नई दिल्ली – तीन तलाक के समर्थन में कहीं रैली निकाली जाती है तो कहीं विरोध में रैली निकाली जाती है पिछले दिनों गुजरात में देशभर की मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक के विरोध में जमकर विरोध प्रदर्शन किया था लेकिन जिसका सरकार पर आज तक भी कोई असर नहीं हुआ है लगता है कि सरकार अपनी मनमानी करने में लगी है वोट बटोरने के लिए सरकार कुछ भी कर सकती है ऐसा ही एक तीन तलाक मामले में हो रहा है हालांकि तीन तलाक मामला नया नहीं है यह पहले से ही चला आ रहा है।

जमीअत उलेमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने तीन तलाक के अध्यादेश पर सरकार पर हमला करते हुए कहाँ है कि यह शरीयत में दखलंदाजी है,जो कि हरगिज़ बर्दास्त नही की जा सकती है मौलाना मदनी ने कहा कि भारतीय संविधान में दिए गए अधिकारों के तहत मुसलमानों के धार्मिक और शरई मामलों में अदालत या पार्लियामेंट को हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है,इसलिए ऐसा कोई भी कानून या अध्यादेश जिससे शरीयत में हस्तक्षेप होता है वह मुसलमानों के लिए बिल्कुल भी मान्य नहीं होगा और मुसलमान हर स्थिति में शरीयत का पालन करना अपना प्रथम कर्तव्य समझते हैं और समझते रहेंगे।

मौलाना मदनी ने अध्यादेश को विरोधाभासी करार देते हुए कहा कि इसमें मुस्लिम तलाक शुदा औरतों के साथ न्याय नहीं बल्कि बड़े अन्याय होने का खतरा है। इसके तहत इसकी बड़ी आशंका है कि तलाकशुदा हमेशा के लिए त्रिशंकू हो जाएँ । और उनके लिए दोबारा निकाह और फिर से नई जिंदगी शुरु करने का मार्ग बिल्कुल बंद हो जाए।

मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि यह बड़े आश्चर्य की बात है कि माननीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने दो वर्षों में तलाक के राष्ट्रीय स्तर पर 201 मामलों का हवाला देकर अध्यादेश को संविधानिक अनिवार्यता बताया है, मामला या घटना चाहे एक ही क्यों न हो वो दुखदाई है मगर 16 करोड़ की आबादी वाली कम्युनिटी में वर्ष में सौ मामलों का अनुपात हरगिज़ संवैधानिक अनिवार्यता के क्षेत्र में नहीं आता।
उन्होंने कहा कि सच्चाई तो यह है कि सरकार का यह रवैया असंसदीय, हठधर्मिता और आम सहमति को शक्ति से रौंदने के बराबर है जो किसी भी लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है यह केंद्रीय सरकार की दूषित सोच-निति का प्रमुख उदाहरण है कि जिस कौम के लिए यह कानून बनाया गया है उस के प्रतिनिधियों से कोई सलाह -मशवरा नहीं किया गया।और शरीयत के विशेषग्य संस्थानों और संगठनों ने इस समस्या के समाधान के लिए जो प्रस्ताव पेश किये उन्हें सभी को बिलकुल नज़र अंदाज़ यानि उपेक्षित कर दिया गया।