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एक कहावत है “शिकार करे शिकारी बेहूदा फ़िरें साथ” आज कल यह कहावत सच होती मालूम हो रही है ! जी हाँ, 28 अक्टूबर से दादरी(गाज़ियाबाद) में एक मुशायरे का आयोजन किया जा रहा है, जो 100 घंटो तक चलेगा, इस मुशायरे को मेराथन मुशायरे का नाम दिया गया है ! जिसमे लगभग देश भर के 500 से ज्यादा शायर और मुताशायर शामिल होंगे ! इसका संचालन शायर नदीम फ़र्रुक करेंगे !
इस मुशायरे के ज़रिये नदीम फ़र्रुक एक रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं ! जिसे गिनीज़ बुक और लिम्का में शामिल करना चाहते हैं ! नदीम फ़र्रुक ने इस मुशायरे के ज़रिये एक नारा बुलंद किया है “शंशाह-ए-नाजिम’ यानि निज़ामत(Anchoring) का शंशाह !
अब यहाँ से एक सवाल जन्म लेता हैं ! आज के जिस दौर में हम जी रहें है जहाँ इंसान को इंसान नहीं समझा जाता है , किसी को भी भीड़ द्वारा मार दिया जाता हो किसी का भी बीच रस्ते मैं एनकाउंटर कर दिया जाता हो ,तो क्या इस दौर में इस तरह के फिज़ूल मुशायरे होने चाहियें ?
नदीम फर्रुख अपनी सस्ती लोकप्रियता के लिए उसी दादरी का इस्तेमाल कर रहें हैं जहाँ से सबसे पहले मोब्लिचिंग की शुरुआत हुई थी ! नदीम फ़र्रुक शायद इस बात को भूल गये हों, लेकिन देश का मुसलमान उस “अख़लाक़” को कभी नहीं भूल सकता ! और देश का मुसलमान उन सब को भी कभी नहीं भुलेगा जो एक पागल भीड़ का शिकार हुए !
नदीम साहब यह क्यों भूल जाते हैं यह उसी मीडिया से इस प्रोग्राम का पर्सारण करा रहें है जो हर वक़्त मुसलमान में एक आतंकवादी दिखता है !
अब बात करते हैं मुस्लिम शिक्षा की, जहाँ स्टेज पर बैठकर नदीम साहब जैसे शायर इस बात को क़बूल करते है कि, मुसलमानों में शिक्षा की हमेशा से कमी रही है , वहीँ दूसरी तरफ इस तरह के बेफिजूल मुशायरे करवा कर वो इस बात की ताईद कर लेते हैं !
मेरी बात कलकत्ता के एक जूनियर शायर से हुई, तो पता चला उन्हें इस मुशायरे में शामिल होने के लिए 10000 रूपये का भुगतान किया जायेगा और रहने और खाने का सारा बंदोबस्त मुशायरा कमेटी करेगी ! इसके अलावा जो बड़े शायर हैं उनका भुगतान और उनके रहने खाने का इंतजाम उनकी काबिलियत के हिसाब से होगा !
अगर हम औसतन एक अनुमान लगायें तो शायरों का खर्च ही करोडो रुपयों में पहुचता है ! इस के अलावा स्टेज बनाने से लेकर सजाने तक का खर्च अवाम के रहने और खाने का इन्तेजाम का खर्च अलग है !
मेरा सवाल इतना है क्या यह बे फ़िज़ूल खर्च को रोक कर इस पैसे का इस्तेमाल मुस्लिमान बच्चो की शिक्षा पर खर्च नहीं क्या जा सकता ?
आज के दौर में मुसलमानों के पास खाने को भोजन नहीं पहनने को कपडा नहीं बच्चो को पढ़ने के लिए पैसे नहीं है वही दूसरी नदीम फ़र्रुक साहब अपने आपको लाइम लाइट में लाने के लिए बेफिजूल करोडो रूपये खर्च कर रहें हैं !
अगर नदीम फर्रुख साहब का अभी ईमान जिंदा है तो उन्हें एक बार सोचना चाहिये कि वो अपनी सस्ती लोकप्रियता के लिए मुसलमानों को शक के दायरे में खड़ा कर रहें हैं !
मैं प्रशासन से भी अपील करूँगा, इस तरह के आयोजनों पर पाबन्दी लगनी चाहिये और इस तरह के प्रोग्राम आयोजन में खर्च होने वाले रुपयों की जाँच होनी चाहिये !
MONIS REHMAN
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Sahi kaha aapne itna paisa aese mushayro par kharch karne se lakh darja behtar hai ki is paisa ka istemal gharib Muslims ki madad ke liye hona chahiye muslim samaj ki tarakki ke liye hona chahiye