निम्मी हमारे पिता की जनरेशन वालीं थीं. हम नेकर पहने हुए उनकी तारीफें अपने पिता जी और उनके साथियों के मुंह से सुना करते थे. जब होश संभाला तो उस दौर की नौजवान पीढ़ी को उनका दीवाना पाया. तब हमने उनकी तमाम पुरानी फ़िल्में अपने शहर लखनऊ के जगत, मेहरा, सुदर्शन जैसे हाफ-रेट के जर्जर सिनेमाहालों में देखीं. पचास के सालों में न सिर्फ़ निम्मी की एक्टिंग का बल्कि खूबसूरती का परचम भी फहराया करता था.
18 फरवरी 1932 को आगरा में जन्मीं निम्मी का असली नाम नवाब बानो था. उनके कांट्रेक्टर पिता को खुद को नवाब कहलाना बहुत पसंद था, मगर कोई इसके लिए तैयार ही नहीं था. जब उनकी बेटी हुई तो उसका नाम नवाब रख दिया, खुद न बन सके बेटी ही सही. मां वहीदन ने पीछे बानो जोड़ दिया. ये निम्मी नाम तो राजकपूर ने दिया. दरअसल, निम्मी प्रसिद्ध गायक-एक्टर जीएम दुर्रानी की पत्नी ज्योति संग महबूब खान से काम मांगने गयीं थीं. निम्मी की मां वहीदन ने कभी महबूब खान के साथ काम किया था. उस समय महबूब खान दिलीप-नरगिस-राजकपूर की ‘अंदाज़’ की शूटिंग में व्यस्त थे.
निम्मी और ज्योति नरगिस की मां जद्दन बाई के पास बैठी थीं. तभी राजकपूर उनके चरण स्पर्श करने आये. उनकी नज़र निम्मी पर पड़ी, ऐ मासूम दिख रही खूबसूरत और लड़की तेरा नाम क्या है? निम्मी लजा गयी. राजकपूर फ़िदा हो गए. यही लड़की चाहिए उन्हें. ‘बरसात’ (1949) में नरगिस के साथ साइड रोल ऑफर किया और नया नाम दिया, निम्मी. और बाकी तो हिस्ट्री है. नरगिस से ज़्यादा चर्चा निम्मी की हुई…जीया बेक़रार है छाई बहार है आजा मेरे बालमा तेरा इंतज़ार है…बरसात में तुमसे मिले हम सजन…पतली कमर है….उस दौर के मशहूर ये गाने निम्मी पर फ़िल्माये गए.
सज़ा (1951) में देवानंद के अपोज़िट श्यामा संग थीं…तुम न जाने किस जहाँ में खो गए…मगर दिल लूट ले गयी श्यामा. महबूब ख़ान ने टैक्नीकलर ‘आन’ (1951) में उन्हें मंगला का साइड रोल दिया, जो दिलीपकुमार के लिए जान दे देती है…आज मेरे मन में सखी बांसुरी बजाये कोई…खेलो रंग हमारे संग आज आज दिन रंग रंगीला आया….इसके एक सीन में दिलीप कुमार निम्मी को पकड़ने का प्रयास करते हैं. मगर सफल नहीं हुए.
तब महबूब खान से कहा, अगली फिल्म में इस लड़की को न लेना, दौड़ाती बहुत है. ‘आन’ का प्रीमियर लन्दन में भी हुआ. वहां निम्मी की खूबसूरती से मोहित होकर एक नामी एक्शन हीरो Errol Flynn ने अंग्रेज़ी रीति-रिवाज़ों के मुताबिक निम्मी का हाथ पकड़ कर चूमना चाहा. मगर निम्मी ने झट से हाथ खींच लिया, मैं हिंदुस्तानी लड़की हूं. अगले दिन लन्दन के अख़बारों में निम्मी की बड़ी तस्वीर छपी, अन-किस्ड इंडियन गर्ल.
यहीं उनकी भेंट ‘टेन कमांडमेंट’ और ‘सैमसन डिलाइला’ जैसी मशहूर फ़िल्में बनाने वाले Cecil B.demille से हुई. वो भी निम्मी से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके. अंग्रेज़ी फिल्म ऑफर की. मगर निम्मी पीछे हट गयी, यहां चूमा-चाटी बहुत है.
निम्मी ने सबसे ज़्यादा दिलीप कुमार के साथ काम किया है. आन के अलावा दीदार, उड़न खटोला, दाग़ और अमर. ‘अमर’ में उनके साथ मधुबाला भी थीं. इसमें वक़ील दिलीप कुमार एक तूफानी रात में निम्मी से रेप करते हैं. मगर अदालत में निम्मी अपना मुंह नहीं खोलती. उनके चेहरे के एक्सप्रेशन देखने लायक थे. तब क्लाइमैक्स सीन में दिलीप कुमार कहते हैं, रेप करने वाला वो शख्स मैं था. ‘अमर’ की शूटिंग के दौरान एक दिलचस्प वाक्या हुआ. निम्मी दिलीप कुमार का कुछ ज़्यादा ही ध्यान रखती थीं.
उनका खाना-पीना और आराम फ़रमाना. ये देख दिलीप कुमार को दिलो जान से चाहने वाली मधुबाला को बर्दाश्त न कर सकीं, कुछ शक हुआ और जलन भी. उन्होंने निम्मी को किनारे ले जाकर पूछ ही लिया, अगर तेरे मन में दिलीप की चाह है तो मैं ख़ुशी ख़ुशी रास्ते से हट जाऊंगी. तब निम्मी ने हँसते हुए कहा, ना री.
