट करके उसकी चौधराहट पर लगाम लगाई जाये।
पाकिस्तान को दो देशो के बीच मे संपर्क और समझौते करवाने मे महारत हासिल है, पाकिस्तान ने ही अमेरिका और चीन की दोस्ती भी करवाई थी, आजकल पाकिस्तान ईरान-सऊदी के झगड़े, तुर्की-सऊदी के बीच रस्साकशी और कतर-सऊदी के बीच मे तनाव की समस्या को सुलझाने मे व्यस्त है।
आर्थिक रूप से कमजोर पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय पटल पर बढ़ती हैसियत के सारा श्रेय इमरान खान को जाता है, जिन्होने पाकिस्तानी इतिहास मे पहली बार सेना और लोकतांत्रिक सरकार के बीच मे पूरा तालमेल बिठाकर पाकिस्तान को तरक्की-याफ्ता-मुल्क (विकसित देश) बनाने का बीड़ा उठा रखा है।
ग्रेटर इजरायल का सपना देखने वाले इज़राइली और अमेरिका की कुख्यात यहूदी लॉबी को पाकिस्तान की यह हरकत फूटी आँख नही सुहा रही है, क्योकि इनकी धार्मिक मान्यता है, कि जब तक विश्व युद्ध नही होगे, तब तक इनका मसीहा (दज्जाल) दुनिया मे नही आयेगा और जब तक इनका मसीहा दुनिया मे नही आयेगा, तब तक पूरी दुनिया मे यहूदियो का राज नही होगा।
दूसरे ग्रेटर इजराइल की स्थापना अरब-ईरान-तुर्की अर्थात मुस्लिम देशो की भूमि पर ही होना है, इसलिये मुस्लिम देशो और समाज को बर्बाद करना ही इजराइल का एकमात्र लक्ष्य है, ऐसे मे मुस्लिम देशो मे शांति और मित्रता इजराइल के लिये किसी डरावने सपने जैसा है।
दुनिया का सबसे ताकतवर देश
अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है, किंतु वास्तव मे वह अमेरिका की फेडरल बैंक का कर्जदार है अर्थात फेडरल बैंक जब चाहे तब अमेरिका की गर्दन मरोड़ सकती है, इस फेडरल बैंक के मालिक यहूदी है।
अमरीका की हैवी इंडस्ट्री के लगभग सारे मालिक भी यहूदी है, ऐसे मे किसी अमरीकी राष्ट्रपति का यहूदियो और उनके द्वारा पैदा की गई शैतानी संस्थाओ (इलुमिनाती-फ्रीमेसन) से पंगा लेना आत्मघाती होता है,
लिंकन और कैनेडी जैसे कुछ पूर्व राष्ट्रपतियो को इसका ख़ामियाजा अपनी जान देकर चुकाना पड़ा है, सरल शब्दो मे अमेरिका यहूदियो का कठपुतली देश है और यहूदी इसका इस्तेमाल मुसलमानो को बर्बाद करने के लिये कर रहे है।
शाह फैसल, जुल्फिकार अली भुट्टो, जियाउल हक और सद्दाम हुसैन जैसे पिट्ठूओ ने जब अपने आका अमरीका से बगावत करने की कोशिश की तब उन्हे अमरीका ने मौत के घाट उतार दिया था, अब उसका अगला निशाना इमरान खान और टर्की के तैय्यब एर्दोगान है।

जिस ब्याज़ वाली अर्थव्यवस्था के द्वारा यहूदी लॉबी ने सारी दुनिया पर अपनी पकड़ बना रखी है, तैय्यब एर्दोगान उस “बैंकिंग व्यवस्था” की चूले हिलाना चाहते है, इसलिए तैय्यब एर्दोगान ने तुर्की मे इस्लामिक सिद्धांतो पर आधारित “ब्याज मुक्त अर्थव्यवस्था” शुरू करने की घोषणा कर दी है।
जब से अमेरिकी लेखक जॉन पर्किन्स ने अपनी पुस्तक “कन्फेशन ऑफ ए इकॉनमिक हिट मैन” मे तीसरी दुनिया के देशो मे आर्थिक उपनिवेशवाद की प्रक्रिया अथवा षड्यंत्र का भंडाफोड़ करके यहूदियो के “वन वर्ल्ड ऑर्डर” लाने के मंसूबे पर पानी फेरने कोशिश की है, तब से मुस्लिम देशो मे “बिना ब्याज वाली बैंकिंग व्यवस्था” शुरू करने की मांग जोर पकड़ती जा रही है।
बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के चलते अरब देशो मे विद्रोह (अरब स्प्रिंग) की दूसरी पारी शुरू हो चुकी है, ऐसे हालात मे “आग मे घी डालने” वाला तैयब एर्दोगान का फैसला अमेरिका के पिट्ठू मुस्लिम शासको के गले की हड्डी बन गया है, देर-सवेर उनको रास्ते से हटाया जाना तय है.
