पुष्परंजन
जर्मनी सरकार का अभिलेखागार (बुंडेसआर्काइव) की एक तस्वीर कई सारे रहस्यों की साक्षी है, जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस, हाइनरिश हिमलर से हाथ मिला रहे हैं। हाइनरिश हिमलर, हिटलर की सर्वाधिक बर्बर सैनिक विंग ‘शुत्जश्टाफे’ के प्रमुख थे। कुख्यात खुफिया संगठन ‘गेस्टापो’ भी हाइनरिश हिमलर के नियंत्रण में था। ‘बुंडेसआर्काइव’ में संरक्षित यह छायाचित्र 1942 का है। इसमें नेताजी की कई और तस्वीरें हैं हिटलर और उस दौर के नाजी अधिकारियों के साथ। इस समय देश में बहस, सिक्के के सिर्फ एक पहलू पर हो रही है कि 1948 से लेकर 1968 तक नेताजी के परिवार के सदस्यों की खुफिया निगरानी की गई थी। नेहरू की मृत्यु 27 मई, 1964 को हुई थी, लेकिन प्रधानमंत्री रहते हुए यह उनकी जानकारी में थी। खुफिया रिपोर्टों के हवाले से कहा जा रहा है कि पंडित नेहरू की मृत्यु के चार साल बाद भी बोस परिवार पर नजर रखी गई थी। मगर सिक्के का एक दूसरा पहलू यह है कि सुभाष चंद्र बोस पर नजर रखने के लिए स्वयं हिटलर ने महिला खुफिया की तैनाती कराई थी। क्या जर्मनी सरकार से इसका ब्योरा नहीं मांगा जाना चाहिए?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को बर्लिन में थे। पर उनके व्यस्त एजेंडे में यह नहीं था कि नेताजी से जुड़े तमाम तथ्यों, दस्तावेजों और तस्वीरों की मांग वह जर्मन चांसलर अंगेला मर्केल से करते। खैर, जर्मन दूतावास के जरिये यह मांग नई दिल्ली लौटकर भी की जा सकती है। 72 साल की अनिता बोस, सुभाष चंद्र बोस-एमिली शैंकी की इकलौती संतान हैं, जिनका जन्म 29 नवंबर, 1942 को वियना में हुआ था। अनिता बोस जर्मनी की ऑसबर्ग यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र पढ़ाती थीं। उनके पति प्रोफेसर मार्टिन फॉफ जर्मन संसद ‘बुंडेस्टाग’ में एसडीपी (सोशल डेमोकेट्रिक पार्टी) के सांसद रह चुके हैं। एसडीपी मर्केल सरकार में सहयोगी पार्टी है। अनिता बोस छह फरवरी, 2013 को नई दिल्ली आई थीं। उन्हें नेताजी की जीवनी पर आधारित पुस्तक फ्रीडम स्ट्रगल ऑफ इंडिया राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेंट करनी थी। तब भी अनिता बोस ने या उनके पति मार्टिन फाफ, उनके तीनों बच्चे पीटर अरुण, थॉमस कृष्णा और माया करीना ने जासूसी की शिकायत नहीं की।
अनिता बोस को मोदी सरकार से भी गिला-शिकवा नहीं है कि बोस परिवार की तथाकथित जासूसी क्यों हुई? न ही अनिता बोस ने मोदी जी से बर्लिन में मिलने में दिलचस्पी दिखाई। यह स्पष्ट नहीं है कि बर्लिन स्थित भारतीय दूतावास ने इसके लिए अनिता बोस या उनके पति प्रोफेसर मार्टिन फाफ से संपर्क भी किया था या नहीं। ऐसे में, आशंका यह भी उठती है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि नेताजी को लेकर बोस परिवार के भीतर ही राजनीति हो रही है? सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरत चंद्र बोस के पोते सूर्य कुमार बोस की प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात कराने में बर्लिन स्थित भारतीय दूतावास की इतनी दिलचस्पी क्यों रही? इस सवाल का उत्तर शायद समय आने पर मिले।
