हेनरी डे रोज़िओ का नाम इतिहास भूल सा रहा है। वह अपने युग का सबसे बड़ा समाजसुधारक, बुद्धिजीवी, चिंतक, कवि और पत्रकार भी था। उसने गुलाम भारत की चेतना को लगभग सबसे पहले झिंझोड़कर जगाया। दुर्भाग्य है कि उसके जीवन को लेकर ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। हेनरी लुई विलियम डे रोज़िओ का जन्म कलकत्ता में 18 अप्रैल, 1809 को पुर्तगाली पिता तथा अंगरेज माता के दांपत्य से हुआ। उसकी शुरुआती तालीम मि0 ड्रमंड के धरमतल्ला स्कूल में हुई। जहीन बुद्धि के हेनरी ने लगन और सद्व्यवहार से शिक्षकों तथा सहपाठियों का पर्याप्त स्नेह हासिल कर लिया था। डे रोज़िओ को भारतीय मूल का ‘ईस्ट इंडियन‘ होने के कारण ब्रिटिश हुकूूमत से हिकारत भी झेलनी पड़ी। नवजागरण के प्रवर्तक राजा राममोहन राॅय के बाद 1809 में जन्मे कवि डे रोज़िओ की अधिकांश कृतियां नष्ट हो गई हैं।
डे रोज़िओ के समकालीनों ने उसके कार्यों और लेखन का पूरा ब्यौरा भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित नहीं रखा।
अठारह वर्ष में डे रोज़िओ को प्रसिद्ध हिन्दू काॅलेज में अपने लगभग हमउम्र छात्रों को पढ़ाने के लिए साहित्य के अध्यापक के बतौर नियुक्त किया गया। उसने इतिहास बोध की अपनी दुर्लभ मेधा का परिचय देते छात्रों को नैतिक सांस्कृतिक भूखंड पर खड़ा किया। डे रोज़िओ ने सती प्रथा, दहेज प्रथा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ जेहाद जैसा बोला और विधवा विवाह के समर्थन में उस दौर में समाज सुधार का राममोहन राय के साथ लगभग पहला बिगुल फूंका। डे रोज़िओ अपनी बनावट में कवि था। उसे भारतीय नवजागरण के ज्ञान का पहला विस्फोट करार दिया जा सकता है। कलकत्ता के घर घर में मशहूर था कि हिन्दू काॅलेज का कोई विद्यार्थी झूठ नहीं बोल सकता क्योंकि वह डे रोज़िओ का छात्र है। उसके विद्रोही रोल ने हिन्दू काॅलेज के प्रबंध न्यासियों को उकसाया। उसे स्कूल की नौकरी से निकाल दिया। कारण बताओ नोटिस का जो जवाब तपेदिक से ग्रस्त डे रोज़िओ ने दिया वह युवा स्फुरण का नायाब तार्किक नमूना है।
डे रोज़िओ मूर्ति पूजा के खिलाफ था। कुछ अंशो में उसे नास्तिक भी कहा जा सकता है। हिन्दू काॅलेज कि लिपिक हरमोहन चटर्जी का यह संस्मरण कितना मार्मिक है कि डे रोज़िओ ने अपने विद्यार्थियों के ज़ेहन पर इतना अधिकार कर लिया था कि वे अपने निजी मामलों में भी उससे सलाह किए बिना अपनी आम राय नहीं रखते थे।
हिन्दू काॅलेज के जीवन से ही डे रोज़िओ ने ‘पार्थेनाॅन‘ नामक पत्रिका का प्रकाशन भी प्रारंभ किया। डे रोज़िओ ने कलकत्ता का पहला वादविवाद क्लब ‘एकेडेमिक एसोसिएशन‘ अपनी अध्यक्षता में स्थापित किया। उसे अपने विद्यार्थियों से असीम स्नेह था। अपनी इन भावनाओं को उसने अपनी कविताओं में मार्मिक अभिव्यक्ति दी है-
