यह एक ऐसा दौर है जहाँ ज़बानों, खानपान,लिबास, ऐतिहासिक भवनों, ऐतिहासिक नायकों, संगीत, कलाकारों को मज़हब/ धर्म के खाचों में बांटा जा रहा है, हम एक ऐसे वक़्त के गवाह हैं जहाँ हर चीज़ एक इम्तेहान से गुज़र रही है, ऐसे वक़्त में वर्तमान सरकार, पुरातत्व विभाग की लापरवाही, उपेक्षा का दंश झेल रही मध्यकाल में बनी इस्लामी और पारंपरिक हिंदू वास्तुकलाका अनूठा संगम खिड़की मस्जिद भी है,
जो आज अपने अतीत और बदहाली पर रो रही है। इतिहास की स्टूडेंट रहने की वजह से मुझे ऐतिहासिक इमारतों, भवनों को क़रीब से देखने, उन स्थानों को समझने का शौक़ रहा है इसी कड़ी में मैंने लगभग आठ सालों के बाद दोबारा राजधानी दिल्ली के दक्षिण में स्थित मालवीय नगर के क़रीब खिड़की गाँव में ‘ खिड़की मस्जिद ’का दौरा किया। यह दौरा मेरे लिए इतिहास की छात्रा होने के साथ साथ, इस शहर की नागरिक के रूप में भी काफ़ी अफसोसजनक रहा, क्योंकि यह ऐतिहासिक भवन आज बेहद ख़राब हालत में है।
सतपुला यानी ‘ सात मेहराबों का पुल’ से सटा खिड़की गाँव। यहाँ बाज़ारी चकाचौंध से भरपूर सेलेक्ट सिटी मॉल, साकेत कोर्ट भी स्थित हैं और जहाँ पर रोज़ हज़ारों की तादात में लोग घुमने, ख़रीदारी करने औरअपने केसों की पैरवी,सुनवाई के लिए आते हैं।
कम लोग ही यह जानते हैं कि इसी मॉल के ठीक सामने फिरोज़ शाह तुगलक़ ( तुगलक़ काल) के शासनकाल में प्रधान मंत्री रहे ख़ान-ए-जहाँ जुनन शाह द्वारा ( 1351-1386 ) बनाई गई ‘खिड़की मस्जिद’ भी है।
इस मस्जिद का उपसर्ग नाम उर्दू ज़बान के शब्द “ खिड़की “ पर रखा गया है इसलिए इसे ‘मस्जिद ऑफ़ विंडोज़’ भी कहते हैं। चतुर्भुज आकार की इस मस्जिद को एक किले के रूप में बनाया गया था जिसमें इस्लामी और पारंपरिक हिंदू वास्तुकला का असामान्य मिश्रण देखने को मिलता है।
हमें इस मस्जिद का इतिहास बताने की ज़रूरत इसलिए पड़ी ताकि आप यह जान सके कि मध्यकालीन काल से इस स्मारक का अपने आप में एक भरा पूरा वजूद और महत्व रहा है. दिल्ली में 2010 में संपन्न हुए कॉमन वेल्थ गेम से पहले भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) द्वारा चयनित 43 महान स्मारकों में इस मस्जिद को भी शामिल किया गया था इसी स्मारक को पुरातात्विक मूल्य के आधार पर INTACH Delhi Chapter ने A श्रेणी में भी रखा था।
सरकारी फाइलों में ऐतिहासिक इश्तहारों के भार से दबी यह मस्जिद आज अपनी बदहाली की दास्तान बयां कर रही है। पिछले कई सालों में मस्जिद के आसपास बड़े स्तर पर अवैध निर्माण हुआ है।मस्जिद की हर दीवार,मेहराबों पर जगह जगह खुदे हुए नाम, नंबर, तारिखे, देश के उन तमाम लौंडे, लौंडियों की हाज़िरी बयाँ करती है जो ख़ुद को अपने वक़्त का अद्भुत रचनाकार समझते होंगे।
आसपास चल रहे भारी निर्माण और अतिक्रमण स्मारक के लिए ख़तरनाक है। हालाकिं एएसआई इस संरक्षित और ऐतिहासिकमस्जिद के 100 मीटर के भीतर किसी भी तरह के निर्माण से जुड़ी गतिविधियों की अनुमति नहीं देता है जब कि कुछ इमारतें तो लगभग मस्जिद की सीमा की दीवार को छू रही हैं।
मस्जिद के अंदर दाख़िल होने पर एक ना-क़ाबिले बर्दाश्त बदबू आपका स्वागत करती है, इस गन्ध-दुर्गन्ध से आपका दिमाग़ फ़टने लगता है।इस का कारण, इमारत में जगह जगह चूहों, चमगादड़ों, कबूतरों का बसेरा है, चूहों, चमगादड़ों, के पेशाब से जगह-जगह सीलन, गंदगी फैल हुई है।
खिड़की गांव के एक निवासी से बात कि तो उन्होंने कहा, “स्मारक के उत्तर-पूर्व की ओर के कुछ गुंबद बारिश में ढह गए हैं और यह जर्जर स्थिति में है। मस्जिद के अंदर की एक छत ढहने के कगार पर है गुम्बदों, दीवारों पर कहीं कहीं गुलाबी रंग के पैच, मुख्य दरवाज़े पर ईटों, सीमेंट, मसाले का ढेर यह बताता है कि यहाँ कभी मरमत का काम शुरू किया गया होगा, जो कि अब बिल्कुल ठप्प पड़ा हुआ है।
मौसमी बारिश से चारों तरफ़ घास का एक जंगल बन गया है। हमने वहां मौजूद लगभग आठ से नौ सफ़ाई कर्मचारियों से इसपर बात की तो वह कहने लगे कि हम लोग रोज़ ही मस्जिद की साफ़ सफ़ाई करते हैं और उन पर सफ़ाई का भार भी बहुत अधिक है।
खिड़की गांव के संकीर्ण गलियों से होते हुए मस्जिद में पहुंचने का एक ही मुख्य द्वार है, लेकिन प्रवेश द्वार के सामने ही कई झुग्गी बस्तियां हैं। आगे की तरफ़ बनाई जा रही इमारतें, दुकानें मस्जिद को धीरे धीरे पीछे की ओर धकेल रही हैं, जोकि इसकी भव्यता को बेनूर कर रही है ।
अफ़सोस के साथ कहना पड़ेगा कि ऐसे ही पुरातत्व विभाग एवं सरकार की नज़रन्दाज़ी चलती रही तो जल्द ही हम 14वीं सदी की इस अज़ीम मस्जिद को खो देंगे।और यदि आगे भी सरकार और सियासत से जुड़े लोग इसी तरह इस ऐतिहासिक मस्जिद की अनदेखी करते रहे तो इस ख़ूबसूरत ईमारत का वजूद खत्म हो जाएगा।
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लेख लिखने वाली सलीमा आरिफ ! जो कि एक स्वतंत्र पत्रकार हैं !