चीन ने इनका नाम रखा है, ‘जेनरेशन ज़ेड’। सोच-समझकर इस शब्दावली का इस्तेमाल किया गया है। अंग्रेज़ी के छब्बीसवें अक्षर ज़ेड के बाद शब्दोत्पत्ति की समाप्ति समझिए। यह पीढ़ी भी संतानोत्पत्ति पर पूर्णविराम चाहती है। शादी नहीं करनी, बच्चे नहीं जनना है। खुद के लिए जीना है, ऐश करना है।
ये ज़िन्दगी नहीं मिलेगी दोबारा। शी चिनफिंग सरकार परेशान है। सरकार स्वयं से सवाल कर रही है, संतानोत्पत्ति विरोधी यह पीढ़ी चीन की सेहत के लिए कितनी ख़तरनाक़ है? वहां यह सोशल मीडिया पर भी ज़ेर-ए-बहस है।
1979 में चीन में एक संतान नीति थी। ‘सोशलिस्ट कंसल्टेटिव डेमोक्रेसी ’ वाली शी चिनफिंग सरकार ने 2016 में ‘दो बच्चे पैदा करो’ नीति लागू की, और 20 अगस्त 2021 को उसे पलट कर तीन बच्चे पैदा करने की क़ानूनन छूट दे दी। मगर, हो उल्टा रहा है। महिलाएं बोल रही हैं, ‘हम बच्चे पैदा करने की मशीनें नहीं हैं।’
नई जेनरेशन वही है, जिनकी पैदाइश 1990-95 के बाद हुई है। इन्हें जीवन में विविधता की तलाश है, वैयक्तिकता जिनका अप्रोच है। बेफिक‘, बिंदास जीना है। अब उनकी प्राथमिकता में वैवाहिक बंधन बिल्कुल नहीं है। अस्वीकारवादी कहिए इन्हें।
वर्ल्ड बैंक ने 2021 में दुनियाभर में फर्टिलिटी रेट का जो ब्योरा दिया है, उसमें सर्वोच्च दस देश अफ़्रीक़ा के हैं। नाइजर का फर्टिलिटी रेट 6.8 है, जो दुनिया में सबसे अधिक संतानोत्पत्ति करता है। दक्षिण कोरिया का प्रजनन दर सबसे कम है, 0.9 प्रतिशत । हांगकांग, मकाउ और चीन में प्रजनन प्रतिशत घटकर 1.1 से 1.3 के बीच आगे-पीछे हो रहा है।
भारत 2.2 पर टिका है, और पाकिस्तान 3.5 पर। 2020 से पहले चीन का प्रजनन दर था 2.1 प्रतिशत, मगर महिलाओं की नई पीढ़ी ने सारी तदबीरें उल्टी कर दीं। यह नई पीढ़ी सरकार की तमाम प्रलोभन व मेटरनिटी सुविधाओं को दरकिनार कर ‘माई-वे’ का रास्ता अपना लिया है।
चाइना स्टैटिस्टिकल इयर बुक-2021 के अनुसार, ‘20 से 34 वर्ष की 52.7 प्रतिशत महिलाएं ग्रेजुएट या उससे ऊपर की डिग्रीधारी हैं।’ इस सूचना के आधार पर समाज विज्ञानी उस बदलाव की ओर इशारा करते हैं, जिससे आज का चीन वाबस्ता है। जो शादी-शुदा हैं भी, अपने पार्टनर को शारीरिक संबंध के लिए भी बाध्य नहीं कर सकते। सर्वे किया गया, तो ऐसी रिपोर्टें सामने आईं कि वेश्यालयों की ओर रुख़ करने वाले अधिकांश लोग शादी-शुदा हैं। लैंगिक समानता जैसा विषय चीन के शहरी समाज पर सिर चढ़कर बोल रहा है।
यह तो 1954 में ही चीन के संविधान में तय हो गया था कि मर्द-औरत दोनों बराबर हैं। तब मेटरनिटी लीव, डे केयर लीव की छूट दी गई थी। बहुविवाह पर कानूनी प्रतिबंध लगा। औरतों की खरीद-फ़रोख़्त, अरेंज्ड मैरेज, वेश्यागमन इन तमाम बुराइयों को रोकने की चेष्टा चीन में लगातार होती रही है। मगर, यह सब रुका नहीं। शांधाई के बिजनेस डिस्ट्रिक्ट में मैंने स्वयं देखा, एस्कोर्ट और वारांगनाएं गाजर-मूली की तरह उपलब्ध हैं। चीन के बाकी मेट्रो शहरों का वही हाल है।
माओ के समय नौकरी में समान अवसर की अवधारणा को ‘स्टेट फेमिनिजम’ भी कहा गया। मगर, यह भी छलावा था। 2013 में एक सर्वे के जरिए पता चला कि मेल वर्कर महीने मेंं 529 युआन सैलरी के रूप में पाते हैं, तो महिलाएं 399 युआन मात्र पाती हैं। किंतु, यह सब कुछ उन इलाकों में बदलने लगा, जहां कारपोरेट कल्चर तेजी से लागू हुआ।
