द्वितीय विश्वयुद्ध सन 1939-45 ख़त्म हुआ मित्र राष्ट्रो जिन्हें विजय प्राप्त हुई थी जिसमें ब्रिटेन, अमेरिका, USSR, फ्रांस, चीन मुख्य थे जिनके हिस्से में जीत और दूसरी तरफ धुरी राष्ट्र के ख़ेमे से जर्मनी जापान ईटली ऑस्ट्रिया मुख्य देश थे इन के हिस्से में हार आई थी।
हार जहां ईटली के मुसोलिनी ने सबसे पहले ईटली की भारी तबाही देखते अपने ईटली के राजा इम्यूनल को फ़िरसे सत्ता संभालने की बिनती की और अपने आप को राजा को सरेंडर कर दिया, फिर हिटलर आत्महत्या कर मारा गया, फिर जापान तबाह होते क्रम में हार गए। अब दुनियाभरमें शांति बहाली और स्थिरता के लिए बैठके मित्र राष्ट्रों की तरफ से शुरू हुई।
अब जितने वाले राष्ट्रों की रिसोल्यूशन के लिए बैठके स्थिरता और शांति बहाली के चोले के साथ साथ जीत के बंटवारे को लेकर बैठक पहले तेहरान में बैठक हुई, फिर मोस्कों में हुई जिसमें रूझवेल्ट ने भाग न लिया।
बैठकें हो रही थी जिसमें क्रीमिया में याल्टा संमेलन के नाम से फरवरी 4 से 11, 1945 के दिन मित्र देशों की जीतनेवाले राष्ट्रों की बैठक मिली, जिसमें USA, यूनाइटेड किंगडम, USSR, और फ्रांस थे, मुख्य रूप से “बिग थ्री” के नाम से चर्चित चहरे विंस्टन चर्चिल, फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट और जोसेफ स्टालिन। इस समेलन में फ्रांस के नेता नहीं थे लेकिन उनकी सहमति थी।
अब यहाँ मुद्दा यह था कि जर्मनी, ईटली, जापान पर युद्ध में विजय प्राप्ति के बाद अब जो जो देश ने अपनी लड़ाई लड़ी है उनके विश्व में सत्ता के लिए बराबर के हिस्से हो। अब यहाँ USSR ने छे साल तक युद्ध लड़ा था, जिन जिन देशों पर फ्रांस, ब्रिटेन, पुर्तगाल वगैरह इन सब देशों की जहां जहाँ ग़ुलाम राष्ट्रों पर हुकूमत थी उन सब में बराबरी के हिस्से का बंटवारा करने पर इस याल्टा समेलन की बैठक में सहमति बनी थी।
जिसमें लोकतांत्रिक सिस्टमों के नाम पर राष्ट्रों पर अप्रत्यक्ष रूप से हुकूमतों का बंटवारा था ईस्ट जर्मनी, वेस्ट जर्मनी, नार्थ कोरिया, साउथ कोरिया, ताईवान, जापान, पाकिस्तान, भारत इस तरह से अफ्रीकी देशों से भी कुल मिलाकर 50 जितने देशों में बराबर की हिस्सेदारी बंटी थी, पाकिस्तान अमरीकी पाले में तो भारत USSR के, नार्थ कोरिया USSR तो साउथ कोरिया अमरीका के पाले में इस तरह से ये बटवारे में जर्मनी के दो भाग ईस्ट और वेस्ट थे जहां एक ईस्ट यानी पूर्वी जर्मनी USSR के हिस्से में होना था।
यहां मूल रूप से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से मित्र राष्ट्रों की सेनाएं शांति बहाली के लिए थी जिसमें आज भी जापान और पूरे जर्मनी पर अमरीकी सेना अपने हित साधते रुकी हुई है ये 100 साल के लिए गुलामी का एहसास दिलाए हुई रहनी है।
अब मूल बात ये की पूर्वी जर्मनी समाजवादी और पश्चमी जर्मनी पूँजीवादी ज़र्मनी के तौर पर थी जहाँ पूर्वी जर्मनी से लोग पलायन कर पश्चिमी ज़र्मनी की तरफ़ पलायन कर जाते थे ये पलायन को रोकने बर्लिन में 1962 में दो अलग जर्मनी निर्माण करती दीवार खिंची गई, हकीकत ये थी लेकिन ये दीवार बाद में समाजवादी अत्याचार का प्रतीक के तौर पर खूब प्रचारित हुई।
और 80 के दशक में अमरीकी चाल बाजियों और उनकी एजेंसीयों क़े ज़रिए USSR समेत दुनियाभरमें समाजवाद के विपरीत एक उबाल लाया गया जिसमें धर्म विरुद्ध नास्तिकता, तो कहीं इस्लाम बनाम ईसाई तो कहीं कम्युनिसम बनाम डेमोक्रेसि जैसे विचारों से शीत युद्ध चलाकर USSR को तोड़ने आग लगाई गई….
ठीक उसी वक्त जर्मनी के लोगों में उदारवाद के नाम डेमोक्रेटिक उन्माद से पूरा ज़र्मनी भड़क गया पूर्वी ज़र्मनी की सरकार का पतन हुआ 9 नवंबर 1989 को बर्लिन की दीवार तोड़ दी गई, अब यहां जर्मन पब्लिक सड़को पर उन्माद कर रही थी उसी वक्त पूर्वी जर्मनी स्थित सोवियत एलची कचहरी सोवियत अधिकारियों में ख़ुफ़िया विभाग के अफसर समेत अपनी जान बचाकर भागे थे। यहां से USSR यानी रशिया समेत उस अधिकारी ने सोवियत को याल्टा समझौते पर अपने आप को ठगा हुआ महसूस किया।
शीत युद्ध की समाप्ति हुई USSR के पतन से 14 देश बने और USSR रशिया रह गया। रशिया अपने आप को राजनीतिक रूप से धीरे धीरे स्थिरता की तरफ़ बढ़ते अमरीका के दांव पेंच व USSR के टूटने के कारण खोजने के साथ किन किन पुंजिपतियो ने अपना एस्टेब्लिशमेंट किया धन पूंजी USSR से निकाला ये मुख्य खोज रही।
और साथ ही अमरीका-पश्चिमी दाँव पेच आने वाले वक्त में क्या और किस दिशाओं के होंगे ये भाँपने के मंथन शुरू हुए, इसके परिणामस्वरूप भाँप लिया गया कि अमरीका समेत पश्चिम आनेवाले वक्त में जो गेम खेलने वाले है उसके लिए Communist USSR को तोड़ना उनके लिए जरूरी था जो उन्होंने ने किया था।
अमरीका- पश्चिमी खेमा The Great Game ; The Great New Game के नाम New World Order क़ा ब्युगल बजाने वाले है ये सारी परिस्थितियों को काफी पहले से समझतें आज के 2019 से शुरू हुए खेल की बहोत पहले से चाल सजियों को समझ लिया था और आज 2022 में मजबूर होकर रूस द्वारा युक्रेन पर रूसि सैन्य अभियान के तौर पर दुनिया देख रही है।
गोर्बाचोव की गद्दारी का ज़ख़्म भरने के लिए येल्तसिन के दिल के दर्द ने पुतिन नाम की संजीवनी को बहुत सोच समझ कर चुना था।
कई देशों में पुतिन ओर भी होते हैं मगर वहाँ इन्हे पहचान कर भी इग्नोर करने वाले एजेंट और जनता की मूर्खता कभी सामने नही आने देती।