पर्यावरण सुधारना है तो मुसलमानों से सीखिए…
मुसलमान ऐसा है, वैसा है । ऐसी बातें आम तौर पर कहने करने से मुसलमान भी नहीं चूकता ! देश के सामाजिक दबाव के बावजूद मुसलमानों ने त्योहार के अवसर पर सामूहिक रूप से की जाने वाली आतिशबाज़ी (बम पठाखे) की प्रथा को 5 दशक पहले तिलांजलि दे दी। यह देश के पर्यावरण को सुधारने या यूं कहें खराब न करने में उसका बड़ा योगदान है। भारत के शेष समाज को इससे सबक लेना चाहिए। यह देश और वैश्विविक पर्यावरण के हित में भी है । हममें से बहुत से लोगों को याद होगा कि दीवाली की तरह ईद मिलाद उन नबी और शब ए बारात के मौके मुसलमान तबका पागलों की तरह आतिशबाजी करता था। तब लोग बम पटाखे फोड़ कर खुशी के इज़हार के साथ दीवाली छोड़े जाने वाले बम पटाखों के हुड़दंग से प्रतियोगिता (मुकाबला) करते हुए भी नज़र आते थे। यह बात हमारे किशोरावस्था -बचपन की है। इससे पैसों की बर्बादी के साथ आग लगने से तबाही बर्बादी के साथ हवा भी ज़हरीली हो जाती थी। उस दौर के धार्मिक मुस्लिम रहनुमाओं ने बम पटाखे न चलाने का अपने समाज को निर्देश दिया। मुस्लिम समाज ने शुरुआती छुटपुट असहमति के बावजूद इस दिशा निर्देश का पालन किया। मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ताओं व राजनेताओं ने इसे लागू करने में पूरा पूरा साथ दिया। अब हाल यह है कि मुसलमानों के किसी भी त्योहार में आतिशबाजी का निषेध है। इसके लिए मुस्लिम समुदाय को बारंबार साधुवाद दिया जाना चाहिए।
मुसलमानों ने अपने तीज त्योहारों पर जब बम पटाखों से छुटकारा पाया उस दौर में पर्यावरण इतना प्रदूषित न था। आज व पिछले करीब दो दशकों से वायुमंडल में विविध प्रकार के प्रदूषण में बेहद बढ़ौतरी हुई हैं। इस स्थित को देखते हुए पर्यावरणवादी , केंद्र व राज्य सरकारें और भारतीय समाज गंभीर रूप में चिंतित है। दीवाली के अवसर पर बम पठाखों पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया। भारत की सुप्रीम कोर्ट ने भी हिदायद दी कि पठाखे न चलाये जाएं लेकिन दीवाली की रात पठाखों का धूम धड़ाका जारी रहा और अगले दिन में भी जगह जगह बम पठाखे छोड़े जाते रहे । इस बात के बावजोइड कि दीवाली के दो दिन पहले से और एक दिन बाद भी वायुमंडल चिंताजनक रूप से प्रदूषित है । सांस -दमा और दिल के रोगियों के लिए देश में सबसे अधिक खतरनाक हवा बनी हुई है। पठाखे छोड़ने वालों को अपने मुस्लिम भाइयों की तरह पठाखे न चलाने का संकल्प लेना चाहिए। समाज के धर्म गुरुओं और हितरक्षकों को आगे आना चाहिए। आप सोचिए 14 या 20 करोड़ मुस्लिम आबादी भी अगर बम पठाखे छोड़ती रहती तो पर्यावरण और वायु मंडल की क्या स्तिथि होती। जो आदर्श की स्थापना मुस्लिम समुदाय ने की है उस आदर्श को हिन्दू समाज भी अपना ले तो इसमें कोई बुराई नहीं! जय हिंद
हबीब अख्तर