नागरिकता संशोधन विधेयक हमारे संविधान की भावना के विरुद्ध है एवं भेदभावपूर्ण है। यह मुसलमानों को छोडकर पड़ोसी देशों से भारत आने वाले सभी ग़ैर मुस्लिम समुदायो को नागरिकता देने का प्रस्ताव करता है। यह विधेयक हमारे संविधान के निर्माताओं द्वारा परिकल्पित विविध,धर्मनिरपेक्ष एंव लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत के मूल विचार के विरुद्ध है।
स्पष्ट है कि यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के एजेंडे का हिस्सा है, अतः हमें पूरा विश्वास है कि भारत के लोग इस तरह की विभाजनकारी राजनीति के शिकार नहीं होंगे। यदि सरकार राष्ट्रव्यापी एनआरसी पर ज़ोर देती है और नागरिकता संशोधन विधेयक को आगे बढ़ाती है, तो हम आपसे अनुरोध करते हैं कि इसका विरोध करें और इसे तब तक जारी रखें जब तक कि यह खारिज न हो जाए।
यदि राजनीतिक पार्टियों को भारतीय जनता का विश्वास जीतना है और आगे के चुनावों में वोट प्राप्त करना है तो CAB और NRC, का सदन से सड़कों तक हर जगह विरोध करना होगा।
हमें उम्मीद है कि सभी विपक्षी दल संसद में अपनी भूमिका निभाएंगे,वाक आउट नहीं करेंगें, बल्कि दृढ़तापूर्वक इस बिल का विरोध करेंगें।
संबंधित संगठनों एवं नागरिकों को इन निरर्थक पहलों को रोकना चाहिए और आने वाली पीढ़ियों की रक्षा करनी चाहिए।
क्या है नागरिकता संशोधन बिल
नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया जा रहा है, जिससे नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव होगा। नागरिकता बिल में इस संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा।
कम हो जाएगी निवास अवधि
भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए देश में 11 साल निवास करने वाले लोग योग्य होते हैं। नागरिकता संशोधन बिल में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि की बाध्यता को 11 साल से घटाकर 6 साल करने का प्रावधान है।