इस साल अप्रैल के आखिरी महीने में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और एएस बोपन्ना की तीन सदस्यी पीठ ने पत्रकार सिद्दीक कप्पन को दिल्ली के अस्पताल में बेहतर इलाज का आदेश दिया। आदेश में न्यायमूर्तियों ने जो टिप्पणी की, वह एक नजीर है। अदालत ने कहा, ”हमारा मानना है कि एक विचाराधीन कैदी को भी बिना किसी शर्त के जीने का मौलिक अधिकार, सबसे कीमती है।” हाथरस में दलित बेटी के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना को कवर करने जाते केरल के पत्रकार कप्पन को यूपी पुलिस ने गिरफ्तार किया था। पिछले साल 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 के हालात देखकर देश की सभी सरकारों-अदालतों को कुछ दिशानिर्देशों के साथ आदेश दिया था कि ऐसे कैदियों को अंतरिम जमानत या पैरोल पर जेलों से रिहा करें।
भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी 84 साल के फादर स्टैन स्वामी उन दिशानिर्देशों की परिधि में आते थे, मगर उनकी जमानत अर्जी खारिज हुई। जब पुनः गंभीर बीमारी की हालत में दाखिल की गई, तो तुरंत सुनवाई नहीं हुई। उनके जीने का हक छीना गया। अस्पताल में तब दाखिल कराया गया, जब हालत गंभीर हो गई। पार्किंसन बीमारी से पीड़ित फादर स्टैन स्वामी को पानी पीने के लिए एक स्ट्रॉ भी नहीं दी गई। सुप्रीम कोर्ट में इसके लिए भी याचिका में आग्रह करना पड़ा, तब एनआईए ने कहा कि, वे अगली तारीख पर जवाब देगी। अगली तारीख से पहले ही स्वामी ने दम तोड़ दिया। फादर स्टैन स्वामी बगैर अपराध के 9 महीने जेल में प्रताड़ित होते रहे और शूली पर चढ़ गये।
हमें फादर स्टैन स्वामी से चर्चा और उनका काम देखने का अवसर मिला था
हमें फादर स्टैन स्वामी से चर्चा और उनका काम देखने का अवसर मिला था। वह मानवता की सेवा करने वाले एक साधारण से दिखते व्यक्ति थे। उनका व्यक्तित्व इतना बड़ा था, कि दबे-कुचले और यातना का शिकार आदिवासी उन्हें भगवान मानते थे। वह ऐसे व्यक्ति थे, जिनसे किसी को खतरा हो ही नहीं सकता था। दुख तो यह होता है कि एनआईए ने इस बुजुर्ग को हुकूमत के लिए खतरा बता दिया। जो कभी भीमा कोरेगांव गया ही नहीं। उनके कंप्यूटर में वहां की घटनाओं का ब्यौरा होने को आधार बनाकर उन्हें षड़यंत्र का मुलजिम बना दिया गया था। यह भी सत्य है की छोटी-छोटी बातों में डरने वाली सत्ता, सदैव भय में रहती है। जांच एजेंसियां इसका फायदा उठाकर ऐसे ही आरोपों में न जाने कितने निर्दोष जनों और जनता की आवाज बनने वालों को जेलों में डाल देती हैं।
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फरीदाबाद से दो साल पहले प्रोफेसर सुधा भरद्वाज को भी गिरफ्तार किया गया था। उनके खिलाफ भी कोई सबूत नहीं है मगर वह जेल में हैं। अदालत सच देखकर भी मौन साधे है। मानवाधिकार की आवाज बनने वाली सुधा को भी हुकूमत ने अपने लिए खतरा मान लिया। वह दबे-कुचलों की लड़ाई लड़ती थीं। उन्हें जेल में किताब पढ़ने के लिए भी अदालत में याचिका दाखिल करनी पड़ी। इस मामले में ढाई साल पहले गिरफ्तार रोना विल्सन ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर बताया था कि उनके लैपटॉप को हैक करके नकली सबूत प्लांट किये गये हैं। उन्होंने इसको साबित करने के लिए डिजिटल फॉरेंसिक रिपोर्ट भी अदालत में पेश की। मैसाचुसेट्स स्थित डिजिटल फोरेंसिक फर्म, आर्सेनल कंसल्टिंग से रोना के लैपटॉप की इलेक्ट्रॉनिक कॉपी का परीक्षण किया था। उसने रिपोर्ट में कहा है कि, रोना की गिरफ्तारी के करीब 22 महीनों पहले उनके कंप्यूटर में एक मैलवेयर भेज कर उसे हैक किया गया था। कई अटेंप्ट करके उनके कंप्यूटर में 10 दस्तावेज ‘प्लांट’ किए गये थे। इन्हीं से कनेक्शन जोड़कर फादर स्टैन स्वामी और सुधा भरद्वाज को भी मुलजिम बनाया गया था।
अदालतों ने सदैव देरी की और तथ्यों की अनदेखी की
