प्राचीन समय में गैस का केवल एक ही रूप माना जाता था- वायु या हवा। वायु (Air) को भौतिक विज्ञान का विषय माना था तथा रसायन विज्ञानियों को इसमें कोई रुचि नहीं थी। वायु की धारणा के साथ मनुष्य का वास्ता सबसे पहले बेल्जियम के वैज्ञानिक वान हेमोंट(1577- 1644) ने निर्धारित किया। उन्होंने 62 पाउंड लकड़ी को जलाकर केवल एक पाउंड राख प्राप्त की । हेमोंट ने सुझाव दिया कि 61 पौंड वायु लकड़ी की आत्मा ( Spirit of Wood) में बदल कर गायब हो गयी। दुर्भाग्य से हेमोंट अपने प्रयोग का महत्व नहीं समझ सके। वे जिसे लकड़ी की आत्मा कह रहे थे वह दरअसल कार्बन डाई ऑक्साइड थी। जिसकी खोज अगले 100 साल बाद अंग्रेज वैज्ञानिक जोसेफ ब्लैक ने की।
सन 1760 तक ऐसा माना जाता था कि गैसें रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग नहीं लेतीं हैं। इसलिए इनको इकट्ठा करने की ओर ध्यान नहीं दिया गया। सबसे पहले अंग्रेज पादरी स्टीफन हॉल्स ने विभिन्न पदार्थों को गर्म करने पर उत्पन्न गैसों को एक वायवीय टब (Pneumatic Trough) में पानी के ऊपर इकट्ठा किया। इस उपकरण ने इंग्लैंड में वायु रसायन (Gas Chemistry) में एक नई क्रांति का सूत्रपात कर दिया। स्कॉटलैंड( ग्रेट ब्रिटेन) के वैज्ञानिक जोसेफ ब्लेक ने सन 1750 में यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग में डॉक्टर ऑफ मेडिसिन पर लिखे अपने एक शोध प्रबंध में दावा किया कि गैसें भी रसायनिक क्रियाओं में भाग ले सकती हैं। इसी शोध में उन्होने कार्बन डाई ऑक्साइड की खोज की घोषणा की।
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1 अगस्त सन 1774 का दिन प्रीस्टले के लिए एक नए कीर्तिमान का दिन था। अंग्रेज वैज्ञानिक प्रीस्टले ने अपनी आलीशान प्रयोगशाला में सूर्य की किरणों को लेंस से फोकस कर मरक्यूरिक ऑक्साइड पर आपतित किया जिससे एक गैस बन गयी , जिसे जोसेफ प्रीस्टले ने डीफ़्लॉजिस्टिकेटेड एयर कहा।
इस घटना के समानांतर एक घटना और घटी। स्वीडन के महान वैज्ञानिक कार्ल शीले ने सन 1772 में ही पोटेशियम नाइट्रेट को सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ क्रिया कराकर एक गैस बनाई। शीले ने ‘द केमिकल ट्रीटाइज ऑन एयर एंड फायर’ रिसर्च पेपर में इसे अग्निमय वायु ( Fiery Air) नाम दिया।
इस कहानी का एक तीसरा हीरो फ्रांसीसी वैज्ञानिक पी. बेयन भी है जिसके बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते। बेयन ने मर्करी यौगिकों के ऊष्मीय अपघटन से एक द्रव पदार्थ प्राप्त किया जिसे विपरीत क्रिया द्वारा उन्होंने लाल रंग के यौगिक में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने इसे लचकदार द्रव (Expansible Fluid) कहा।
दरअसल तीनों वैज्ञानिक तत्कालीन फ्लोजिस्टन धारणा से ग्रसित थे । इस मूर्खतापूर्ण धारणा को जर्मन वैज्ञानिक अर्नेस्ट स्ताल ने प्रतिपादित किया।