‘ओह! जब मैं देखता हूं
हालात की हवाओं को,
और अप्रैल के महीने की ताजगीदेह बयारों जैसी
प्रारम्भिक ज्ञान की बौछारों को,
और अनगिनत नये उपदेशों को,
तुम पर अपना प्रभाव डालते,
और तुम्हें सत्य के सर्वशक्तिमान
की पूजा करते तो मेरे ऊपर
कैसा आनन्द बरसने लगता
जब मैं देखता हूं
भविष्य के आईने में
कीर्ति को भी हार गूंथते
जिन्हें तुम्हें पहिनना है
तब मुझे लगता है मैं व्यर्थता
में नहीं जिया।‘
भारत से डे रोज़िओ को बेसाख्ता मोहब्बत थी। यूरोपीय कुलशीलता के कथित उद्गम के बावजूद उसने ऐलान किया ‘हिन्दुस्तान ही मेरी मातृभूमि है और मैं इसका बेटा हूं और मैं इसकी सेवा करने के लिए अपना सब कुछ होम दूंगा।‘ उसकी प्रसिद्ध कविता ‘माय कंट्री‘ भारतीय नवजागरण का पहला देशभक्तिपूर्ण कालजयी आह्वान है।
‘ओ मेरे देश।
अपने अतीत के स्वर्ण युग में
तेरे ललाट के चारों ओर
एक तेजोमय प्रभामंडल था
देवों की तरह तू पूजित था
कहां है अतीत की
वह वैभव महिमा?
धूल धूसरित है वह भव्य गरिमा।
मैं ही उतरूं गहरे अतीत
और ढूंढ़ चट्टानी भव्यता के
वे अदृष्ट भग्नावशेष
तुझे मिले मात्र सहानुभूति के शब्द
मेरे श्रम का हो यह पुरस्कार विशेष
ओ मेरे तरसे हुए देश।‘ (अनुवाद: कनक तिवारी)
राजनीतिक अराजकता, सामाजिक जकड़न और नैतिक गिरावट के दिनों में ऐसी कविताएं लिखकर डे रोज़िओ ने राष्ट्र प्रेम का नारा बुलंद किया। उसने अखंड आत्मविश्वास सहित यह विनम्र घोषणा की-
‘हुए हैं मुझसे समर्थतर कलाकार
जिनने छेड़े तेरी मधुरिम वीणा के तार
मेरे कर हैं अशक्त
किंतु यदि वह संगीत शाश्वत
संभव है उनमें हो प्राणों का फिर संचार
अमर रागिनी पुनः बज उठे
इससे छेड़ूंगा ही तेरी वीणा के तार।‘ (अनुवादः कनक तिवारी)
भारत वैश्वीकरण की विकृतियों को भोग रहा है। कोई कल्पना भी कर सकता है कि लगभग दो सौ वर्ष पहले एक नवयुवक वैश्वीकरण को लेकर यह कह रहा हो ‘कुछ लोगों का विचार है कि औपनिवेशीकरण से हमारे देश की कई बुराइयों को प्रभावी तरीके से खत्म करने में सहायता मिलेगी। लेकिन यह देखना है कि ऐसा प्रयास कब होता है।
महात्मा गांधी ने चंपारण में नील की खेती को लेकर आंदोलन खड़ा किया। उससे अंग्रेजों के छक्के छूट गये। गांधी जी न केवल राष्ट्र नेता बल्कि यायावर भी थे। उनसे एक 22 वर्ष के नवयुवक की कोई तुलना नहीं हो सकती। लेकिन डे रोज़िओ ने ही नील की खेती को लेकर भारतीय किसानों के प्रति हो रहे जुल्म का आगाज़ किया था। गांधी की चेतना एक ईस्ट इंडियन किशोर में गांधी से कोई सौ बरस पहले समाहित हुई थी। इस बात का लेखा जोखा न तो इतिहास में दर्ज है और न ही गांधी साहित्य में।
शहीदे आज़म भगतसिंह 1931 में गए। उनसे सौ बरस पहले विज्ञान चेतना संपन्न डेरोज़िओ का निधन 18 अप्रैल 1831 में हुआ।
कनक तिवारी