जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अयोध्या केस में सुनाए गए फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। यह याचिका मौलाना सैयद अशद रशीदी की ओर से दायर की गई है, जो अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्ष के 10 याचिकाकर्ताओं में से एक हैं।
पुनर्विचार याचिका मे कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने पक्षकारों को राहत के मामले में संतुलन बनाने का प्रयास किया है, हिंदू पक्षकारों की अवैधताओं को माफ किया गया है और मुस्लिम पक्षकारों को वैकल्पिक रूप में पांच एकड़ भूमि का आबंटन किया गया है जिसका अनुरोध किसी भी मुस्लिम पक्षकार ने नहीं किया था।
इस फैसले पर जमीयत उलेमा हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमने फैसले को ही न्यायिक आधार बनाते हुए संविधान द्वारा दी गयी विकल्पों के मद्देनजर पुनर्विचार याचिका में अपनी बात रखी है। उन्होंने कहा कि हमें पूर्णतः उम्मीद हैं कि जिस तरह कोर्ट ने ये माना हैं कि विवादित ढांचा किसी मंदिर को तोड़कर नहीं बनाया गया और ना ही किसी मंदिर की भूमि पर बना हैं।
इस्लामी संगठनों में से एक है जमीयत
जमीयत उलेमा-ए-हिंद या जमीयत उलमा-ए-हिंद भारत में अग्रणी इस्लामी संगठनों में से एक है। इसकी स्थापना 1919 में शेख उल हिंद मौलाना महमूद अल-हसन, मौलाना सय्यद हुसैन अहमद मदनी, मौलाना अहमद सईद देहल्वी, मुफ्ती मुहम्मद नईम लुधियानी, मौलाना अहमद अली लाहोरी, शेख उल तफसीर प्रोफेसर नूर उल हसन खान गजाली, मौलाना बशीर अहमद भट्टा, मौलाना सय्यद गुल बादशा, मौलाना हिफजुर रहमान सेहरवी, मौलाना अनवर शाह कश्मीरी, मौलाना अब्दुल हक मदानी, मौलाना अब्दुल हलीम सिद्दीकी, मौलाना नूरुद्दीन बिहारी और मौलाना अब्दुल बरारी फिरंगी मेहली ने मिलकर की थी।
बता दें कि मौलाना असद मदनी के निधन के बाद जमीयत उलेमा-ए-हिंद दो गुटों में बट गया है। इसमें एक गुट की कमान मौलाना अरशद मदनी के हाथों में तो दूसरे की कमान महमूद मदनी के हाथों में है। संघ प्रमुख से मुलाकत करने वाला जमीयत उलेमा-ए-हिंद अरशद मदनी गुट का है।