सन 1942 देश में भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था । गांधी, नेहरू समेत कांग्रेस के सभी नेता जेल में थे और सावरकर जेल के बाहर लोगों को अंग्रेजी सेना में भर्ती होने और विश्वयुद्ध में लड़ने के लिए भर्ती कर रहे थे ।
इसी दौर में 1937 के देशमुख एक्ट जो हिन्दू प्रोपर्टी के हस्तांतरण का कानून था की पुनर्समीक्षा के लिए हिन्दू लॉ कमिटी बनी जिसके अध्यक्ष थे B.N. राव । कानून के बड़े विद्वान थे बाद में ये भरतीय संविधान सभा के सलाहकार बने और बर्मा की संविधान सभा के भी । इन्होंने UN में भी सेवा दी ।
राव साहब ने काम सुरु किया कि तब के हिन्दू प्रोपर्टी राइट में और अन्य हिन्दू कानूनों में क्या सुधार किया जा सकता है । 44 में इस कमिटी को फिर से इसी काम के लिए अपॉइंट किया गया इसने अपनी रिपोर्ट सौंपी 1947 में आजादी से कुछ महीने पहले ।
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तब तक देश बदल चुका था गोरे जाने वाले थे काले आने वाले थे संविधान सभा जो देश की पहली संसद भी थी का गठन हो चुका था । देश आजाद हुआ नेहरू प्रधानमंत्री हुए और राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति । और इसी के साथ सुरु होता है दंगल हिन्दू कोड बिल का चलिए इस दंगल की डिटेल में जाने से पहले मोटे प्रावधान बात देता हूँ इसके क्या थे ।
तब तक व्यवस्था थी
- महिलाओं को संपत्ति में अधिकार जो अब तक बिल्कुल नहीं था पिता की संपत्ति केवल बेटों को मिलती थी ।
- पति के ऊपर पत्नी के गुजारे का कोई दायित्व नहीं था याने के पति चाहे जब पत्नी को छोड़ सकता था( तलाक नहीं) उसे पत्नी को कोई गुजारा भत्ता देने की जरूरत नहीं थी
- पति की संपत्ति में भी पत्नी का कोई अधिकार नहीं था
- पति एक से ज्यादा शादी कर सकता था पत्नी कुछ नहीं कर सकती थी
- चाहे पति कितना ही निठल्ला , आवारा , चरित्र हीन हो , चाहे पति एड्स का मरीज हो या दूसरी महिलाओं के साथ संबंध रखता हो तलाक नहीं हो सकता था आखिर शादी जन्म जन्मों का रिश्ता जो था
ये हिन्दू कॉड बिल इन सारे प्रावधानों को खत्म करने वाला था , बेटी को संपत्ति में अधिकार , बहुविवाह पर रोक और तलाक का प्रावधान और तलाक या छोड़े जाने की स्थिति में गुजारे भत्ते का प्रावधान आदि इसकी प्रमुख विशेषता थी ।
अब आते हैं दंगल की और तो इस हिन्दू कॉड बिल का विरोध कर रहे थे श्याम प्रसाद मुखर्जी एंड पार्टी याने कि हिन्दू महासभा और RSS साथ में कांग्रेस के अंदर भी कुछ लोग थे जो इस बिल के विरोधी थे ।
पहले प्रखर विरोधी थे पुरुषोत्तम दास टंडन कांग्रेस के अध्यक्ष थे टंडन साहब । दूसरे थे राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद , और सुनने में आया है कि खुले में नहीं लेकिन मन ही मन पटेल भी इस बिल के विरोधी थे पर टंडन साहब और राजेंद्र बाबू तो इसके खुले विरोधी थे ।
दूसरी तफर थे डॉक्टर अम्बेडकर और नेहरू । अम्बेडकर तो इतने कट्टर समर्थक थे उंस बिल के की उनके शब्दों में वे केवल इस बिल को पास कराने के लिए ही नेहरू की कैबनेट में बतौर कानून मंत्री शामिल हुए थे । और नेहरू कहते थे कि अगर वे ये बिल पास नहीं करा सके तो उनके प्रधानमंत्री होने का कोई फायदा नहीं है लेकिन बिल का विरोध गहराता गया , कृपात्री महाराज नाम का सन्यासी संसद के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे , नेहरू के पुतले फूंके जा रहे थे और इस पर तर्क ये की नेहरू चुने हुए नेता नहीं हैं फिर कैसे वे इतना बड़ा फैसला ले रहे हैं ।
बिल संसद में पेश हुआ विरोधियों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी । विरोध बढ़ता देख नेहरू ने फैसला किया कि चुनाव के बाद वे ये बिल लेकर आएंगे । नेहरू ने संसद के संग्राम को सड़क पर ले जाने का फैसला किया रणक्षेत्र बदला गया अब सब कुछ आगामी चुनावों पर निर्भर था ।इस फैसले के विरोध में अम्बेडकर ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया ।
चुनाव प्रचार सुरु हुए , नेहरू ने हर चुनावी सभा में कहा कि वे हिन्दू कॉड बिल लेकर आएंगे और अगर इससे सहमत हो तो ही उन्हें वोट दें अन्यथा नहीं । चुनाव हुए नेहरू जाहिर तौर पर चुनाव के स्टार प्रचारक थे ( अब लोग मानेंगे नहीं पर नेहरू गांधी के बाद देश के सबसे लोकप्रिय नेता थे) चुनाव में कांग्रेस से शानदार जीत हासिल की और नेहरू ने दुगुनी ताकत के साथ वापिसी की ।
इससे पहले नेहरू पुरुषोत्तमदास टंडन को हटाकर खुद कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके थे , चुनाव के बाद बिल लाया गया फिर से इस बार 4 अलग अलग हिस्सों में । राजेंद्र बाबू ने उसपर ये धमकी दी कि संविधान के अनुसार राष्ट्रपति किसी बिल पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य नहीं हैं । कहते हैं इसपर नेहरू ने पारित बिल के साथ फ़ाइल पर लिखकर भेजा था कि संविधान में महाभियोग की प्रक्रिया भी है । दुर्भाग्यपूर्ण है कि पटेल इस धरती से जा चुके थे । इस तरह सारी बाधाएं दूर करके , जनता से समर्थन प्राप्त करके नेहरू ने 4 बिलों की शक्ल में हिन्दू कोड बिल पास कराया ।
तो याद रहे कि तलाक का अधिकार, गुजारे भत्ते का अधिकार, बहुविवाह पर रोक, बेटी को पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी जैसे क्रांतिकारी परिवर्तन जिस व्यक्ति के वजह से संभव हुआ और जिसकी वजह से आपको संपत्ति की जगह व्यक्ति समझा जाने लगा उसका नाम है, जवाहर लाल नेहरू ।
और साथ में याद रखिए उन चेहरों को भी जिन्होंने उंस समय विरोध किया था उंस परिवर्तन का ।
गगन अवस्थी