यद्यपि एक बार रशियन खुफिया एजेंसी ने हवाई यात्रा के दौरान हत्या के षडयंत्र की समय पर सूचना देकर तैय्यब एर्दोगान की जान बचा दी है, किंतु फिर भी खतरा मंडरा रहा है।
इमरान खान को निशाना बनाना बहुत मुश्किल काम है, क्योकि उनकी सुरक्षा आई०एस०आई० जैसी शातिर खुफिया एजेंसी करती है, इजराइल की कुख्यात खुफिया एजेंसी मोसाद विश्व मे सबसे ज्यादा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई०एस०आई० से ही डरती है, ऐसे मे हत्या के बजाय इमरान को सत्ता से हटाना ही आसान तरीका है।
शरीफ और जरदारी-भुट्टो जैसे भ्रष्ट राजनैतिक परिवारो को जनता ने सत्ता से पैदल कर दिया है, चूँकि सी०आई०ए० और मोसाद के पास कोई राजनैतिक विकल्प नही बचा था, इसलिये उन्होने धार्मिक चरमपंथी राजनीतिज्ञ फजलुर रहमान की आड़ मे इमरान खान को निशाना बनाने का फैसला किया है.
क्योकि सड़क पर अगर चरमपंथियो और सेना के बीच मे टकराव होता है,
तब पाकिस्तान ग्रह-युद्ध की आग मे झुलस जायेगा और बाहरी ताकतो को इस अवसर का लाभ उठाकर अपना एजेंडा लागू करने मे आसानी होगी।
निचले स्तर के महत्वकांक्षी मौलाना फजलुर रहमान के खून मे ही गद्दारी के विषाणु है, इनके पिता मौलाना मुफ्ती महमूद भारत मे स्थित मुरादाबाद और देवबंद के मदरसो से शिक्षित मुस्लिम धर्मगुरु और एक धूर्त राजनीतिज्ञ भी थे.