मुझे प्रेमी ख़ैरात में नहीं चाहिए… न मिलता ग़म तो बर्बादी के अफ़साने कहां जाते…’दाग़’ में वो शराबी पति दिलीप कुमार का बेसब्री से इंतज़ार करती है…काहे को देर लगाई रहे अब तक न आये बालमा…प्रीत ये कैसी बोल रे दुनिया…’उड़न खटोला’ दिलीप कुमार के साथ उनकी अंतिम फिल्म थी, जिसमें उन्हें मर्दाना लिबास पहनना पड़ा… ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ ले ले हम रह न जाएँ अकेले…
फिल्मों में अपनी भूमिका के बारे में निम्मी बहुत सेंसिटिव और सेलेक्टिव रही. यही कारण है कि लम्बे फ़िल्मी कैरीयर में उन्होंने कुल 48 फ़िल्में ही कीं. मगर दो बार वो ग़लत साबित हुई. बीआर चोपड़ा ने उन्हें ‘साधना’ (1958) में लीड रोल ऑफर किया. मगर निम्मी ने इंकार कर दिया, तवायफ़ के किरदार को एक बार जीया तो बाकी ज़िंदगी भी ऐसे ही किरदार मिलेंगे. मगर बाद में वो बहुत पछतायीं जब चोपड़ा ने महज़ चार फिल्म पुरानी वैजयंती माला को चुन लिया जिसके लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला. हालांकि निम्मी इसका खंडन करती हैं, कुछ गलतफहमी हो गयी थी.
निम्मी से दूसरी गलती यह हुई कि उन्होंने हरनाम सिंह रवैल की ‘मेरे महबूब’ (1963) में अनवर (राजेंद्र कुमार) के ऑपोज़िट हीरोइन हुस्नबानो का ऑफर मना कर दिया. उन्हें लगा कि हुस्नबानो की जगह अनवर की बहन नज़मा का किरदार बेहतर है, स्कोप भी ज़्यादा है क्योंकि उसमें बहन के अलावा तवायफ़ का किरदार भी शामिल है जो भाई अनवर को पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाती है. मगर दांव उलटा पड़ा. उनकी जगह साधना ने हुस्नबानो का किरदार किया. और साधना रातों-रात अपनी हेयर स्टाइल और ड्रेस के लिए मशहूर हो गयी.
बहरहाल निम्मी पर फिल्माया ये गाना बहुत मशहूर हुआ…अल्लाह बचाये नौजवानों से…इसके बाद निम्मी का उतार शुरू हो गया. हालांकि सुना है कि निम्मी के मिस्टिक चेहरे को देख राजखोसला उन्हें ‘वो कौन थी’ में लेना चाहते थे, लेकिन बात बनी नहीं. पूजा के फूल (1964) में वो प्राण की अंधी बहन बनीं…म्याऊं म्याऊं मेरी सखी अच्छी अच्छी मेरी सखी…जिससे धर्मेंद्र उनसे मजबूरी में शादी करता है। ‘आकाशदीप’ (1965) में वो अशोक कुमार की गूंगी पत्नी हैं. भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए जुबान नहीं थी.
लेकिन प्रश्न ये उठा कि इतना सुंदर और मासूम चेहरा, गाना तो होना चाहिए. डायरेक्टर फणि मजूमदार ने ग्रामोफ़ोन के माध्यम से निम्मी की भावनाओं की अभिव्यिक्ति करा ही दी…दिल का दीया जला के गया कौन मेरी तन्हाई में…कहा जाता है निम्मी सेकंड लीड किरदारों में ज़्यादा सहज रहती थीं. उन्हें एक्टिंग के हुनर दिखाने का भरपूर अवसर मिलता था.
‘मुगले आज़म’ के दौरान ही के.आसिफ ने ‘लव एंड गॉड’ की कास्ट फ़ाइनल कर दी थी. लैला-मजनूँ के कालजयी कथानक पर आधारित इस प्रोजेक्ट में लैला निम्मी थीं और मजनूँ गुरूदत्त. फ़िल्म का कुछ हिस्सा बना ही था कि गुरुदत्त की रहस्यमई मृत्यु हो गयी. गुरू की जगह ली संजीव कुमार ने. मगर त्रासदियों ने पीछा नहीं छोड़ा. के.आसिफ की मृत्यु हो गयी. करीब बीस साल फिल्म डिब्बे में बंद रही.
निम्मी तो फिल्म को भूल ही चुकी थी. के.आसिफ की बेवा अख़्तर ने इसे एक नए अंदाज़ में पेश करने का प्रयास किया. लेकिन तभी संजीव की आकस्मिक मृत्यु हो गयी. फिर भी ‘लव एंड गॉड’ 1986 में रिलीज़ हुई, मगर बुरी तरह फ्लॉप रही. निम्मी के चाहने वालों को भी परी चेहरा निम्मी की एक-आध झलक ही दिख पायी. निम्मी की कुछ अन्य मशहूर फ़िल्में हैं, आंधियां, भाई भाई, बांवरा, शमा, चार दिल चार राहें, बसंत बहार, सोहनी महिवाल, उंगलीमाल, शमा आदि.
निम्मी ने सुप्रसिद्ध फिल्म राइटर अली रज़ा से शादी की, जिनका 2007 में निधन हो गया. पति के इंतक़ाल के बाद निम्मी अकेली रह गयीं। उन्होंने बाकी की ज़िंदगी अपनी बहन की बेटी के साथ गुज़ारने के फैसला किया.
कुछ वक़्त पहले यूट्यूब पर उनका एक इंटरव्यू देखा था, मुंह में दांत नहीं थे, मगर साफ बोलती थीं और सुनती भी थीं. याददाश्त अच्छी थी. हाँ, कुछ बातें भूल गयीं, मगर याद दिलाने पर सर हिला दिया. 25 मार्च 2020 की 87 बसंत देख चुकी निम्मी का इंतक़ाल हो गया।