हांगकांग-मकाउ, शांधाई इसके उदाहरण बने। कॉरपोरेट महिलाओं ने पुरुषों से अधिक पैकेज पाना शुरू किया। आवारा पूंजी और कॉरपोरेट क्रांति ने चीन में स्त्री असमानता की पूरी तस्वीर ही पलट कर रख दी।
कन्फ्यूशियस की अवधारणा थी कि पुरुष बाहर का कामकाज देखें, और महिलाएं घर में बर्तन-चौका से लेकर बच्चे पालने का काम करें। बारहवीं सदी में नव-कन्फ्यूशियस विचारक जू शी ने तीन बंधनों की व्याख्या की। राजा और प्रजा के बीच आबन्ध, पिता-पुत्र, और पति-पत्नी के बीच संबंध। कालांतर में कन्फ्यूशियस और उनके अनुयायी जू शी दोनों फेल कर गए। उनकी अवधारणाओं को भी ‘जेनरेशन ज़ेड’ ने खारिज कर दिया।
फिर से याद दिलाऊं, चीन में आबादी अनियंत्रित हुई तो 1979 में एक संतान नीति लागू कर दी गई। मगर, ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ के दुष्परिणाम दो दशक बाद स्वत: सामने आने लगे। ‘टू लिव योर लाइफ द वे यू वांट’ और ‘पैरेलल टॉवर’ जैसी प्रसिद्ध पुस्तकें लिखने वाली कमेंटेटर शेन चियाक के लाखों फॉलोवर्स में महिलाओं की संख्या सर्वाधिक है। शेन चियाक का कहना है, ‘सरकार ने जितने प्रलोभन दिये कि बच्चे पैदा करो, वो सब ‘ज़ेड जेनरेशन‘ पर बेअसर है। ये बुलंद परवाज़ हैं, इन्हें उड़ने से रोकना मुश्किल है।’
वुहान में जन्मी लियु शिन पेइचिंग स्थित मार्केटिंग सोल्युशन सेंटर की क्रिएटिव डायरेक्टर हैं। 2021 में उन्होंने ऐसी मन:स्थिति वाली महिलाओं को आकर्षित करने के वास्ते ‘लिव फॉर योरसेल्फ’ ब्रांड बाजार में उतारा था। यह देखते-देखते सबकी ज़ुबान पर चढ़ गया। लियु बताती हैं कि 35 से नीचे की उमर वाली महिलाओं ने इस ब्रांड को सबसे अधिक पसंद किया, क्योंकि विवाह और बच्चे जनने से ये खुश रहने वाली नहीं।
ये स्वयं सिंगल चाइल्ड रही हैं, चुनांचे आगे के जीवन में अधिक झमेला पालना नहीं चाहतीं। करियर बनाओ, पैसे जमा करो, और उन्मुक्त जीवन व्यतीत करो, यह इनका फंडा है। लियु शिन की बातों से इसका आभास होता है कि बाजार ने ‘ज़ेड जेनरेशन’ को अच्छे से पहचान लिया है।
चीनी सोशल मीडिया पर ल्यूओ हुआजोंग नामक एक शख़्स का पोस्ट अप्रैल 2021 में वायरल हुआ था। उसकी हेडलाइन थी, ‘थांग फिंग’ यानी सीधे लेटे रहो (लाइंग फ्लैट)। उसने पोस्ट में लिखा, ‘बस लेटे रहने का मन करता है। जीवन में कुछ नहीं। लेटे रहो-लेटे रहो-लेटे रहो। लाइंग फ्लैट इज जस्टिस।’
बीस वर्षीय युवक ल्यूओ हुआजोंग के इस स्लोगन को उन युवाओं ने पसंद किया है, जो निराश, अंतर्मुखी और एकाकीपन की ओर तेजी से जा रहे थे। राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने तंजिया इसका नाम ‘लाइंग फ्लैट जेनरेशन’ रखा है। उनके अनुसार, ‘ यह युवाओं की ऐसी निठल्ली पीढ़ी है, जिन्हें करना-धरना कुछ नहीं, लेटे-लेटे सब कुछ पा लेना है। ये लोग भी वहीं हैं, जिन्हें बाल-बच्चे की ज़रूरत नहीं, आगे परिवार नहीं बढ़ाना है। ये समाज के अनुत्पादक हिस्से हैं।’
चाइनीज कम्युनिस्ट यूथ लीग ने एक सैंपल सर्वे अक्टूबर 2021 में कराया था, जिसमें 18 से 26 की उम‘ के अविवाहित युवाओं से विवाह और बच्चे के हवाले से राय ली गई। सर्वे में 43.9 फीसद युवतियों ने विवाह व बच्चा जनने से मना किया था।
इनसे और बढ़-चढ़कर 19.3 प्रतिशत अधिक लड़कों ने कहा कि हमें न तो शादी करनी है, न बच्चे पैदा करना है। ये ‘जेनरेशन-ज़ेड’ वाले लोग हैं, जिनकी चीन में संख्या है 22 करोड़। इनमें से एक करोड़ 82 लाख अधिक संख्या पुरुषों की है।
