माना कि अशोक गहलोत राजनीति के बहुत बड़े जादूगर है । लेकिन सचिन पायलट के मामले में वे अब मात खा रहे है । पायलट की दुकान पूरी तरह लुट चुकी थी । लेकिन गहलोत उसी दुकान को आबाद करने में लगे हुए है । यानी आज गहलोत की वजह से पायलट राजस्थान में हीरों की मानिंद छाए हुए है । फिल्मी हीरों की तरह उनका जोरदार स्वागत हो रहा है ।
आपातकाल के बाद जब देश मे जनता पार्टी की सरकार थी, उस वक्त स्व इंदिरा गांधी गुमनाम जिंदगी व्यतीत करने को विवश थी । चरणसिंह तथा मोरारजी देसाई आदि ने मुकदमे दर्ज कर इंदिरा गांधी को हीरोइन बना दिया । नतीजतन वे फिर से प्रधानमंत्री पद पर काबिज़ होगई । कमोबेश यही हाल सचिन पायलट का है । उनकी जितनी अनदेखी की जाएगी, पायलट उतने बड़े हीरो साबित होते रहेंगे ।
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अलवर जिले में कल पायलट का जो स्वागत हुआ, वह अभूतपूर्व था । सैकड़ो गाड़ियों के काफिले के साथ रवाना हुए पायलट का जगह जगह भव्य स्वागत हुआ । लोग उनकी झलक पाने को बेताब थे । अगर स्थिति को अभी से नियंत्रण में नही लिया गया तो यह “नकारा” और “निकम्मा” व्यक्ति गहलोत के लिए परेशानी उतपन्न करता रहेगा ।
कहावत है कि नंगे से कभी पंगा नही लेना चाहिए । मंत्रिमंडल विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों में अनावश्यक देरी कर पायलट को गहलोत बेवजह हीरों बनाने पर तुले हुए है । पायलट के पास जो कुछ भी लुटाने के लिए था, वह पहले ही लुट चुका है ।
इसलिए अब वे अनुशासन के दायरे में रहते हुए दौरे के नाम पर अशोक गहलोत की नींद उड़ाने में सक्रिय है । राजगढ़ विधायक जौहरी लाल मीणा न तो बहुत बड़े नेता है और न ही उनकी पायलट से नजदीकियां है । मीणा की पत्नी के निधन पर मातमपुरसी की आड़ में पायलट ने अपना जलवा दिखा दिया ।
मुख्यमंत्री होने के नाते गहलोत की कई मजबूरियां हो सकती है । लेकिन अंततः उन्हें राजनितीक नियुक्तियां भी करनी होगी और मंत्रिमंडल का विस्तार भी । विधायक चाहे किसी भी खेमे के हो, उनका सब्र जवाब देने लगा है ।
निर्दलीय और बसपा के विधायक भी अब मंत्री व राजनीतिक पद हासिल करने के लिए मुखर हो रहे है । इसलिए 23 जून को “प्रायोजित” सम्मेलन आयोजित कर मुख्यमंत्री पर दबाव डालने की रणनीति पर विचार करेंगे ।
जब मंत्रिमंडल का विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियां करनी ही है तो फिर देरी क्यों ? इस देरी के बहुत घातक परिणाम सामने आ सकते है । यह तयशुदा है कि राजनीतिक अस्थिरता और उधमबाजी आज भी है और मंत्रिमंडल विस्तार के बाद भी होगी । जिसको पद नही मिला, वही असन्तुष्ट ।
आज पायलट खेमें के लोग बगावत पर उतारू है तो कल गहलोत के खासमखास भी असंतुष्टों की भाषा में बात करते हुए सरकार को नकारा और भ्रस्ट सरकार बताएंगे ।
जिस तरह आज हेमाराम राम और भरतसिंह आदि सरकार को गाली दे रहे है तो कल वे लोग गोले दागेंगे जिनको मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा अथवा जो किसी पद से वंचित रहेंगे । हेमाराम या भरतसिंह को मंत्री बनादो, फिर देखो कैसे सरकार की तारीफ में कसीदे पढेंगे । इसी को राजनीति कहते है ।
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कमलनाथ को नियुक्त कर दो या अजय माकन को । राजस्थान में सियासी संकट का हल केवल अशोक गहलोत के पास है । उनकी सबसे बड़ी मुसीबत यही है कि अनार एक है । जबकि बीमार सौ है । पायलट को बजाय दिल्ली के चक्कर काटने के गहलोत से समझौता कर लेना चाहिए । माना कि उनका सबकुछ लुट चुका है ।
लेकिन अपने समर्थक विधायको की भावनाओ का सम्मान करने के लिए समझौता ही एकमात्र विकल्प है । अतः कांग्रेस के सियासी संकट को दूर करने के लिए दोनों को सुलह का रास्ता अपनाना पड़ेगा । मुख्यमंत्री और पायलट को यह नही भूलना चाहिए कि उनकी आपसी कलह के कारण प्रदेश का नुकसान हो रहा है । जिसका खामियाजा कांग्रेस को अगले चुनावों में अवश्य देखने को मिलेगा ।
महेश झालानी, पत्रकार