दुनिया टीवी न्यूज़ के अनुसार पहले उन्होने खामोशी से पाकिस्तान को तोड़ने की कोशिश करी, किन्तु जब उसकी दाल नही गली तो पख्तून राष्ट्रवादियो के साथ मिलकर नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस मे अपनी सरकार बनाई, वह 1972 से 73 तक ख़ैबर पख्तूनख्वा प्रांत के मुख्यमंत्री भी रहे थे।
मिस्र के प्रख्यात अल अज़हर विश्वविद्यालय से शिक्षित फजलुर रहमान 1988 मे पहली बार पाकिस्तान मे संसद सदस्य बना और वह 2002 मे प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार बन चुका था, वह 2004 से 2007 के बीच विपक्ष का नेता भी रहा,
वह 2014 मे मंत्री बना और फिर 2017 मे वह राष्ट्रपति का चुनाव हार गया।
इमरान खान के राजनैतिक उदय के बाद पाकिस्तान मे राजनीतिक वातावरण बदल गया, परिणाम स्वरूप फजलुर रहमान संसद का चुनाव भी नही जीत सका और पूरी तरीके से उसका राजनैतिक कैरियर चौपट हो गया, ऊपर से अफगानिस्तान की सीमा पर बाड़ लगने से नशीले पदार्थो का व्यापार करने वाली माफिया से मिलने वाले चंदे की आमदनी भी खत्म हो गई।
राजनैतिक और आर्थिक मार झेल रहे फज़लुर रहमान के पास “करो या मरो” के अलावा अब कोई रास्ता नही बचा था, ऐसे मे उसने विदेशी खुफिया एजेंसियो की सहायता से इमरान सरकार का तख्ता पलटने की योजना बना ली।
फजलुर रहमान के मदरसो की श्रंखला तालेबानी आतंकवादी बनाने की फैक्ट्री रही है और यह पाकिस्तान मे तालिबानी आतंकवादियो का खुला समर्थक रहा है, इसलिये इसको उस अफगान सरकार का भी पूरा समर्थन प्राप्त है, जिस अफगान सरकार की पीठ पर अमेरिका का हाथ है।
फजलुर रहमान का निशाना सिर्फ इमरान खान नही है बल्कि सेना अध्यक्ष बाजवा और आईoएसoआईo प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद भी है, क्योकि यह दोनो इमरान खान के दो हाथ है।
गृहयुद्ध जैसे हालात
जब भारत-पाक सीमा पर युद्ध के बादल मंडरा रहे है और अफगान सीमा पर बैठे तालिबानी आतंकवादी पाकिस्तान मे घुसकर वारदात करने की ताक मे है, तब गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा करने का उद्देश्य सिर्फ सेना के ऊपर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना है, ताकि सेना से मनमाफिक समझौता करके फजलुर रहमान पाकिस्तान का आपातकालीन प्रधानमंत्री बन जाये और उसके विरुद्ध चल रहे भ्रष्टाचार के सारे मुकदमे बंद कर दिये जाये।
परंतु पाकिस्तानी सेना दोग़ले और विदेशी एजेंट फजलुर रहमान को सख्त नापसंद करती है, दूसरे अमरीका डबल गेम खेलते हुये एफ०ए०टी०एफ० के द्वारा पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है, कि वह धार्मिक चरमपंथियो के ऊपर कठोर कार्यवाही करते हुये उनके स्कूलो और मिलने वाले चंदे पर लगाम लगाये।
ऊपर से पाकिस्तानी सेना को आजकल अंतरराष्ट्रीय बिरादरी मे अलग-थलग पड़ जाने का डर सता रहा है, क्योकि अगर फजलुर रहमान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया गया, तो विरोधियो को प्रोपेगंडा करने मे आसानी होगी, कि पाकिस्तान एक चरमपंथी इस्लामिक देश बन गया है और जिसका काम विश्व मे आतंकवाद निर्यात करना है।
अब अमेरिका के दोनो हाथो मे लड्डू है, अगर सड़क पर संघर्ष होता है, तब पश्चिमी देश, उनकी मीडिया और उनके संघटन पाकिस्तान मे मानवाधिकार हनन और लोकतंत्र की हत्या का रोना रोयेगे, अगर फजलुर रहमान सफल होता है, तो विरोधी देश आतंकवाद के पोषण का आरोप लगाकर पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने की कोशिश करेगे।
इस षड्यंत्र मे अमेरिका और इजरायल कितना सफल होते है? यह तो समय ही बतायेगा, किंतु मौलाना फजलुर रहमान का नाम भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानो मे मीर जाफ़र और मीर कासिम जैसे गद्दारो के साथ ही लिखा जायेगा।
एज़ाज़ क़मर (रक्षा, विदेश और राजनीतिक विश्लेषक)
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