इसके सामाजिक कारण क्या हो सकते हैं? इस सवाल पर लेखिका व कमेंटेटर शेन चियाक बताती हैं, ‘वन चाइल्ड पॉलिसी लागू होने के बाद से तीन दशकों का जेनरेशन सिंगल चाइल्ड वाला है। इनमें वो पढ़ी-लिखी शहरी महिलाएं हैं, जिनके पास उच्च शैक्षिक डिग्री, रहने को फ्लैट, घूमने को गाड़ियां और अच्छा-ख़ासा बैंक बैलेंस है। जिनके मां-बाप दुनिया में नहीं हैं, उनकी भी जीवन भर की जमा-पूंजी ‘जेनरेशन ज़ेड’ के पास है। यह पीढ़ी आगे किसी ज़िम्मेदारी से बंधना नहीं चाहती। औरतों में ‘एटीच्यूड’ है, वो पुरुषों के मुक़ाबले कहीं से खुद को कमतर नहीं समझतीं। उन्हें वर्क प्लेस के बाद अपने जो भी शौक पूरे करने हैं, उसमें व्यवधान नहीं चाहिए।’
स्त्री अधिकारवादी शेन बताती हैं, ‘देश की जनसंख्या नीति निर्धारित करने वाले पुरुष थे, जिन्हें महिलाओं की मानसिकता और सिंगल चाइल्ड की मन:स्थिति का सही से अंदाजा नहीं था। ये सिर्फ यही चाहते रहे कि हमने विवाह और बच्चा सम्बन्धी नीतियों की घोषणा कर दी, लोग उसे आंख मूंदकर स्वीकार कर लें। चीन में तलाक दर कम हो, उस वास्ते एक महीने का ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ (विराम काल) 2021 में सरकार ने आयद की, ताकि पति-पत्नी साथ रहकर ठंडे दिमाग से फिर से साथ रहने की सोचें। 2021 की तिमाही में तलाक के आवेदन सवा दस लाख से घटकर 2 लाख 96 हजार पर आ गये,। बावजूद इसके गर्भधारण के वास्ते स्त्रियां तैयार नहीं दिखीं।’
बच्चे पैदा करने, उसके भरण-पोषण के वास्ते चीन ने ‘बेबी बोनस’ भी शुरू की, वह कार्यक्रम भी बेअसर। 2016 में एक करोड़ 78 लाख बच्चे चीन में पैदा हुए थे, 2021 में केवल एक करोड़ 20 लाख बच्चों का जन्म हुआ। यह शी सरकार की जनसंख्या नीति की विफलता का सबसे बड़ा सुबूत है। चीन के मेट्रो शहरों से यह भी ख़बरें आ रही हैं कि वहां प्रजनन दर घटकर 0.7 पर आ गई है।
दो साल पहले शांधाई के बिजिनेस डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों से मुलाकात के दौरान मैंने इस पहलू को जानना चाहा था, तो यह बात सामने आई कि कारपोरेट लाइफ ने सब कुछ बदल कर रख दिया है। औरतें ‘कैरियर ओरिएंटेड’ अधिक दिखीं। यदि यह स्थिति गांवों तक पहुंच गई, तो चीन कम प्रजनन के मामले में दक्षिण कोरिया को पीछे छोड़ सकता है। बल्कि दक्षिण कोरिया की हालत और भयावह है। वहां आज की युवा पीढ़ी का बड़ा हिस्सा बच्चा नहीं चाहता। ‘लिव इन रिलेशनशिप’ चरम पर है, जिसमें पहली शर्त यही होती है कि बच्चा नहीं पैदा करना है। इसे दक्षिण कोरिया में कहते हैं ‘एन-पो जेनरेशन’, इन्हें विवाह और बच्चा बिल्कुल नहीं चाहिए। उसकी एक बड़ी वजह महंगा जीवन स्तर भी है। वो खुद को पालें, या बच्चा पालें?
चीनी जनसांख्यिक विशेषज्ञ हुआंग वेनछेंग मानते हैं कि चीन में महिलाओं की शिक्षा और करियर का ग्राफ पुरुषों के मुकाबले तेज़ गति से ऊपर बढ़ रहा है। ‘करियरिस्ट’ महिलाओं की प्राथमिकता कम समय में सब कुछ हासिल कर लेना है, ऐसे में पुरुषों से उनकी जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा आरंभ हो चुकी है। हुआंग वेनछेंग आने वाले दिनों में देश में लैंगिक टकराव (जेंडर कॉन्फिलिक्ट) की आशंका से इनकार नहीं करते। आज हम चीन की सामाजिक विडंबना और विफल जनसंख्या नीति पर हँस सकते हैं, मगर भारत में हालात उसी ओर आगे बढ़ रहा है। यहां भी मेट्रो आबादी का एक बड़ा हिस्सा ‘लिव इन रिलेशनशिप’ या फिर अकेले रहना पसंद कर रहा है। बच्चा पैदा करना उसकी प्राथमिकता नहीं है। ‘करियर फर्स्ट’ वाली पीढ़ी है यह !