भारत-पाक विभाजन के 72 साल बाद आखिरकार पाकिस्तान ने शुक्रवार (2 अगस्त) को पंजाब प्रांत के ऐतिहासिक गुरुद्वारा चोवा साहिब के दरवाजे खोल दिए, जहां भारत समेत दुनिया भर के सिख श्रद्धालु जा सकेंगे। यह कदम नवंबर में गुरु नानक देव की 550वीं जयंती के मद्देनजर उठाया गया है।
यह गुरुद्वारा 1947 में पंजाब प्रांत के झेलम जिले में सिख समुदाय के पाकिस्तान से पलायन के बाद से राज्य की अनदेखी की वजह से बंद था।
यूनेस्को (UNESCO) के विश्व धरोहर साइट रोहतास फोर्ट के करीब स्थित गुरुद्वारा चोवा साहिब को कई उच्चाधिकारियों और समुदाय के सदस्यों की उपस्थिति में एक रंगारंग कार्यक्रम के साथ दोबारा खोला गया। इस कार्यक्रम की शुरुआत अरदास और कीर्तन के साथ हुई।
शुक्रवार को गुरुद्वारे में अरदास और कीर्तन हुआ। काफी तादाद में पहुंचे सिखों ने यहां मत्था टेका। इस दौरान बहुत से सिख जायरीन भावुक दिखे। ऐतिहासिक गुरुद्वारा चोवा साहिब को नवंबर में गुरु नानक देव की 550वीं जयंती के मद्देनजर खोला गया है। यहां भारत समेत दुनिया भर के सिख श्रद्धालु जा सकेंगे।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थानों की देखरेख करने वाले इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. आमेर अहमद और पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के अध्यक्ष सरदार सतवंत सिंह की मौजूदगी में गुरुद्वारे के दरवाजे खोले गए।
इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के प्रवक्ता आमिर हाशमी ने बताया कि गुरुद्वारा चोवा साहिब दरवाजा दर्शन के लिए खोला गया है। जहां भारत समेत दुनिया भर के सिख समुदाय आ सकते हैं। साथ ही बताया कि गुरुद्वारा की मरम्मत का काम चल रहा है और जल्दी ही इसमें तेजी लाई जाएगी।
पंजाब के झेलम शहर में रोहतास किले के उत्तरी किनारे पर स्थित गुरुद्वारा चोवा साहिब को महाराजा रणजीत सिंह ने 1834 में बनवाया था। बताया जाता है कि गुरु नानकजी और भाई मर्दाना भी यहां ठहरे थे। गुरु नानक पास के तिल्ला जोगियन मंदिरों से लौट रहे थे और इसी स्थान पर रुके थे। तब यहां पानी की बड़ी किल्लत थी। प्यास लगने पर उन्होंने अपनी बेंत से एक पत्थर को हटाया तो पानी का झरना (चोवा) निकला। इसीलिए इसे चोवा साहिब कहा जाता है।