नई दिल्ली : मराठा आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट की सवैधानिक बेंच में अहम सुनवाई हुई, मामले की सुनवाई के दौरान बिहार सरकार ने सवैधानिक बेंच के समक्ष अपना पक्ष रखा.
बिहार सरकार ने कहा 50 प्रतिशत की सीमा पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, साल 1993 में बिहार में 129 जातिया अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल थी लेकिन अब इनकी संख्या बढ़कर 174 हो चुकीं है.
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बिहार सरकार ने कहा समाज में बदलते परिस्थितियों के मुताबिक कानून में बदलाव की जरूरत है, बिहार सरकार ने कहा कि आर्थिक तौर पिछड़े लोगो के लिए दिए गए 10 प्रतिशत के कानून के चलते पिछड़े वर्ग को मिलने वाले आरक्षण में कटौती हुई है, इसके चलते सरकारी नोकरियो में पिछड़े वर्ग को लोगों की संख्या घटी है.
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान बेंच के सामने 102वें संशोधन की एक्सप्लेनेशन का मुद्दा उठा, सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा और नौकरियों में मराठों को आरक्षण देने के 2018 महाराष्ट्र कानून से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई कर रही है.
इसी दौरान बेंच ने सभी राज्यों को नोटिस जारी करते हुए कहा कि वह इस मुद्दे पर भी दलीलें सुनेगी कि क्या इंदिरा साहनी मामले में 1992 में आए ऐतिहासिक फैसले, उस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि इंद्रा साहनी के फैसले पर विचार करने के मामले में सभी राज्यो को सुनना बेहद जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सभी राज्यों पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा, महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों मुकुल रोहतगी, कपिल सिब्बल और पी, एस, पटवालिया की उस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने गौर किया कि 102वें अमेंडमेंट की एक्सप्लेनेशन के सवाल पर फैसला राज्यों के फेडरल स्ट्रक्चर को प्रभावित कर सकता है.
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इसलिए, उन्हें सुनने की जरूरत है, इस पर जवाब देते हुए केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के, के, वेणुगोपाल ने कहा कि इस फैसले से राज्य प्रभावित हो सकते हैं और यह बेहतर होगा कि सभी राज्यों को सुना जाए.
साल 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने का आदेश जारी किया था, जिसे इंदिरा साहनी ने कोर्ट में चुनौती दी थी.
इंदिरा साहनी केस में नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए.