हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव का एलान हो गया है. इस वक्त चुनावी मैदान में तीन बड़ी पार्टियां मैदान में उतरी हुई हैं.सबसे पहली पार्टी है- बीजेपी, यानी जिसकी प्रदेश में इस वक्त सरकार बनी हुई है. दूसरी पार्टी- कांग्रेस, जो राज्य में एक बार फिर अपनी किस्मत आजमाने के लिए मैदान में है. तो वहीं तीसरी पार्टी आप, जो कि पंजाब में जीतने के बाद अब हिमाचल प्रदेश में दिल्ली वाले मॉडल को नजराना बनाए हुए है और पहली बार हिमाचल प्रदेश में चुनाव लड़ने जा रही है.
आइये जानें क्या है आप और कांग्रेस की कमज़ोरी
कांग्रेस की कमज़ोरी
1. टॉप लीडरशिप की कमी : पार्टी में इस वक्त लीडरशिप को लेकर बड़े सवाल उठ रहे हैं यानी की राज्य में इस वक्त पार्टी को लीड करने के लिए कोई बड़ा चेहरा नहीं दिखाई दे रहा है. राहुल गांधी इस वक्त भारत जोड़ो यात्रा में लगे हुए हैं लेकिन प्रदेश में रैलियों की अगर बात की जाए तो वो बीजेपी के मुकाबले कम है. पिछले एक महीने में कांग्रेस की तरफ से सिर्फ एक रैली की गई है.
2. गुटबाजी: पार्टी में इस वक्त विभाजन देखने को मिल रहा है. सीएम पद के कई दावेदार हैं वहीं दूसरी ओर दल-बदल के बाद भी पार्टी को बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए हर्ष महाजन ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलने के लिए भी तीन-तीन महीने का इंतजार करना पड़ता है. हर्ष महाजन ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस की ओर से चुनाव जीतने पर 18 से 60 साल की महिलाओं को प्रतिमाह 1500 रुपए देने का दावा किया गया है, लेकिन यह घोषणा मात्र एक भम्र है. जिससे राज्य में पार्टी की छवि को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं.
3. वीरभद्र सिंह का निधन : पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के निधन के बाद प्रदेश में पार्टी इस जगह को भर नहीं पाई है. वीरभद्र छह बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रह चुके थे और राज्य में उनका बड़ा बोलबाला था. इसलिए कांग्रेस नेतृत्व की कमी को लेकर भी चुनावी मैदान में मात खा सकती है.
आम आदमी पार्टी की कमजोरियां
1.पहली बार लड़ रही चुनाव: आम आदमी पार्टी पहली बार राज्य में चुनाव लड़ने जा रही है और राज्य में उसकी कोई जमीनी मौजूदगी नहीं है. जिससे दूसरी पार्टियों के मुकाबले आम आदमी पार्टी इस वक्त कमजोर साबित हो रही है. इसके अलावा कांग्रेस और बीजेपी का राज्य में अपना ऐतिहासिक चुनावी समीकरण है.
2.लीडरशिप की कमी: वहीं पार्टी के पास इस समय कोई मजबूत नेता नहीं है जो राज्य में पार्टी की धांक जमा सके. इसके लिए पार्टी अच्छे नेतृत्व को खोजने में असमर्थ रही है.
3. दल-बदल के झटके: इसी के साथ पार्टी को आक्रामक शुरुआत के बाद दल-बदल के कारण कई बड़े झटके लगे हैं. राज्य में पार्टी के पास 2-3 सीटों के अलावा कहीं भी मजबूत दावेदारी नहीं है. इसके अलावा राज्य में पार्टी में दिल्ली के सीएम केजरीवाल के चेहरे को ज्यादा तवज्जोह दी जा रही है हालांकि पार्टी का नेतृत्व इस वक्त सुरजीत ठाकुर है.इससे पार्टी की कमजोरी छलक कर सामने आ रही है.