न्याय व्यवस्था से उम्मीद की जाती है कि वह उसके समक्ष प्रस्तुत किये गये सबूतों और तथ्यों का परीक्षण कर शीघ्रता से न्याय करेगा, मगर इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। अदालतों ने सदैव देरी की और तथ्यों की अनदेखी की। गिरफ्तार किये गये इन मानवाधिकार सेवकों को कोरोना महामारी के दौर में भी मरने के लिए छोड़ दिया गया। सवाल तब खड़ा होता है, जब हम देखते हैं कि किसी को जमानत देने के लिए आधी रात में अदालतें लग जाती हैं, तो दूसरी ओर वास्तविक पीड़ितों की वाजिब दलील भी नहीं सुनी जाती। स्पष्ट है कि धन और सत्ता बल आपके पास है, तो न्याय व्यवस्था आपकी मुट्ठी में है, अन्यथा आप इंसाफ के लिए लड़ते अपनी जिंदगी खत्म कर देंगे। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक गुप्ता ने अपने संबोधन में न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाए थे।
उन्होंने कहा था कि, देश का कानून और न्याय तंत्र चंद अमीरों और ताकतवर लोगों की मुट्ठी में कैद है। हम पहले भी देख चुके हैं कि हमारी दोषपूर्ण न्यायिक व्यवस्था के कारण हजारों निर्दोष लोगों की जिंदगी जेल में ही कट जाती है। इसका एक उदाहरण ललितपुर का विष्णु तिवारी है, जिसने 20 साल जेल में उस जुर्म के लिए काटे, जो उसने किया ही नहीं था। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के शोधार्थी गुलज़ार अहमद वानी को साबरमती एक्सप्रेस में धमाके के लिए 16 साल लखनऊ जेल में काटने पड़े। जब उसकी जिंदगी बरबाद हो गई, तब अदालत ने उसे निर्दोष माना। उसे फंसाने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। कर्नाटक में भाजपा मुख्यालय के सामने हुए बम विस्फोट में 27 आरोपी आठ साल से यूएपीए में बंद हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये सभी बगैर किसी ट्रायल के कैद हैं। इनमें से किसी पर भी अब तक आरोप भी तय नहीं हुए हैं। फरीदाबाद के खोड़ा गांव के घरों पर बुलडोजर चला दिया गया मगर पास ही खड़ीं बड़ी इमारतों के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने कोई टिप्पणी नहीं की।
न्याय व्यवस्था दोषपूर्ण न रहे
न्याय व्यवस्था दोषपूर्ण न रहे, इसको लेकर 2014 में भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में वादा किया था। उन्होंने मिनिमम गवर्मेंट, मैग्जिमम गवर्नेंस का वादा किया था। पिछले सात साल में यह वादा तो पूरा नहीं हुआ, बल्कि उलट हो रहा है। हमें याद आता है कि 1789 में हुई फ्रांस की क्रांति से पहले वहां कोई व्यवस्थित न्यायपालिका नहीं थी। राजा स्वेच्छा से कानून बनाते और लागू करते थे। उनमें एकरूपता का अभाव था। क्रांति के बाद सुधार शुरू हुआ।
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नेपोलियन बोनापार्ट के राज में कानूनों में एकरूपता लाई गई। ब्रिटेन में भी 1873 से पहले न्यायिक व्यवस्था दोषपूर्ण थी। रॉयल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर उसमें सुधार किया गया। आमजन के हित में कानूनी व्यवस्था का निर्माण किया गया। ब्रिटिश हुकूमत में हमारे देश में भी न्यायिक व्यवस्था में सुधार शुरू हुआ मगर हम पर शासन करने के उद्देश्य से। देश की आजादी के बाद काफी कुछ सुधार हुआ। तत्कालीन सरकारें लोकतंत्र और लोकहित पर अधिक ध्यान देने लगीं। कानूनों का दुरुपयोग करने वालों को सजा दिये जाने की व्यवस्था की गई। इससे हालात सुधरे मगर कालांतर में सत्ता-धनबल पर कब्जा जमाये बैठे लोगों और दबाव समूहों के हाथों में यह व्यवस्था आ गई है। फादर स्टैन स्वामी की मौत, उसी का नतीजा है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार शाखा ने भारत सरकार को चेताया है।
हमें अगर देश को खूबसूरत और खुशहाल बनाना है, तो सबसे पहले नागरिकों के हितों पर ध्यान देना होगा। उनको कानून के शासन में बांधना होगा। न्याय व्यवस्था को निष्पक्ष, ईमानदार और दोषमुक्त परीक्षण वाला बनाना होगा। त्वरित न्याय की व्यवस्था को सुनिश्चित करना होगा। अगर ऐसा नहीं होगा, तो हम विश्व में शर्मिंदा होते रहेंगे। हमें सबके लिए समान कानून और न्याय व्यवस्था बनानी होगी। अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश अराजकता और ताकतवर लोगों की मुट्ठी में आ जाएगा।
जय हिंद!