प्रेस की आजादी के मामले में भारत दो पायदान लुढ़क कर 138वें स्थान पर पहुंच गया है। प्रेस की आजादी पर नजर रखने वाली एक संस्था ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट में यह बात कही। संस्था ने आरोप लगाया कि रैंकिंग में पिछड़ने की वजह गौरी लंकेश जैसी पत्रकार के खिलाफ हिंसा है। ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने कहा कि इस सूची में नॉर्वे लगातार दूसरे साल पहले पायदान पर कायम है। संस्था ने कहा कि उत्तर कोरिया इस मामले में सबसे ज्यादा दमनकारी देश है।
उसके बाद तुर्कमेनिस्तान, सीरिया और चीन का भी रिकॉर्ड काफी खराब है। 180 देशों की सूची में चीन दूसरे साल भी 175वें स्थान पर बना हुआ है। रिपोर्ट में चेताया गया है कि घृणा अपराध भारत में दूसरा बड़ा मसला है। इसमें कहा गया है कि 2014 में जब से नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं, तब से हिंदू कट्टरपंथी पत्रकारों के प्रति काफी आक्रामक हो गए हैं।
रिपोर्ट में पत्रकार गौरी लंकेश को इसके उदाहरण के तौर पर पेश किया गया है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स में कहा गया है कि इस रैंकिंग में भारत के पिछड़ने का बड़ा कारण पत्रकारों के खिलाफ हिंसा है। इसके अलाव तीन और पत्रकारों की हत्या को भी रिपोर्ट में शामिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि अन्य हत्याओं के कारण साफ नहीं हैं, जो आमतौर पर ग्रामीण इलाकों में होती हैं और वहां रिपोर्टर को बहुत कम वेतन दिया जाता है।
चीन के हालात भी बदतर रिपोर्ट में चीन को खासतौर पर रेखांकित करते हुए कहा गया है कि वहां बड़े पैमाने पर तकनीकी के इस्तेमाल के कारण ‘सेंसरशिप और निगरानी’ अप्रत्याशित स्तर पर पहुंच चुकी है। वहां विदेशी पत्रकारों का काम कर पाना बेहद कठिन है और आम नागरिक को तो सोशल मीडिया पर किसी सामग्री को साझा करने पर जेलों में ठूंस दिया जाता है।