नई दिल्ली: कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी दलों ने शुक्रवार को उपराष्ट्रपति व राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू से मिलकर भारत के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के ख़िलाफ़ महाभियोग चलाने का नोटिस दिया। ख़बरों के मुताबिक, सात राजनीतिक दलों से तकरीबन 71 सांसदों ने प्रधान न्यायाधीश के ख़िलाफ़ महाभियोग का नोटिस दिया।
महाभियोग के नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले सांसदों में कांग्रेस, राकांपा, माकपा, भाकपा, सपा और बसपा के सदस्य शामिल हैं। हालांकि इनमें से 7 सेवानिवृत्त हो चुके हैं, अब महाभियोग चलाने वाले सांसदों की संख्या 64 रह गई है। इन दलों के नेताओं ने शुक्रवार को पहले संसद भवन में बैठक की और महाभियोग के नोटिस को अंतिम रूप दिया। बैठक के बाद विपक्ष के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने पुष्टि की कि नेता प्रधान न्यायाधीश के ख़िलाफ़ महाभियोग का नोटिस दे रहे हैं।
संसद भवन में हुई बैठक में कांग्रेस नेता आज़ाद, कपिल सिब्बल, रणदीप सुरजेवाला, भाकपा के डी. राजा और राकांपा के वंदना चह्वाण ने हिस्सा लिया। सूत्रों के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक पहले प्रधान न्यायाधीश के महाभियोग के पक्ष में थे, लेकिन बाद में इससे अलग हो गए। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा सीबीआई के विशेष जज बीएच लोया की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मृत्यु की जांच के लिए दायर याचिकाए खारिज किये जाने के अगले ही दिन महाभियोग का नोटिस दिया गया है।
लोया सोहराबुद्दीन केस की सुनवाई कर रहे थे। जिसमें बीजेपी के राष्ट्रीय अछ्यक्ष अमित शाह को आरोपी बनाया गया था। महाभियोग का नोटिस देने के लिए राज्यसभा के कम से 50 सदस्यों जबकि लोकसभा में कम से कम 100 सदस्यों के हस्ताक्षर की ज़रूरत होती है। कांग्रेस नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद ने बताया, ‘महाभियोग नोटिस पर 71 सांसदों ने हस्ताक्षर किया था, लेकिन सात सेवानिवृत्त हो चुके हैं, अब संख्या 64 रह गई है।
राज्यसभा में न्यूनतम संख्या 50 होनी चाहिए। कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘प्रधान न्यायाधीश जिस तरह से कुछ मुक़दमों का निपटारा कर रहे हैं और अपने अधिकारों का प्रयोग कर रहे हैं, उस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। प्रधान न्यायाधीश के कामकाज की ओर इशारा करते हुए सिब्बल ने कहा, ‘जब उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को लगता है कि न्यापालिका की स्वतंत्रता ख़तरे में है तो क्या हमें चुप रहना चाहिए, कुछ नहीं करना चाहिए।’ सिब्बल ने आरोप लगाया कि अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने संवैधानिक आदर्शों का उल्लंघन किया।