आज 4 फरवरी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर सरदार पटेल द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने की 74 वी वर्षगांठ है। RSS पर यह प्रतिबंध महात्मा गांधी की हत्या में संदिग्ध भूमिका के कारण लगाया गया था। जरा समझते हैं कि महात्मा गांधी की हत्या के तुरंत पहले और बाद RSS क्या कर रहा था?
5 जनवरी, 1948 को नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को लिखा: “हाल में हुए घटनाक्रम में आरएसएस ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस बारे में पर्याप्त सबूत मिले हैं कि हाल में हुई ख़ौफ़नाक घटनाओं के पीछे आरएसएस का हाथ है. उनके नेता खुले तौर पर कहते हैं कि आरएसएस एक राजनैतिक संगठन नहीं है, लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं हो सकता कि उनकी नीति और कार्यक्रम राजनैतिक हैं, सांप्रदायिक हैं और हिंसक गतिविधियों पर आधारित हैं. उन पर लगाम कसना ज़रूरी है, और हमें किसी भी सूरत में उनकी ऊपर से दिखने वाली अच्छी बातों से दिग्भ्रमित नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह बातें उनकी असली नीति से कोसों दूर हैं.’
प्रधानमंत्री नेहरू ने देश के गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को गांधीजी की हत्या के आठ दिन पहले 22 जनवरी, 1948 को पत्र लिखा: ” पिछले कुछ हफ्ते से दिल्ली के ज्यादातर उर्दू और हिंदी अखबार जहर उगल रहे हैं। गांधीजी के उपवास के दौरान यह बात खास तौर पर दर्ज की गई है। इनमें से कुछ अखबार हिंदू महासभा के आधिकारिक अंग हैं या इससे जुड़े हुए हैं.. हिंदू महासभा और आर एस एस की दवाइयों को देखते हुए उनके प्रति उदासीन बना रहना दिन पर दिन कठिन होता जा रहा है।”
गांधी जी की हत्या से 2 दिन पहले 28 जनवरी 1948 को पंडित नेहरू ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को पत्र लिखा: ” पिछले कुछ समय से हिंदू महासभा की गतिविधियों से मैं बेहद दुखी हूं इस समय यह न सिर्फ भारत सरकार और कांग्रेस के लिए मुख्य विपक्ष है बल्कि यह एक ऐसा संगठन है जो लगातार हिंसा को भड़का रहा है आर एस एस ने तो इससे भी बुरी तरह काम किया है। उसकी करतूतों और दंगों और अशांति में इसकी जुड़े होने के बारे में हमने सूचना इकट्ठा की है।”
इसके बाद 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। सरदार पटेल ने 4 फरवरी 1948 को आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया। 6 फरवरी 1948 को पटेल ने नेहरू को लिखा : देसी राज्यों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाने के बारे में हम सारे बड़े राज्यों को जिनमें भरतपुर और अलवर भी शामिल है तार द्वारा सूचित कर चुके हैं कि वह अपने-अपने प्रदेशों में समानांतर कदम उठाएं। आशा है कि उनमें से अनेक हमारी सलाह मानेंगे, जो नहीं मानेंगे, हम उनसे बाद में निपट लेंगे।”
27 फरवरी 1948 को सरदार पटेल ने नेहरू को लिखा: जहां तक दिल्ली आर एस एस का प्रश्न है तो मैं ऐसे के लिए प्रमुख व्यक्तियों या सक्रिय कार्यकर्ताओं को नहीं जानता जिन्हें हमने छोड़ दिया हो। RSS जैसे गुप्त संगठन के पास ना तो सदस्यों का कोई रिकॉर्ड है और ना ही कोई रजिस्टर वगैरह है इसलिए इसके बारे में यह प्रमाणित जानकारी हासिल करना कठिन है कि कोई विशेष व्यक्ति सक्रिय सदस्य है या नहीं।”
18 जुलाई 1948 को सरदार पटेल ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखा: ‘आरएसएस और हिंदू महासभा के बारे में मैं इतना ही कहूंगा कि गांधीजी की हत्या का मुकदमा विचाराधीन है, इसलिए मुझे उसमें इन दो संस्थाओं के हाथ के बारे में कुछ नहीं कहना चाहिए, परंतु हमारी रिपोर्टें ज़रूर इस बात की पुष्टि करती हैं कि इन दो संस्थाओं की, खासतौर पर आरएसएस की प्रवृत्तियों के परिणामस्वरूप देश में ऐसा वातावरण पैदा हो गया था, जिसमें ऐसी भीषणतम घटना संभव हो सकी. मेरे मन में इस संबंध में किसी तरह का संदेह नहीं है कि हिंदू महासभा का अत्यंत उद्दाम वर्ग इस षड्यंत्र में शामिल था. आरएसएस की प्रवृत्तियां सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए स्पष्ट ख़तरा बन गई हैं. हमारी रिपोर्ट दिखाती है कि प्रतिबंध के बावज़ूद वे प्रवृत्तियां खत्म नहीं हुई हैं. बेशक, समय बीतने के साथ आरएसएस के लोग ज्यादा अवज्ञापूर्ण बनते जा रहे हैं और दिन-पर-दिन उनकी विध्वंसक प्रवृत्तियां बढ़ती जा रही हैं.”