मोदी सरकार की महत्वकांक्षी योजनाएं एक के बाद एक विफल होती नज़र आ रही हैं। रोज़गार के मुद्दे पर भारी विरोध झेल रही मोदी सरकार की एक अन्य योजना के आकड़े दिखाते हैं कि योजना युवाओं का भला करने में सफल नहीं रही है। प्रधानमंत्री की मुद्रा योजना के अंतर्गत युवाओं को छोटे कर्ज़ तो दिए गए हैं लेकिन थोड़े बड़े कर्ज़ देने में योजना का प्रदर्शन ख़राब नज़र आता है। साथ ही छोटे कर्ज़ में भी जितना पैसा दिया गिया है वो व्यापर या उद्योग के लिए नाकाफी है।
प्रधानमंत्री की मुद्रा योजना की शुरुआत स्वरोजगार के नज़रिए से की गई थी। इसकी शुरुआत अप्रैल 2015 में हुई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने पहले तो हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा किया था। लेकिन जब वो अपना वादा निभा नहीं पाए तो उन्होंने स्वरोजगार के लिए इस योजना की शुरुआत की।
मुद्रा योजना के तहत तीन श्रेणियों में क़र्ज़ दिया जाता है : शिशु, किशोर और तरुण वर्ग। शिशु वर्ग के तहत 50,000 रुपये तक का क़र्ज़ मुहैया कराया जाता है। किशोर वर्ग में पांच लाख तक का लोन लेने की सुविधा है। वहीं, तरुण वर्ग के आवेदक पांच से दस लाख तक का लोन ले सकते हैं। वर्तमान समय में महज़ 50,000 की रकम के साथ कोई भी व्यापर या उद्योग शुरू करना मुश्किल है।
इसलिए युवाओं को बड़े कर्ज़ की आवश्कता होती है। लेकिन यही सरकार कदम पीछे हटा रही है। योजना के अंतर्गत ज़्यादातर क़र्ज़ शिशु वर्ग के तहत दिए जा रहे हैं। 2016-17 के आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि इस वर्ग के तहत आए लोन आवेदनों में से 90 प्रतिशत से ज़्यादा मंजू़र हो गए और लोगों को आसानी से क़र्ज़ मिल गया।
दूसरी तरफ, किशोर और तरुण वर्ग के लोन यानि पांच लाख और दस लाख तक के लोन के लगभग 6.7 व 1.4 प्रतिशत आवेदकों को ही लोन मिल पाया है। वहीं, शिशु वर्ग के तहत दिए गए क़र्ज़ का औसत निकालें तो पता चलता है कि हरेक आवेदक को औसतन मात्र 23,000 से 30,000 रुपये का लोन प्राप्त हुआ। उससे पहले के साल में यह राशि 20,000 से भी कम थी। सवाल किया जा रहा है कि भला इतनी कम राशि में कोई बेरोज़गार नया काम-धंधा कैसे शुरू कर सकता है?