कालाधन वापस लाने का दावा करने वाली केंद्र की मोदी सरकार ने देश के भीतर विदेश में मौजूद कालाधन की रिपोर्ट सार्वजनिक करने से मना कर दिया है। आरटीआई के तहत सरकार से कालाधन पर उन रिपोर्ट्स की जानकारी मांगी गई थी जो अलग-अलग जांच एजेंसियों ने 2013-14 के दौरान सरकार को सौंपी थी। वित्त मंत्रालय का कहना है कि इन रिपोर्टों की जांच एक संसदीय समिति कर रही है, ऐसे में अगर उन्हें सार्वजनिक कर देने से संसद के विशेषाधिकार का हनन होगा। बता दें कि साल 2011 में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने तीन एजेंसियों के साथ मिलकर काला धन पर जाँच कराई थी। तीनों ने साल 2013-14 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

इन एजेंसियों में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक फ़ाईनेंस एंड पॉलिसी, नेशनल काउंसिल ऑफ़ एप्लाईड इकोनॉमिक रिसर्च, और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ फ़ाईनेंशियल मैनेजमेंट। सत्ता में आने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हर चुनावी रैली में इस बात का दावा किया करते थे कि कि उनके पीएम बनने के 100 दिन के भीतर काला धन देश में आ जाएगा। ये दावा भी आम है कि उन्होंने कथित तौर पर काला धन लाकर हर भारतीय के खाते में 15 लाख रूपये पहुंचाने की बात कही थी। लेकिन अब काला धन तो छोड़िए सरकार उसकी रिपोर्ट देने को भी राज़ी नहीं है।

मोदी सरकार ने ये तो माना है कि, इन संस्थानों ने कालाधन पर रिपोर्ट सौंपी थी, लेकिन उसका कहना है कि, आरटीआई के तहत जो जानकारी मांगी गई है वो आरटीआई के धारा 8 (1) (सी) के तहत नहीं आती है। इसलिए इसे साझा नहीं किया जा सकता है। आरटीआई में दिए जवाब के मुताबिक, संसद की स्थायी समिति को यह रिपोर्ट 21 जुलाई 2017 को सौंपी गई थी। वहीं अमेरिकी शोध संस्थान ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी के एक अध्ययन में कहा गया है कि 2005 से 2014 के दौरान भारत में करीब 770 अरब अमेरिकी डॉलर का कालाधन भारत आया।