नेताजी के भतीजे अमिय नाथ बोस के बेटे सूर्य कुमार बोस जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में आईटी प्रोफेशनल हैं, और वहां 1972 से रह रहे हैं। सूर्य कुमार बोस हैम्बर्ग में ‘इंडो-जर्मन एसोसिएशन’ के अध्यक्ष भी हैं। अक्सर जर्मनी में भारतीय समुदाय की सभाओं में उन्हें भाषण के लिए आमंत्रित किया जाता है। सूर्य कुमार बोस को संदेह है कि दूतावास में नियुक्त रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (आरएडब्ल्यू) के अधिकारी उनकी सभाओं में आते, और उन पर नजर रखते थे। सूर्य कुमार बोस के अनुसार, ‘यह सिलसिला 1978 में जनता पार्टी की सरकार आने के बाद रुक गया।’ गौर करने वाली बात यह है कि इन्हीं सूर्य कुमार बोस के दूसरे भाई चंद्र कुमार बोस नौ अप्रैल, 2014 को गांधी नगर जाकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले, और परिवार के 24 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र दिया।
उनका आग्रह था कि नेताजी की मौत पर साल 2006 में जस्टिस मुखर्जी कमीशन की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए, जिसमें कहा गया था कि उनकी मृत्यु हवाई दुर्घटना में नहीं हुई थी। इससे पहले 1955 में शाह नवाज कमेटी, और 1970 में खोसला आयोग की रिपोर्टों पर चंद्र कुमार बोस को भरोसा नहीं था, जिनमें माना गया था कि नेताजी की मौत हवाई दुर्घटना में हुई थी। सवाल यह है कि नेताजी के बड़े भाई शरत चंद्र बोस की चौथी पीढ़ी को क्यों लगा कि इस मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री कुछ कर सकते हैं? अब सिक्के के दूसरे पहलू पर बात करते हैं।
सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनिता बोस ने एक साक्षात्कार में स्वीकार किया था कि नेताजी वियना इलाज के सिलसिले में गए थे, वहां उन्हें अपनी पुस्तक द इंडियन स्ट्रगल लिखने के वास्ते एक सहयोगी की जरूरत थी, और उसी क्रम में एमिली शैंकी से उनकी मुलाकात कराई गई थी। अनिता बोस ने इतना भर ही कुबूल किया कि एमिली को जर्मन विदेश मंत्रालय से जुड़ने का ऑफर दिया गया था। तब एमिली वियना पोस्टल सर्विस में काम करती थीं। जोआखिम फॉन रिबेनट्राप उन दिनों नाजी जर्मनी के विदेश मंत्री थे।
29 अप्रैल, 1941 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की रिबेनट्राप से वियना के होटल इंपीरियल में मुलाकात होती है, और इसके प्रकारांतर एमिली शैंकी, नेताजी के एक खास दोस्त ओटो फाल्टिस के साथ वियना से बर्लिन आती हैं। मिहिर बोस की पुस्तक राज, सीक्रेट, रिवॉल्यूशन में इसकी चर्चा है कि एमिली शैंकी की सुभाष चंद्र बोस से मुलाकात संयोग नहीं था, उसे ‘गेस्टापो’ ने नेताजी पर नजर रखने के लिए ‘प्लांट’ कराया था। नेताजी, अपनी ‘संगिनी’ एमिली के हिटलर के प्रति समर्पण को देखकर अक्सर तंज करते थे, ‘योर हिटलर!’ नेताजी पर मुसोलिनी के दामाद गेलीजो सिएनो, जो इटली के विदेश मंत्री थे, की भी नजर थी।
इसका पता सिएनो की डायरी से चलता है। सुभाष चंद्र बोस, इतालवी विदेश मंत्री सिएनो से छह और 29 जून 1941 को रोम में मिले थे। नेताजी को सिएनो ने कुछ समय के लिए नजरबंद भी कर लिया था। फ्रीडा क्रेत्शमार, एक और सेक्रट्री थी, जिसे जर्मन खुफिया संस्था ‘गेस्टापो’ ने नेताजी पर नजर रखने के लिए ‘माताहारी’ के रूप में नियुक्त कराया था। आज की तारीख में बर्लिन में न तो ‘फ्री इंडिया सेंटर’ का कोई अवशेष है, और न ‘फ्री इंडिया रेडियो’ का कोई अता-पता। जून 2004 में बर्लिन के 6-7 सोफियन श्ट्राशे में नेताजी पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाने के सिलसिले में जाना हुआ था। वहां पर अब एक अपार्टमेंट खड़ा है। जो लोग इसके दरीचे से बाहर देखते हैं, उन्हें भी इसका एहसास नहीं कि इसके नीचे भारत की आजादी का इतिहास, और नेताजी की यादें दफन हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)