भारत और मिस्र के रिश्तों में नए सिरे से गर्माहट आई है। हालांकि दोनों देश बहुत पुराने दोस्त हैं और कभी किसी रणनीतिक दबाव में किसी ने भी पाला बदलने की कोशिश नहीं की। मगर बीच के कुछ सालों में कुछ ठंडापन आ गया था। पिछले कुछ सालों से इसमें फिर से नई ऊर्जा लौटी है। खासकर कोरोना महामारी के दौरान जब भारत को दवाओं की जरूरत थी, तब मिस्र ने आगे बढ़ कर मदद की।
वैसे ही जब रूस- यूक्रेन युद्ध छिड़ा और उन देशों से मिस्र को गेहूं मिलना बंद हो गया, तब भारत ने उसकी मदद की। अब राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल- सीसी को गणतंत्र दिवस परेड का मुख्य अतिथि बना कर भारत ने मिस्र को विशेष सम्मान दिया है। इस मौके पर दोनों देशों के बीच पांच बिंदुओं पर समझौते भी हुए, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है आतंकवाद के खिलाफ मिल कर लड़ने की वचनबद्धता ।
इसके अलावा दोनों देश सूचना प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, संस्कृति, युवा मामले और प्रसारण के क्षेत्र में मिल कर काम करेंगे। हालांकि भारत के साथ मिस्र का व्यापार पिछले कुछ सालों में बहुत तेजी से बढ़ा है और पहले की तुलना में पचहत्तर फीसद अधिक हो गया है, मगर इसमें अभी बहुत संभावनाएं हैं। फिर, बदलती वैश्विक स्थितियों में भारत के लिए मिस्र से दोस्ती कई अन्य कारणों से भी महत्त्वपूर्ण है।
लोकप्रिय मिस्र अफ्रीकी महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है, जिससे भारत के पुराने रिश्ते हैं। उसके साथ रिश्तों में मजबूती लाकर भारत मध्य-पूर्व में अपनी महत्त्वपूर्ण उपस्थिति बना सकता है। भूमध्य सागर, लाल सागर, अफ्रीका और पश्चिम एशिया में मिस्र की अहम पकड़ है। यहां की स्वेज नहर एशिया और यूरोप के बीच लोकप्रिय मार्ग है, जो हिंद महासागर को लाल सागर और भूमध्य सागर को जोड़ती है। भारत के लिए व्यापारिक दृष्टि से यह मार्ग बहुत उपयोगी है।
इस समय मिस्र आर्थिक तंगी से गुजर रहा है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से खाली हो रहा है। रूस- यूक्रेन युद्ध की वजह से उसे गेहूं की किल्लत से जूझना पड़ रहा है। ऐसे में वह चाहता है कि भारत उसे और गेहूं निर्यात करे। गेहूं निर्यात पर रोक के बावजूद भारत ने मिस्र को गेहूं उपलब्ध कराया था, अब भी उसे इसमें कोई अड़चन नहीं है, क्योंकि भारत के पास गेहूं का भंडार काफी है।
फिर मिस्र में भारतीय कंपनियों के लिए निवेश के कई अच्छे अवसर हैं। पिछले कुछ सालों में कई कंपनियों ने रसायन, ऊर्जा, वाहन निर्माण आदि क्षेत्रों में भारी निवेश किया भी है। मिस्र चाहता है कि भारत और निवेश बढ़ाए, ताकि वह आर्थिक मंदी से उबर सके।
भारत भी आर्थिक मोर्चे पर बेहतरी के प्रयास कर रहा है। तमाम कोशिशों के बावजूद निर्यात के क्षेत्र में उसे अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पा रही। इसके चलते भारी उद्योगों में सुस्ती देखी जा रही है। ऐसे में मिस्र उसके लिए एक बड़ा बाजार हो सकता है। रक्षा क्षेत्र में वह भारत का बड़ा खरीदार भी हो सकता है। हालांकि पहले ही मित्र ने भारत में बने तेजस लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर दिलचस्पी दिखाई थी, अब वह सौदा करना चाहता है।
इस तरह वह भारतीय रक्षा सामग्री का खरीदार देश भी बन सकता है। सबसे बड़ी बात कि मिस्र के जरिए भारत पाकिस्तान पर दबाव बना सकता है। ताजा समझौतों के समय राष्ट्रपति अब्दुल फतह अल-सीसी ने आतंकवाद को कतई सहन न करने का आन करते हुए इसे विदेश नीति के उपकरण के तौर पर इस्तेमाल करने वाले देशों की निंदा भी की।