ये तीनों शोध लगभग एक साथ ही शुरू हुए पर बेयन ऑक्सीजन की खोज से पीछे हट गए। शेष दो वैज्ञानिकों के परिणाम भी समान थे पर प्रीस्टले की कहानी आगे बढ़ी और बढ़ते बढ़ते अपनी मंजिल पर पहुंच गईं। शीले मंजिल तक पहुंचते पहुंचते असफल रहे। हुआ ये कि प्रीस्टले 22 अगस्त 1775 को पेरिस पहुंचे जहां महान रसायन विज्ञानी लैबूजिये उनकी प्रतीक्षा में बैठे थे। प्रीस्टले ने सारी बात लैबूजिये को बताई। लैबूजिये इस प्रयोग का महत्व समझ गए और उन्होंने इस प्रयोग को फिर से दुहराया। इस बीच 30 सितंबर 1774 को स्वीडन के वैज्ञानिक कार्ल शीले का पत्र भी लैबूजिये को प्राप्त हुआ। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। प्रतिभाशाली वैज्ञानिक लैबूजिये इस गैस की प्रकृति को समझने में बेयन, शीले और प्रीस्टले से भी काफी आगे निकल चुके थे।
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अप्रैल 1775 में लैबूजिये ने फ्रेंच विज्ञान अकादमी के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें उन्होंने कहा इस गैस की खोज का श्रेय शीले और प्रीस्टले दोनों को दिया जाना चाहिए लेकिन मुझे प्रीस्टले का रिसर्च पेपर एक माह पहले मिल चुका था। मैंने इस गैस की प्रकृति का विवरण, भर्जन(Roasting) के दौरान धातु( Metal) का द्रव्यमान बढ़ना और इसकी तत्व प्रकृति ( Elemental Nature) सिद्ध कर दिया है। सबसे बड़ी बात कि इस गैस की खोज ने फ्लोजिस्टन सिद्धांत को रद्दी की टोकनी में फेंक दिया है। इसलिए जहाँ तक मैं समझता हूँ यह श्रेय अंग्रेज वैज्ञानिक जोसेफ प्रीस्टले को है। मैं इस नई गैस को ऑक्सीजन नाम देता हूँ। जिसका अर्थ है हमारी साँसों को प्राण व शक्ति देने वाली गैस। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की स्वीकृति के बाद अंततः 1 अगस्त 1779 को ऑक्सीजन गैस ने जोसेफ प्रीस्टले के गले में वरमाला डाल दी और फ्रांसीसी वैज्ञानिक बेयन और स्वीडन के वैज्ञानिक कार्ल शीले ऑक्सीजन को पाने में असफल प्रेमी सिद्ध हुए।
1869 में मेंडलीफ ने साँसों की इस देवी ऑक्सीजन को अपनी सारिणी के V। A ग्रुप में स्थापित किया। 1913 में इंग्लैंड के एक युवा वैज्ञानिक मोसले ने आधुनिक आवर्त सारणीं में इसे 8 नम्बर के खाने में हमेशा के लिए स्थपित कर दिया।
ऑक्सीजन की खोज ने रसायन विज्ञान के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ऑक्सीजन की खोज ने सबसे पहले फ्लोजिस्टन सिद्धांत का खंडन किया जिससे वैज्ञानिक 200 वर्षों तक चिपके रहे। इस गैस की खोज के बाद ही पानी का अवयव अनुपात (Elemental Ratio) निकल सका और दुनियाभर के अस्पतालों में टूटती हुई साँसों को जोड़ने में क्रायोजेनिक द्रव ऑक्सीजन ने संजीवनी बूटी का काम किया। जब तक सूरज चांद रहेगा, ऑक्सीजन के खोजकर्ताओं को मानवता हमेशा याद रखेगी।
अगली कड़ी में अस्पतालों में कृत्रिम श्वसन , समुद्री गोताखोरों और अस्थमा के मरीजों के लिए ऑक्सीजन कैसे दी जाती है उस पर चर्चा करूँगा।
अवधेश पांडे